प्रखर दीक्षित, अमर उजाला नेटवर्क, शिमला
Published by: अरविन्द ठाकुर
Updated Sat, 24 Jul 2021 01:34 PM IST
केंद्रीय मंत्रिमंडल में महिलाओं और पिछड़ों-दलितों को तरजीह देने के बाद अब भाजपा की जयराम सरकार ने हिमाचल प्रदेश में शुक्रवार को हुई नियुक्तियों में बड़ों को खुश करने के अलावा क्षेत्रीय संतुलन के साथ जातिगत भागीदारी का ध्यान रखा है। दो महिलाओं को मजबूत पदों पर नियुक्ति देने के साथ ही अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग के अलावा क्षेत्रीय संतुलन को बनाए रखने की कोशिश की गई है।
सरकारी मुख्य सचेतक बनाए गए बिक्रम सिंह जरयाल जिस चंबा जिले से आते हैं, वहां से अभी तक विधानसभा उपाध्यक्ष हंसराज का एक छत्र राज था। बिक्रम का नाम शुरूआती दौर में मंत्री पद के लिए चला लेकिन जातीय समीकरणों ने उनका गणित बिगाड़ दिया। हालांकि पिछले साढ़े तीन साल में हंसराज न सिर्फ चंबा जिले के बड़े नेता बन रहे थे, बल्कि दलित विधायकों की भी धुरी बनने की कोशिश में थे।
जिले के नेता के तौर पर जहां जरयाल से उन्हें चुनौती मिलेगी, वहीं दलित विधायक कमलेश कुमारी के सरकारी उप मुख्य सचेतक बनने से जातिगत समीकरण भी बदलेंगे। कमलेश जिस हमीरपुर जिले से आती हैं वहां अभी तक एक भी मंत्री नहीं है। ऐसे में इस क्षेत्र का भी सियासी संतुलन साधने की कोशिश की गई है। कांगड़ा जिले के फतेहपुर में उप चुनाव के अलावा सबसे बड़ा जिला होने के बावजूद उपेक्षित होने का आरोप भी भाजपा ने दूर करने का प्रयास किया है।
कांगड़ा से भाजपा के ओबीसी नेता के तौर पर ओम प्रकाश चौधरी इसी दोहरी रणनीति के तहत उपाध्यक्ष बनाए गए हैं। वहीं, रश्मिधर सूद और संजय गुलेरिया के जरिये राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी साधने की कोशिश है। खास बात यह है कि इस पूरी सूची में धूमल गुट पूरी तरह से नजरंदाज रहा है। देखना यह है कि आने वाले दिनों में होने वाली और नियुक्ति में भी सरकार के रुख बदलाव आता है या फिर ऐसे ही धूमल गुट साइड लाइन रहेगा।
विस्तार
केंद्रीय मंत्रिमंडल में महिलाओं और पिछड़ों-दलितों को तरजीह देने के बाद अब भाजपा की जयराम सरकार ने हिमाचल प्रदेश में शुक्रवार को हुई नियुक्तियों में बड़ों को खुश करने के अलावा क्षेत्रीय संतुलन के साथ जातिगत भागीदारी का ध्यान रखा है। दो महिलाओं को मजबूत पदों पर नियुक्ति देने के साथ ही अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग के अलावा क्षेत्रीय संतुलन को बनाए रखने की कोशिश की गई है।
सरकारी मुख्य सचेतक बनाए गए बिक्रम सिंह जरयाल जिस चंबा जिले से आते हैं, वहां से अभी तक विधानसभा उपाध्यक्ष हंसराज का एक छत्र राज था। बिक्रम का नाम शुरूआती दौर में मंत्री पद के लिए चला लेकिन जातीय समीकरणों ने उनका गणित बिगाड़ दिया। हालांकि पिछले साढ़े तीन साल में हंसराज न सिर्फ चंबा जिले के बड़े नेता बन रहे थे, बल्कि दलित विधायकों की भी धुरी बनने की कोशिश में थे।
जिले के नेता के तौर पर जहां जरयाल से उन्हें चुनौती मिलेगी, वहीं दलित विधायक कमलेश कुमारी के सरकारी उप मुख्य सचेतक बनने से जातिगत समीकरण भी बदलेंगे। कमलेश जिस हमीरपुर जिले से आती हैं वहां अभी तक एक भी मंत्री नहीं है। ऐसे में इस क्षेत्र का भी सियासी संतुलन साधने की कोशिश की गई है। कांगड़ा जिले के फतेहपुर में उप चुनाव के अलावा सबसे बड़ा जिला होने के बावजूद उपेक्षित होने का आरोप भी भाजपा ने दूर करने का प्रयास किया है।
कांगड़ा से भाजपा के ओबीसी नेता के तौर पर ओम प्रकाश चौधरी इसी दोहरी रणनीति के तहत उपाध्यक्ष बनाए गए हैं। वहीं, रश्मिधर सूद और संजय गुलेरिया के जरिये राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी साधने की कोशिश है। खास बात यह है कि इस पूरी सूची में धूमल गुट पूरी तरह से नजरंदाज रहा है। देखना यह है कि आने वाले दिनों में होने वाली और नियुक्ति में भी सरकार के रुख बदलाव आता है या फिर ऐसे ही धूमल गुट साइड लाइन रहेगा।