शहीद वीरेंद्र सिंह राणा के पार्थिव शरीह को ताबूत में लेकर सीआरपीएफ के जवान जब घर पहुंचे तो ताबूत को नहीं खोला गया। बदहवास शहीद की पत्नी रेनू, मासूम बच्चे और परिजनों ने ताबूत से लिपटकर वीरेंद्र के अंतिम दर्शन किए और श्रद्धांजलि दी। अंत्येष्टि में भी ताबूत को चिता पर रखकर मुखाग्नि दी गई। परिजनों के मन में शहीद का चेहरा आते ही उनकी आंखें छलक पड़तीं...।
शहीद वीरेंद्र सिंह राणा के शव को लेकर पहुंचे सीआरपीएफ के अधिकारियों और जवानों की आंखों में भी आतंकियों की कायराना हरकत के खिलाफ आक्रोश नजर आया। दिल्ली से पांच बटालियन के असिस्टेंट कमांडेंट मुकेश पीपी, श्रीनगर से आए 45वीं बटालियन के हवलदार अशोक अपनी टीम के साथ शहीद वीरेंद्र के घर पार्थिव देह लेकर पहुंचे।
श्मशान घाट में काठगोदाम से आए सीआरपीएफ के डीआईजी प्रदीप चंद्र ने अंत्येष्टि के दौरान शहीद के पिता दीवान सिंह से वार्ता की। उन्होंने कहा कि एक जवान जरूरी कागजी कार्रवाई के लिए तीन-चार दिन यहीं रहेगा। अंतिम यात्रा में आतंकियों और पाक के खिलाफ नारेबाजी और गुस्से को देखकर सीआरपीएफ के अधिकारी और जवानों की आंखों में भी पाक के खिलाफ गुस्सा साफ झलक रहा था।
शहीद के घर मोहम्मदपुर भुड़िया से श्मशान घाट तक करीब आठ किमी तक अंतिम यात्रा में शहीद की एक झलक पाने और श्रद्धांजलि देने के लिए लोग उमड़ पड़े। इस बीच, प्राथमिक और माध्यमिक समेत कई निजी स्कूलों के बच्चों ने सड़क से सटे स्कूल से निकलकर कतार खड़े होकर शहीद को श्रद्धांजलि दी और ‘जब तक सूरज-चांद रहेगा, शहीद वीरेंद्र तेरा नाम रहेगा’ के नारे लगाए।
जवान बेटे की अर्थी को कंधा देने वाले 80 वर्षीय दीवान सिंह राणा का कहना है कि मुझे गर्व है कि मेरा बेटा देश के काम आया। मेरा पोता बयान बड़ा होकर सेना में भर्ती होकर पाकिस्तान से बदला लेगा। अब बहुत हो गया है, आतंकी देश पाकिस्तान को नेस्तोनाबूत कर दो।