लखनऊ में कोरोना से मरने वालों की संख्या में लगातार इजाफे की बड़ी वजह शुरुआती दौर में वायरस को नजरअंदाज करना है। एक ओर लोगों ने सामान्य बीमारी समझकर इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। वहीं, अस्पतालों की भी लापरवाही सामने आ रही है।
डेथ ऑडिट के दौरान खुलासा हुआ है कि तमाम अस्पताल कोविड के लक्षण होने के बावजूद सामान्य मरीज की तरह इलाज करते रहे और जब हालत गंभीर हुई तो जांच कराने की सलाह देकर रेफर कर दिया। स्वास्थ्य विभाग ऐसे अस्पतालों की कुंडली तैयार करने में जुटा है।
राजधानी में 650 से अधिक लोगों की कोरोना से मौत हो चुकी है। सितंबर में सबसे ज्यादा अब तक 285 लोग दम तोड़ चुके हैं। अगस्त में 271 की जान गई, जबकि अप्रैल से जुलाई तक सिर्फ 90 ने दम तोड़ा था। मौत के बढ़ते आंकड़ों को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने डेथ ऑडिट के नियमों को कड़ा कर दिया है। अब हर पहलू की बारीकी से जांच की जा रही है। डेथ ऑडिट में यूनिसेफ की टीम भी लगी है।
सूत्रों का कहना है कि अब तक करीब 644 लोगों का डेथ ऑडिट हो चुका है। इनमें 50 प्रतिशत से ज्यादा ऐसे मिले, जो कोराना के लक्षण होने के बावजूद जांच कराने से कतराते रहे और डिस्पेंसरी से दवाई लेकर काम चलाते रहे। हालत गंभीर होने पर निजी अस्पताल पहुंचे, लेकिन वहां भी वायरस की जांच के बजाय कुछ दिन भर्ती कर इलाज किया गया।
जब ऑक्सीजन लेवल लगातार गिरने लगा तो कोरोना जांच कराई गई। ऐसे में अति गंभीर अवस्था में लेवल 3 के अस्पतालों में रेफर कर दिया गया, जहां जान नहीं बचाई जा सकी। डेथ ऑडिट की रिपोर्ट के आधार पर दो दिन पहले डीएम ने अस्पतालों का निरीक्षण किया था।
इसमें सामने आया कि तीन काॅरपोरेट अस्पतालों ने जिन 48 मरीजों को डिस्चार्ज किया, उनकी हालत बेहद गंभीर थी और उन्हें बचाया नहीं जा सका। एसीएमओ डॉ. केपी त्रिपाठी ने बताया कि अब हर मरीज की काउंसलिंग की जा रही है। डेथ ऑडिट की रिपोर्ट के आधार पर उन अस्पतालों को भी चिह्नित किया जा रहा है, जहां मरीजों की देर से जांच कराई गई।
लोहिया संस्थान के इमरजेंसी मेडिसिन विभाग के एसो. प्रो. डॉ. राजीव रतन सिंह बताते हैं कि कोरोना में सबसे बड़ी भूमिका ऑक्सीजन के स्तर की है। इसे सामान्य बुखार और कोरोना के असर के बीच पहचान के रूप में भी देख सकते हैं। सांस फूलने और ऑक्सीजन का स्तर गिरने पर तुरंत जांच कराएं और लेवल टू या थ्री के अस्पताल में भर्ती हो जाएं।
यही वजह है कि हर व्यक्ति को घर में ऑक्सीमीटर रखने की सलाह दी जा रही है। छोटी सी यह डिवाइस मशीन मरीज की उंगली में फंसाई जाती है। इससे नब्ज और खून में ऑक्सीजन की मात्रा का पता चलता है। व्यक्ति के खून में ऑक्सीजन का सैचुरेशन लेवल 95 से 100 फीसदी के बीच रहता है। इससे कम स्तर का मतलब है कि व्यक्ति के फेफड़ों में किसी तरह की परेशानी है। 92 प्रतिशत से नीचे ऑक्सीजन लेवल का मतलब है कि व्यक्ति की स्थिति गंभीर है और उसे अस्पताल ले जाने की जरूरत है।
लखनऊ में कोरोना से मरने वालों की संख्या में लगातार इजाफे की बड़ी वजह शुरुआती दौर में वायरस को नजरअंदाज करना है। एक ओर लोगों ने सामान्य बीमारी समझकर इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। वहीं, अस्पतालों की भी लापरवाही सामने आ रही है।
डेथ ऑडिट के दौरान खुलासा हुआ है कि तमाम अस्पताल कोविड के लक्षण होने के बावजूद सामान्य मरीज की तरह इलाज करते रहे और जब हालत गंभीर हुई तो जांच कराने की सलाह देकर रेफर कर दिया। स्वास्थ्य विभाग ऐसे अस्पतालों की कुंडली तैयार करने में जुटा है।
राजधानी में 650 से अधिक लोगों की कोरोना से मौत हो चुकी है। सितंबर में सबसे ज्यादा अब तक 285 लोग दम तोड़ चुके हैं। अगस्त में 271 की जान गई, जबकि अप्रैल से जुलाई तक सिर्फ 90 ने दम तोड़ा था। मौत के बढ़ते आंकड़ों को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने डेथ ऑडिट के नियमों को कड़ा कर दिया है। अब हर पहलू की बारीकी से जांच की जा रही है। डेथ ऑडिट में यूनिसेफ की टीम भी लगी है।