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जानिए चंद्रमा से जुड़े ये 7 बड़े रहस्य

धर्म डेस्क, अमर उजाला Published by: प्रशांत राय Updated Fri, 06 Sep 2019 04:53 PM IST
known about the 7 unknown facts about moon in hindi
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भारतीय कालगणना ज्योतिष विद्या पर आधारित है। मास, तिथि, पर्व को बेहद सूक्ष्म विचारों के आधार पर तय किया जाता है। जिसका आधार चंद्रमा है। चंद्रमा मन का द्योतक है। पृथ्वी के पास या दूर उसकी स्थिति और सूर्य का प्रकाश लेकर चमकने की उसकी नियति मनुष्य ही नहीं दूसरे प्राणियों को प्रभावित करती है। चंद्रमा जब जिन नक्षत्र के साथ कास संबंध यानी कि दूरी या कोण बनाता है तो उसे ज्योतिष की भाषा में उसे चंद्रमा का नक्षत्र कहते हैं। 



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महीनों का निर्धारण ऋषि व ज्योतिष विशेषज्ञ करते हैं। पूर्णिमा चंद्रमा की सबसे सशक्त तिथि मानी गई है। इस दिन वह अपनी सभी कलाएं विखेरता है। इस दिन के साथ जिस नक्षत्र का उदय होता है, संबंधित माह उसी नाम से संबोधित होगा। जैसे जिस पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र का उदय होता है वह माह चैत्र कहलाता है। एक नक्षत्र छोड़कर अगली पूर्णिमा का नक्षत्र होगा विशाखा तब वह माह वैशाख कहलाएा। 

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इसी तरह ज्येष्ठा से ज्येष्ठ, पूर्वाषाढ़ से आषाढ़, श्रवण से श्रावण इत्यादि। कभी-कभी साल में 13 महीने होते हैं। इस स्थिति में दो माह एक ही नाम के रहते हैं। यह वर्ष अधिक मास का कहलाता है। एक ही नाम के दो मास होने का कारण यह है कि इसकी दो पूर्णिमा एक ही नक्षत्र से अधिशासित रहती हैं। 

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इसी तरह कुछ समय बाद के बाद कोई वर्ष क्षयमास का भी होता है। यानी कि ग्यारह माह का वर्ष। क्षयमास की पूर्णिमा में उस साल पूर्ववर्ती यानी कि पश्चवर्ती नक्षत्र का उदय रहता है। इसलिए एक माह कम हो जाता है। इस सूक्ष्म निर्धारण के कारण चांद वर्ष और सौर वर्ष का सामंजस्य बना रहता है। सौर वर्ष 365.25 दिन का होता है जबकि चांद वर्ष 354 दिन का। इसी कारण हर तीसरे साल एक माह का अंतर आ जाता है। अदिक मास इसी अंतर को कम करता है।

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इस व्यवस्था से त्योहारों-तिथियों में मौसम ऋतुओं का सामंजस्य बना रहता है। हिजरी सन् में ऐसी व्यवस्था नहीं है। सवंत माह, तिथियों आदि की गणनाएं भारत में जिस बारीकी से हुई हैं। उसे देखकर विश्व के कई विज्ञानवेत्ता दांतों तले उंगली दबाते हैं। 

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