हरिद्वार कुंभ मेले का शुभारंभ गत 14 जनवरी 2021 को मकर संक्रांति के दिन से हो गया है। हिंदू धर्म में कुंभ मेले के आयोजन का विशेष महत्व होता है। हर वर्ष जहां माघ महीने में प्रयाग में माघ मेला होता है, वहीं चार जगहों पर कुंभ, अर्धकुंभ, महाकुंभ का आयोजन होता है। क्या आपको मालूम है कि देश के चार जगहों पर होने वाले कुंभ मेले का आयोजन पूरी तरह से ज्योतिषीय गणना के आधार पर ही तय किया जाता है। कुंभ मेले का आयोजन सूर्य और बृहस्पति के राशि परिवर्तन के आधार पर ही देश के चार स्थानों में होने वाले तिथि का चुनाव किया जाता है।
जब भी सूर्य मेष राशि में और देवगुरु बृहस्पति कुंभ राशि में मौजूद रहते हैं तब कुंभ मेले का आयोजन हरिद्वार में किया जाता है। वहीं जब सूर्य मकर राशि में और देवगुरु बृहस्पति बृषभ राशि में प्रवेश करते हैं, तो कुंभ का आयोजन प्रयाग में होता है। इसके अलावा जब बृहस्पति और सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करते हैं तब कुंभ मेले का आयोजन नासिक में होता है। वहीं जब बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा तीनों कर्क राशि में प्रवेश करते हैं, तब कुंभ मेले का आयोजन उज्जैन में होता है।
महाकुंभ
इसे सभी कुंभ मेलों में सबसे श्रेष्ठ कुंभ मेला माना गया है। इस कुंभ मेले का आयोजन दो शताब्दियों में एक बार किया जाता है। 144 वर्षों बाद प्रयागराज में होता है। जब प्रयागराज में 12 कुंभ पूर्ण हो जाते हैं तब उसके बाद संगम के तट पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।
पूर्ण कुंभ
प्रत्येक 12 वर्षों के अंतराल पर पूर्ण कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। यह चार स्थानों पर हरिद्वार, नासिक, प्रयागराज और उज्जैन में आयोजित किया जाता है।
अर्ध कुंभ
जब 6 वर्षों के अंतराल में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है तब इसे अर्ध कुंभ मेला कहा जाता है। इस मेले का आयोजन प्रयागराज और हरिद्वार में ही किया जाता है।