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जिन जंगलों का प्रयोग कभी नक्सली छिपने के लिए करते थे, आज वही जंगल जनजाति समाज के ग्रामीणों के लिए आय का जरिया बने हैं। वे इन जंगलों की देखभाल करते हैं और इनसे हासिल होने वाली उपज से अपनी आजीविका चलाते हैं। ये देश में अपनी तरह का पहला मॉडल है।
सफलता की यह कहानी है महाराष्ट्र के गडचिरोली जिले की 1400 से अधिक ग्राम पंचायतों की। इन्होंने वनों के साथ दोस्ती की नई इबारत लिखी है, जो पूरे देश के लिए एक मिसाल बनकर सामने आई है। उत्तराखंड सरकार इस पर ध्यान दे तो महाराष्ट्र की गोंडवाना विद्यापीठ यूनविर्सिटी का यह प्रयोग प्रदेश में वन पंचायतों के लिए वरदान साबित हो सकता है।
दून यूनिवर्सिटी में शनिवार को आयोजित एक सेमिनार में यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. प्रशांत श्रीधर के इस प्रस्तुतीकरण ने सबका ध्यान खींचा। उन्होंने बताया कि गडचिरोली जिले का 76 प्रतिशत क्षेत्र वनों के अधीन है। इनमें से 49 गौण वन उत्पाद (वन उपज) प्राप्त होते हैं।