कोरोना से ठीक होने के बावजूद मरीजों की दिक्कतें पूरी तरह खत्म नहीं हो रही है। मरीजों में पोस्ट कोविड या लॉन्ग कोविड की समस्या दिख रही है। कोरोना संक्रमित और उससे उबरे मरीजों में कोविड कॉम्प्लिकेशन दिख रहे हैं। पोस्ट कोविड की स्थिति में मरीजों में दो महीने बाद तक भी थकान, मांसपेशियों में दर्द, सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याएं बनी रह रही हैं। देश के कई हिस्सों में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें मरीजों को ब्रेन हैमरेज या पैरालिसिस तक की शिकायतें भी हुई हैं। कोरोना से उबरने के बाद मरीजों को न्यूरोलॉजिकल दिक्कतें भी हो रही हैं। बहुत सारे ऐसे मामले भी सामने आ चुके हैं, जिनमें मरीजों का दिमाग भी ठीक से काम नहीं कर पा रहा।
दरअसल, कोरोना वायरस संक्रमण से ठीक होने के बाद मरीजों को कई तरह की समस्याएं हो रही हैं। इनमें दिमाग से जुड़ी परेशानियां भी शामिल हैं। दिमाग से जुड़ी दिक्कतों को चिकित्सक ब्रेन फॉग (Brain Fog) यानी दिमाग का धुंधला होना मान रहे हैं। हालांकि यह परेशानी कुछ दिनों तक रहेगी या हमेशा के लिए, इसके बारे में अभी नहीं कहा जा सकता है।
चिकित्सकों का मानना है कि कोरोना संक्रमण के दौरा ब्लड क्लॉट (Blood Clot) यानी नसों में खून के थक्के जमना इसका कारण हो सकती है। कोरोना संक्रमण होने पर शुरुआत में फेफड़ों और गले में सूजन आती है और संक्रमित होने के कुछ दिनों के अंदर मरीज का ब्लड गाढ़ा होने लगता है। ऐसा वायरस की प्रवृत्ति के कारण होता है, जिसका मरीजों को पता नहीं चल पाता। रक्त वाहिकाओं में खून का थक्का जमने से दिक्कतें शुरू हो जाती है।
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. स्मृति मंदाना के मुताबिक, ब्लड क्लॉटिंग यानी खून का थक्का जमने की समस्या दिमाग की नसों में हो सकती है। कोरोना संक्रमण के दौरान ब्रेन की ओर जाने वाली रक्त वाहिकाओं में खून का थक्का जमने से दिमाग के उस हिस्से में ब्लड की सप्लाई नहीं हो पाती। ऐसे में दिमाग का वह हिस्सा काम करना बंद कर सकता है, जिससे मरीज को पैरालिसिस भी हो सकता है। इस स्थिति को ब्रेन इंफार्क्ट भी कहा जाता है।
ब्रेन फॉग के लक्षण
- सिर में दर्द रहना
- किसी चीज पर फोकस नहीं कर पाना
- किसी काम में ध्यान केंद्रित नहीं रहना
- सोचने और समझने की शक्ति कमजोर होना