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V. Shantaram: एक ऐसा निर्माता जिसने उसूलों से कभी नहीं किया समझौता, बेटी को भी कर दिया था फिल्म से बाहर

एंटरटेनमेंट डेस्क, अमर उजाला Published by: शशि सिंह Updated Sun, 30 Oct 2022 07:09 AM IST
v shantaram death anniversary a filmmaker who was known for his principles in cine industry
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सिनेमाजगत में कई फनकार रहे हैं, जिनमें से कुछ ने पर्दे पर तो कुछ ने पर्दे के पीछे से अपना जादू बिखेरा है, लेकिन बहुत कम ऐसे लोग मिलेंगे जिन्होंने सिने जगत में रहते हुए भी हमेशा अनुशासन और उसूलों को कायम रखा। इन्हीं में से एक उसूलों के पक्के थे निर्माता और निर्देशक शांताराम राजाराम वनकुद्रे यानी वी शांताराम! जो भारतीय सिनेमा के एक ऐसे फिल्मकार रहे जिन्होंने अपने साथ सिनेमा को भी आगे बढ़ाया। वी शांताराम ने सामाजिक समस्याओं को पर्दे पर उतारने का काम किया। उन्होंने अपने करियर में 90 से ज्यादा फिल्में बनाईं और 55 फिल्मों के वह निर्देशक रहे। 1985 में वी शांताराम को भारत सरकार की तरफ से दिए जाने वाले सिनेमा के सबसे बड़े सम्मान दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। सिने जगत के इस नायाब हीरे ने साल 1990 में 30 अक्टूबर के दिन इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
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फिल्म निर्माता वी शांताराम ने सिनेमाजगत में काम करते हुए अपनी पूरी जिंदगी में कभी भी उसूलों से समझौता नहीं किया और समय के भी बेहद पाबंद रहे। वह हर कीमत पर अपने बनाए नियमों पर चलते थे। इसी के चलते एक बार उन्होंने अपनी बेटी को भी फिल्म से  बाहर का रास्ता दिखा दिया था। तो चलिए जानते हैं सिनेमा के इस दिग्गज के बारे में।
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वी शांताराम ने अपने उसूलों की वजह से ही साल 1929 में महाराष्ट्र फिल्म कंपनी छोड़ी दी थी और फिर साझेदारी में प्रभात फिल्म कंपनी बनाई। इसके बाद एक बार फिर से अपने उसूलों से समझौता न करते हुए उन्होंने प्रभात कंपनी को भी अलविदा कह दिया और खुद के स्टूडियो राजकमल मंदिर की स्थापना की जो आज भी सिने जगत की कहानी कहता है।
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वी शांताराम के बारे में बताया जाता है कि उनके यहां जब आउटडोर शूटिंग हुआ करती थी तो वह स्पॉट बॉय से लेकर स्टार्स तक को शाम को अपने हाथ से खाना परोसते थे। इसी के साथ उनका एक उसूल था कि शूट के दौरान सेट पर कोई भी बाहरी व्यक्ति यहां तक कि अतिथि भी मौजूद नहीं रहेगा और न ही आएगा। एक बार फिल्मों की शूटिंग में इस्तेमाल होने वाले आभूषणों की आपूर्ति करने वाले अमरनाथ कपूर 'नवरंग' फिल्म के लिए आभूषण मुहैया करवा रहे थे और इसी दौरान उन्होंने वी शांताराम से निवेदन किया कि उनका बेटा शूटिंग देखना चाहता है। अगर उनकी इजाजत मिल जाएगी तो उनके बेटे की इच्छा पूरी हो जाएगी।
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अमरनाथ की बात को सुनकर वी शांताराम असमंजस की स्थिति में फंस गए क्योंकि ये उनका नियम था, शूटिंग के दौरान सेट पर कोई बाहरी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता था। चूंकि अमरनाथ खास थे तो उनके अनुरोध को टाला भी नहीं जा सकता था और नियम भी नहीं तोड़े जा सकते थे। ऐसे में वी शांताराम ने एक तरकीब निकाली और कहा कि अपने बेटे को जूनियर आर्टिस्ट के रूप में भेज दो। अमरनाथ कपूर का बेटा रवि कपूर इस तरह से फिल्म 'नवरंग' में जूनियर आर्टिस्ट बन गया। बाद में रवि कपूर को ही वी शांताराम ने अपनी बेटी राजश्री का हीरो बनाकर 'गीत गाया पत्थरों ने' फिल्म बनाई। यह फिल्म हिट हुई और रवि कपूर स्टार बन गए। वह और कोई नहीं बल्कि अभिनेता जितेंद्र थे।
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