डेढ़ साल से अधिक समय से दुनियाभर में कहर बरपा रहे कोरोना संक्रमण से सुरक्षित रहने के लिए वैक्सीनेशन को सबसे बड़ा हथियार माना जा रहा है। हालांकि कई अध्ययनों में सामने आया है कि कोरोना के नए वैरिएंट्स आसानी से शरीर की इम्यूनिटी को चकमा देने में सफल हो जा रहे हैं, ऐसे में वैक्सीनेशन कितना प्रभावी हथियार बनी रहेगी, यह सवाल सभी को परेशान कर रहा है। कुछ वैज्ञानिकों का तो यहां तक भी कहना है कि वैक्सीन से बनी एंटीबॉडीज कुछ समय के बाद कम हो जा रही हैं ऐसे में संभव है कि लोगों को भविष्य में एक और डोज देने की जरूरत पड़े। तो क्या जिन लोगों का टीकाकरण हो चुका है, उन्हें फिर से वैक्सीन लेने की आवश्यकता पड़ सकती है?
कोरोनावायरस के नए स्वरूपों के कारण तेजी से बढ़ता संक्रमण टीकाकरण के बाद भी सुरक्षा के स्तर पर सवाल खड़े कर रहा है। ऐसे में लोगों को सुरक्षित रहने के लिए क्या उपाय करने होंगे? इस बारे में वर्जीनिया विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजिस्ट और संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ विलियम पेट्री ने एक साक्षात्कार के दौरान मीडिया के इससे संबंधित सवालों के जवाब दिए हैं। आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
क्या फिर से पड़ सकती है वैक्सीनेशन की आवश्यकता?
प्रोफेसर विलियम पेट्री कहते हैं, जिस तरह से कोरोना के नए रूपों की संक्रामता देखी जा रही है, ऐसे में माना जा रहा है कि शायद आने वाले दिनों में लोगों को दो डोज के बाद फिर से वैक्सीनेशन करने की आवश्यकता पड़ सकती है। हालांकि इसे वैक्सीन के बूस्टर डोज के रूप में देखा जाना चाहिए। वैक्सीन का बूस्टर डोज रोगज़नक के खिलाफ प्रतिरक्षा को और मजबूती देने में मदद कर सकता है। समय के साथ शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है ऐसे में बूस्टर डोज की आवश्यकता होना सामान्य है, इससे लोगों को घबराने की आवश्यकता नहीं है।
पहले भी कई रोगों में दिए जाते रहे हैं बूस्टर डोज
प्रोफेसर विलियम कहते हैं, ऐसा नहीं है कि बूस्टर डोज की जरूरत सिर्फ कोरोना के संक्रमण में देखी जा रही है। पहले भी कई रोगों में इसकी आवश्यकता महसूस की गई है। उदाहरण के लिए, फ्लू शॉट हर साल दोहराया जाना चाहिए वहीं डिप्थीरिया और टेटनस के बूस्टर डोज हर दस साल में दिए जाने चाहिए। बूस्टर के दौरान इंजेक्ट किया जाने वाला टीका पहले के ही तरह का होता है। चूंकि कोरोना के नए वैरिएंट्स अधिक प्रभावी देखे जा रहे हैं ऐसे में बूस्टर डोज की आवश्यकता थोड़ी जल्दी महसूस हो रही है।
किन्हें बूस्टर डोज की आवश्यकता सबसे अधिक?
प्रोफेसर विलियम कहते हैं, वैसे तो सभी लोगों को बूस्टर डोज की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए हालांकि जो लोग इम्यूनोसप्रेशिव हैं, यानी कि जिनको इम्यूनिटी संबंधी दिक्कतें रही हैं, ऐसे लोगों के लिए बूस्टर डोज जरूरी माना जा सकता है। एक अध्ययन से पता चला है कि किडनी प्रत्यारोपण करा चुके 40 में से 39, और डायलिसिस कराने वाले करीब एक तिहाई रोगियों में टीकाकरण के बाद भी पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडीज का उत्पादन नहीं हुआ। ऐसे ही कई अन्य अध्ययनों में चौंकाने वाले परिणाम सामने आ चुके हैं। इस आधार पर कहा जा सकता है कि जो लोग इम्यूनोकंप्रोमाइज्ड हैं, उनमें वैक्सीनेशन का प्रभाव बहुत अधिक देखने को नहीं मिल रहा है।
इम्यूनोकंप्रोमाइज्ड लोगों में फायदेमंद साबित हो सकती हैं बूस्टर डोज
इसी संबंध में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि इम्यूनोकंप्रोमाइज्ड लोगों में बूस्टर डोज का सकारात्मक प्रभाव हो सकता है। अध्ययनों में पाया गया है कि किडनी प्रत्योरोपण या इम्यूनोकंप्रोमाइज्ड लोगों में फाइजर या मॉडर्न की पहली दो खुराक के बाद एंटीबॉडीज का स्तर कम पाया गया जबकि तीसरी खुराक के बाद शरीर में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया अधिक देखी गई। कई देशों में बूस्टर डोज को लेकर अध्ययन और निर्माण का काम भी तेजी से किया जा रहा है।
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नोट: यह लेख वर्जीनिया विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजिस्ट और संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ विलियम पेट्री के सुझावों के आधार पर तैयार किया गया है।
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