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नई दिल्ली। बच्चों की औपचारिक शिक्षा शुरू करने की सही उम्र सात साल है। फिनलैंड में इसी उम्र में बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार किए जाते हैं। वे इसी उम्र में पढ़ने और सीखने में काफी रुचि दिखाते हैं। बीते पचास सालों से फिनलैंड में हम ऐसा ही कर रहे हैं।
फिनलैंड के विशेषज्ञ तुली मेकिनेन ने यह बातें दिल्ली शिक्षा सम्मेलन 2021 में बुधवार को कहीं। उन्होंने शिक्षण प्रशिक्षण को प्राथमिकता देने का सुझाव देते हुए कहा कि शिक्षकों को अपनी कक्षाओं में बाल व्यवहार के सभी पहलुओं के लिए तैयार रहना चाहिए।
दिल्ली सरकार की ओर से आयोजित अंतरराष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन 2021 के दूसरे दिन फिनलैंड, जर्मनी और भारत के विशेषज्ञों ने बच्चों को औपचारिक शिक्षा के लिए तैयार करने पर चर्चा की। इसमें तुली मेकिनेन ने कहा कि शिक्षकों का अच्छा प्रशिक्षण और उन्हें प्रोत्साहित करना उपयोगी होगा। साथ ही खेल-आधारित शिक्षा को पाठ्यक्रम में जोड़ना चाहिए। इस व्यावहारिक ज्ञान से वास्तविक परिवर्तन पैदा होता है जो काफी उपयोगी होता है।
सम्मेलन में अंबेडकर विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन एंड डेवलपमेंट की संस्थापक निदेशक रह चुकी प्रो विनीता कौल ने कहा कि नई शिक्षा नीति एनईपी 2020 के मद्देनजर दिल्ली सरकार को प्रशिक्षित शिक्षकों का एक कैडर तैयार करके उन्हें स्कूल प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बनाना चाहिए।
उन्होंने 3 से 8 वर्ष की आयु के छात्रों के लिए एक समग्र पाठ्यक्रम के महत्व पर प्रकाश डाला। प्रो कौल ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए भी मिश्रित प्रशिक्षण पर ध्यान देने पर बल दिया। इस पैनल चर्चा में डॉ दिव्या जालान (एक्शन फॉर एबिलिटी डेवलपमेंट एंड इनक्लूजन की संस्थापक सदस्य), सेबेस्टियन सुग्गेट (रेगन्सबर्ग विश्वविद्यालय जर्मनी में वरिष्ठ व्याख्याता शिक्षा), तुली मेकिनेन (प्री-स्कूल एजुकेटर फिनलैंड) ने हिस्सा लिया।
बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा और औपचारिक शिक्षा के चार प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा की गई। जिसमें स्कूली शिक्षा शुरू करने की उम्र, पूर्व शैक्षणिक और सामाजिक कौशल, सीखने के शुरुआती अंतराल को कम करना, एनईपी की सिफारिश के अनुरूप स्कूलों को तैयार करके मजबूत बुनियाद रखना शामिल रहे।
डॉ दिव्या जालान ने चर्चा में कहा कि विशेष आवश्यकता वाले बच्चे के जीवन में शिक्षा और अनुभवों के अंतराल को समझना महत्वपूर्ण है। शिक्षण तकनीकों को अधिक विविधतापूर्ण और रचनात्मक बनाने की आवश्यकता है।
चर्चा के समापन में शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया को सलाह दी गई कि मजबूत शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करें, शिक्षकों को प्रोत्साहित करें, और खासकर इस डिजिटल युग में बच्चों को अपना पर्यावरण महसूस करने योग्य बनाएं।
नई दिल्ली। बच्चों की औपचारिक शिक्षा शुरू करने की सही उम्र सात साल है। फिनलैंड में इसी उम्र में बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार किए जाते हैं। वे इसी उम्र में पढ़ने और सीखने में काफी रुचि दिखाते हैं। बीते पचास सालों से फिनलैंड में हम ऐसा ही कर रहे हैं।
फिनलैंड के विशेषज्ञ तुली मेकिनेन ने यह बातें दिल्ली शिक्षा सम्मेलन 2021 में बुधवार को कहीं। उन्होंने शिक्षण प्रशिक्षण को प्राथमिकता देने का सुझाव देते हुए कहा कि शिक्षकों को अपनी कक्षाओं में बाल व्यवहार के सभी पहलुओं के लिए तैयार रहना चाहिए।
दिल्ली सरकार की ओर से आयोजित अंतरराष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन 2021 के दूसरे दिन फिनलैंड, जर्मनी और भारत के विशेषज्ञों ने बच्चों को औपचारिक शिक्षा के लिए तैयार करने पर चर्चा की। इसमें तुली मेकिनेन ने कहा कि शिक्षकों का अच्छा प्रशिक्षण और उन्हें प्रोत्साहित करना उपयोगी होगा। साथ ही खेल-आधारित शिक्षा को पाठ्यक्रम में जोड़ना चाहिए। इस व्यावहारिक ज्ञान से वास्तविक परिवर्तन पैदा होता है जो काफी उपयोगी होता है।
सम्मेलन में अंबेडकर विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन एंड डेवलपमेंट की संस्थापक निदेशक रह चुकी प्रो विनीता कौल ने कहा कि नई शिक्षा नीति एनईपी 2020 के मद्देनजर दिल्ली सरकार को प्रशिक्षित शिक्षकों का एक कैडर तैयार करके उन्हें स्कूल प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बनाना चाहिए।
उन्होंने 3 से 8 वर्ष की आयु के छात्रों के लिए एक समग्र पाठ्यक्रम के महत्व पर प्रकाश डाला। प्रो कौल ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए भी मिश्रित प्रशिक्षण पर ध्यान देने पर बल दिया। इस पैनल चर्चा में डॉ दिव्या जालान (एक्शन फॉर एबिलिटी डेवलपमेंट एंड इनक्लूजन की संस्थापक सदस्य), सेबेस्टियन सुग्गेट (रेगन्सबर्ग विश्वविद्यालय जर्मनी में वरिष्ठ व्याख्याता शिक्षा), तुली मेकिनेन (प्री-स्कूल एजुकेटर फिनलैंड) ने हिस्सा लिया।
बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा और औपचारिक शिक्षा के चार प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा की गई। जिसमें स्कूली शिक्षा शुरू करने की उम्र, पूर्व शैक्षणिक और सामाजिक कौशल, सीखने के शुरुआती अंतराल को कम करना, एनईपी की सिफारिश के अनुरूप स्कूलों को तैयार करके मजबूत बुनियाद रखना शामिल रहे।
डॉ दिव्या जालान ने चर्चा में कहा कि विशेष आवश्यकता वाले बच्चे के जीवन में शिक्षा और अनुभवों के अंतराल को समझना महत्वपूर्ण है। शिक्षण तकनीकों को अधिक विविधतापूर्ण और रचनात्मक बनाने की आवश्यकता है।
चर्चा के समापन में शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया को सलाह दी गई कि मजबूत शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करें, शिक्षकों को प्रोत्साहित करें, और खासकर इस डिजिटल युग में बच्चों को अपना पर्यावरण महसूस करने योग्य बनाएं।