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दिल्ली नगर निगम चुनाव (Delhi MCD Election 2022) के लिए शुक्रवार शाम पांच बजे चुनाव प्रचार का शोर थम गया। रविवार चार दिसंबर को दिल्ली नगर निगम के लिए मतदान होगा। सात दिसंबर को चुनाव परिणाम आने के साथ ही पता चल पाएगा कि दिल्ली वालों ने शहर की मूल व्यवस्था को ठीक रखने के लिए किस दल पर भरोसा जताया है। नगर निगम चुनाव में जीत किसी भी दल को मिले, लेकिन इन चुनावों के लंबे दूरगामी असर को ध्यान में रखते हुए भाजपा, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस, तीनों ने अपना पूरा दमखम लगा दिया है।
दिल्ली नगर निगम चुनाव (Delhi MCD Election 2022) के लिए शुक्रवार शाम पांच बजे चुनाव प्रचार का शोर थम गया। रविवार चार दिसंबर को दिल्ली नगर निगम के लिए मतदान होगा। सात दिसंबर को चुनाव परिणाम आने के साथ ही पता चल पाएगा कि दिल्ली वालों ने शहर की मूल व्यवस्था को ठीक रखने के लिए किस दल पर भरोसा जताया है। नगर निगम चुनाव में जीत किसी भी दल को मिले, लेकिन इन चुनावों के लंबे दूरगामी असर को ध्यान में रखते हुए भाजपा, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस, तीनों ने अपना पूरा दमखम लगा दिया है।
भाजपा ने नगर निगम चुनावों में जीत का चौका लगाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। पार्टी ने हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, असम और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों और अनुराग ठाकुर, पीयूष गोयल, हरदीप सिंह पुरी जैसे दर्जनों केंद्रीय मंत्रियों को चुनाव प्रचार में झोंक कर यह बता दिया है कि उसके लिए नगर निगम का चुनाव किसी भी दृष्टि से कमतर नहीं है। हालांकि, इस बार भाजपा के शीर्ष नेता अमित शाह और बड़े स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ भाजपा के चुनावी अभियान से दूर रहे। योगी आदित्यनाथ का चुनाव प्रचार से दूर होना पार्टी के लिए अच्छा नहीं कहा जा रहा है क्योंकि माना जाता है कि पिछले नगर निगम चुनाव में उन्होंने ही अपने आक्रामक चुनाव प्रचार से दिल्ली की चुनावी हवा बदलकर रख दी थी और भाजपा जीत की हैट्रिक लगाने में सफल रही थी।
जीत के लिए किस पर भरोसा?
भाजपा को नगर निगम में जीत के लिए अपने काम से ज्यादा पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के करिश्मे पर भरोसा है। पार्टी को लगता है कि केंद्र सरकार के द्वारा गरीबों को प्रतिमाह दिए जा रहे राशन, कोरोना काल में लोगों की गई मदद, किसानों-महिलाओं को विभिन्न योजनाओं के माध्यम से दी गई आर्थिक सहायता और पीएम मोदी द्वारा दिल्ली के 3024 झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले गरीब परिवारों को दिया गया मकान उसे जीत दिलाने में कारगर होगा। पार्टी ने घोषणा कर रखी है कि यदि वह सत्ता में आएगी, तो हर झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले परिवार को पक्का मकान देगी। चूंकि, उसने 3024 गरीब परिवारों को मकान दे भी दिया है, यह दांव उसे गरीब लोगों के बीच लोकप्रिय बना रहा है। भाजपा ने एक झुग्गी वाले को अपना पार्षद उम्मीदवार बनाकर भी गरीबों के करीब पहुंचने की कोशिश की है।
ये है चुनौतियां
लेकिन भाजपा को नगर निगम में कथित तौर पर व्याप्त भ्रष्टाचार की कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। शहर में साफ-सफाई की उचित व्यवस्था न हो पाना उसके लिए बड़ी नाकामी साबित हुए हैं। सफाई कर्मचारियों को वेतन न दे पाने के मामले में भी उसकी खासी किरकिरी हुई थी। भाजपा इसके लिए दिल्ली सरकार को जिम्मेदार ठहराती रही है, लेकिन इन चुनावों में उसे जनता के इन सवालों का भी जवाब देना पड़ रहा है।
गरीब मतदाताओं के बीच दिल्ली सरकार की मुफ्त बिजली, पानी और स्वास्थ्य सुविधाओं की लोकप्रियता अभी भी है, लिहाजा उसके लिए सबसे ज्यादा चुनौती करीब 50 झुग्गी-झोपड़ी बहुल वाली सीटों पर मिलने की संभावना है। इन इलाकों में रहने वाले गरीब लोगों के लिए हर महीने बिजली के बिल में 200 यूनिट की छूट, महिलाओं के लिए परिवहन किराये में छूट और विभिन्न योजनाओं में मिल रही आर्थिक सहायता बड़ी आर्थिक मदद होते हैं। यही कारण है कि 2015 के विधानसभा चुनाव से ही इन इलाकों में आम आदमी पार्टी का कब्जा हो गया है। राजधानी की दो दर्जन से ज्यादा मुस्लिम बहुल सीटों पर भी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का दावा है। केंद्र सरकार के द्वारा झुग्गी-झोपड़ी वालों को दी गई मकान योजना इस वोट बैंक को केजरीवाल से कितना तोड़ पाती है, इसी मुद्दे पर यहां निर्णय होना है।