'घायल', 'दामिनी', 'अंदाज अपना अपना' और 'दबंग' जैसी हिट फिल्मों के लेखक दिलीप शुक्ला फिल्म 'गंगा: द निर्णायक' के जरिए निर्देशन के क्षेत्र में कदम रख रहे हैं। जल्द ही इस फिल्म की शूटिंग उत्तर प्रदेश में शुरू होगी। दिलीप शुक्ला के लिखे जुमले 'ढाई किलो का हाथ' और 'तारीख पे तारीख' लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। खास बात ये रही है कि दिलीप शुक्ला की लिखी फिल्मों ने सनी देओल से लेकर सुनील शेट्टी, अक्षय कुमार और सलमान खान जैसे सितारों के करियर में समय रहते नई जान फूंकी। उत्तर प्रदेश के रहने वाले दिलीप शुक्ला से ‘अमर उजाला’ संवाददाता वीरेंद्र मिश्र की एक खास मुलाकात।
आपको कब लगा कि आपके अंदर एक लेखक है और आप को सिनेमा जगत में जाना चाहिए?
रायबरेली जिले में दलीपुर एक गांव है, वहीं की पैदाइश है। आठवीं तक की पढ़ाई गांव के स्कूल में की। लखनऊ में पिताजी रेलवे में थे तो लखनऊ आ गए। लखनऊ में पढ़ाई के साथ साथ रंगमंच से जुड़ गया। वहां पर मैंने दो तीन नाटक लिखे और निर्देशित किए। इनमें अभिनय भी किया। मैंने पहला नाटक मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'मंत्र' पर किया था। 'मंत्र' का जब मैंने नाट्य रूपांतरण किया तो लेखन में मेरा यह पहला कदम था। अखबार में फोटो छप गई, अब 17 साल की उम्र में अखबार में फोटो छप जाए तो वह मुंबई की ही तरफ ही भागेगा। 1982 में मैं मुंबई आ गया। सात साल तक इधर उधर कुछ कुछ करता रहा। और, फिर मिली फिल्म 'घायल'।
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'घायल' के लिए मौका कैसे मिला?
उन दिनों मैंने सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के लिए एक लघु फिल्म लिखी थी और राजकुमार संतोषी उसे देखने आए थे। उनको फिल्म अच्छी लगी। तभी उन्होंने बताया था कि मैं फिल्म निर्देशक बनने के लिए एक फिल्म बनाने की योजना पर काम कर रहा हूं। अगर बात बनी तो संवाद तुमसे ही लिखवाऊंगा। सात-आठ महीने बाद मुझे उन्होंने बुलाया और 'घायल' के बारे में बताया। सनी देओल को फिल्म से बहुत फायदा हुआ। ऐसा लगा कि फिल्म लिखी ही उनके लिए गई थी।
और, आपके लिए भी ये सगुन अच्छा रहा। फिर 'दामिनी' की शुरुआत कैसे हुई?
'घायल' के बाद हमारी टीम बन गई। राज जी को मेरी लेखनी पर भरोसा हो गया। 'घायल' के बाद विचार विमर्श चल रहा था कि अब किस तरह की फिल्म बनानी चाहिए। उस समय एडिटर सुतानु गुप्ता ने 'दामिनी' का आइडिया सुनाया। कहानी सबको पसंद आई। इस फिल्म के मैंने संवाद ही लिखे थे। और आपको यकीन नहीं होगा कि फिल्म का सबसे चर्चित संवाद 'ये ढाई किलो का हाथ' मैंने सेट पर ही लिख दिया था। राज जी ने कहा कि सनी के दमदार हाथ पर कुछ लिखो तो मैंने सेट पर ही 'ये ढाई किलो का हाथ' लिखा और यह डायलॉग हिट हो गया। 'तारीख पे तारीख' तो कोर्ट का सीन था इसलिए वह पहले से ही लिखा हुआ था।
'घायल' और 'दामिनी' के बाद आप लोगों ने 'अंदाज अपना अपना' बनाई, एक्शन से कॉमेडी की तरफ कैसे जाना हुआ?
हम लोगों ने पहले की दोनों फिल्मों से अलग एक ऐसी दुनिया रचते का फैसला लिया जिसमे लोगों को मजा आए। राज जी ने जब 'अंदाज अपना अपना' का आइडिया बताया तो सब लोगों को अच्छा लगा। कॉमेडी फिल्म थी तो शूटिंग के दौरान भी माहौल बहुत अच्छा था। फिल्म ऐसी थी कि कोई लेखक वैसी फिल्म लिख नहीं सकता था। फिल्म की कास्टिंग बहुत अच्छी थी। इस फिल्म में छोटे मोटे जो भी किरदार थे सबको देखकर लोगों ने आनंद उठाया। फिल्म में शक्ति कपूर का किरदार उनके करियर का बेहतरीन किरदार रहा। 'अंदाज अपना अपना' एक ऐसी फिल्म थी, जिसमें आप बंधकर काम नहीं कर सकते थे। राज जी वैसे भी शूटिंग के बीच में ही चीजें बदलते रहते थे। इस बार ये एक ऐसा प्रयोग था जो एक मिसाल बन गया।