उच्च न्यायालय ने सात साल की अवधि में सर्वोदय एन्क्लेव इलाके में 77 पेड़ गायब होने संबंधी आरोप की जांच कर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने मामले की सुनवाई के दौरान डीसीएफ (दक्षिण) और ट्री अधिकारी दक्षिण प्रभाग, वन एवं वन्यजीव विभाग को याची भावीन कंधारी द्वारा दिसंबर 20 में दी गई शिकायत पर लिखित जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अदालत एक पर्यावरण कार्यकर्ता खंडारी की एक याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसने यह निर्देश देने की मांग की है चार सप्ताह के भीतर उसकी शिकायत पर आवश्यक कार्रवाई की जाए।
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता की शिकायत पर जल्द फैसला करने के संबंध में कोई आपत्ति नहीं है। अदालत ने सरकार के तर्क को स्वीकार कर याचिका का निपटारा करते हुए सरकार को छह सप्ताह की अवधि के भीतर आदेश पारित कर याची को सूचित करने का निर्देश दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि याची सरकार के जवाब से संतुष्ट न हो तो वह पुन: अदालत में याचिका दायर करने के लिए स्वतंत्र है।
याची ने अधिवक्ताआदित्य एन प्रसाद के जरिए दायर याचिका में आरोप लगाया कि उसने 2011-2012 और 2018-2019 में नई दिल्ली के सर्वोदय एन्क्लेव में किए गए दो बार पेड़ों की जनगणना के बाद संबंधित अधिकारी को शिकायत की, जिसमें पाया गया कि कॉलोनी में 77 पेड़ गायब हो गए हैं।
याची ने कहा 2012 की जनगणना के अंत में नई दिल्ली के सर्वोदय एन्क्लेव में 1000 पेड़ों को तत्काल लगाने की सिफारिश की गई थी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कॉलोनी में हरित आवरण बनाए रखा जा सके। याचिका में कहा गया है कि इसके बावजूद, वर्ष 2018 व 2019 में उपरोक्त कॉलोनी में किए गए एक अन्य पेड़ की गणना से पता चला कि कॉलोनी में सड़क के पेड़ की गिनती 21 नए पेड़ों को जोडने के बावजूद 7 साल की अवधि में 784 से 731 पेड़ों तक कमी थी।
उन्होंने कहा यह शिकायत मुख्य रूप से दो पेड़ों की जनगणना के बीच विसंगतियों पर आधारित थी जो वर्ष 2011 और 2012 और 2018 और 2019 में नई दिल्ली के सर्वोदय एन्क्लेव में आयोजित की गई थी, जिसके अनुसार यह पाया गया था कि 7 वर्षों की अवधि में कॉलोनी में 77 पेड़ गायब हो गए थे। याचिकाकर्ता ने बताया कि संबंधित प्राधिकरण ने दिल्ली संरक्षण अधिनियम, 1994 के तहत अवैध कटाई के खिलाफ आवश्यक कानूनी कार्रवाई शुरू करने के लिए शिकायत में किए गए अनुरोधों को न तो स्वीकार किया और न ही कार्रवाई की।
विस्तार
उच्च न्यायालय ने सात साल की अवधि में सर्वोदय एन्क्लेव इलाके में 77 पेड़ गायब होने संबंधी आरोप की जांच कर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने मामले की सुनवाई के दौरान डीसीएफ (दक्षिण) और ट्री अधिकारी दक्षिण प्रभाग, वन एवं वन्यजीव विभाग को याची भावीन कंधारी द्वारा दिसंबर 20 में दी गई शिकायत पर लिखित जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अदालत एक पर्यावरण कार्यकर्ता खंडारी की एक याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसने यह निर्देश देने की मांग की है चार सप्ताह के भीतर उसकी शिकायत पर आवश्यक कार्रवाई की जाए।
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता की शिकायत पर जल्द फैसला करने के संबंध में कोई आपत्ति नहीं है। अदालत ने सरकार के तर्क को स्वीकार कर याचिका का निपटारा करते हुए सरकार को छह सप्ताह की अवधि के भीतर आदेश पारित कर याची को सूचित करने का निर्देश दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि याची सरकार के जवाब से संतुष्ट न हो तो वह पुन: अदालत में याचिका दायर करने के लिए स्वतंत्र है।
याची ने अधिवक्ताआदित्य एन प्रसाद के जरिए दायर याचिका में आरोप लगाया कि उसने 2011-2012 और 2018-2019 में नई दिल्ली के सर्वोदय एन्क्लेव में किए गए दो बार पेड़ों की जनगणना के बाद संबंधित अधिकारी को शिकायत की, जिसमें पाया गया कि कॉलोनी में 77 पेड़ गायब हो गए हैं।
याची ने कहा 2012 की जनगणना के अंत में नई दिल्ली के सर्वोदय एन्क्लेव में 1000 पेड़ों को तत्काल लगाने की सिफारिश की गई थी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कॉलोनी में हरित आवरण बनाए रखा जा सके। याचिका में कहा गया है कि इसके बावजूद, वर्ष 2018 व 2019 में उपरोक्त कॉलोनी में किए गए एक अन्य पेड़ की गणना से पता चला कि कॉलोनी में सड़क के पेड़ की गिनती 21 नए पेड़ों को जोडने के बावजूद 7 साल की अवधि में 784 से 731 पेड़ों तक कमी थी।
उन्होंने कहा यह शिकायत मुख्य रूप से दो पेड़ों की जनगणना के बीच विसंगतियों पर आधारित थी जो वर्ष 2011 और 2012 और 2018 और 2019 में नई दिल्ली के सर्वोदय एन्क्लेव में आयोजित की गई थी, जिसके अनुसार यह पाया गया था कि 7 वर्षों की अवधि में कॉलोनी में 77 पेड़ गायब हो गए थे। याचिकाकर्ता ने बताया कि संबंधित प्राधिकरण ने दिल्ली संरक्षण अधिनियम, 1994 के तहत अवैध कटाई के खिलाफ आवश्यक कानूनी कार्रवाई शुरू करने के लिए शिकायत में किए गए अनुरोधों को न तो स्वीकार किया और न ही कार्रवाई की।