हरियाणा की सियासत में बड़ा दखल रखने वाला डेरा सच्चा सौदा इस बार सक्रिय रूप से राजनीति का हिस्सा नहीं बना। लोकसभा व विधानसभा में किस पार्टी को समर्थन देना है, इसका फरमान कभी डेरामुखी के आदेशों के बाद डेरे की राजनीतिक विंग से जारी किया जाता था। मगर डेरामुखी को सजा होने के बाद पहली बार लोकसभा चुनाव में डेरे की इस तरह की कोई गतिविधि प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं दी। हरियाणा में डेरा सच्चा सौदे के लाखों की संख्या में अनुयायी हैं और हर सीट पर इन डेराप्रेमियों का अच्छा खास प्रभाव है।
हरियाणा में अभी तक जितने भी चुनाव हुए हैं, उन सभी चुनावों में लगभग एक तिहाई सीटों पर डेरा फेक्टर को काफी प्रभावशाली माना जाता रहा है। इसी वजह से हर पार्टी के नेता चुनावों से पहले डेरे में जाकर डेरामुखी से समर्थन मांगने में भी कोई गुरेज नहीं करते थे। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। डेरे में आयोजित एक धार्मिक सत्संग के दौरान हरियाणा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष एवं सिरसा से कांग्रेस प्रत्याशी डा. अशोक तंवर ही डेरे में संबंधित कार्यक्रम में भाग लेने गए थे। मगर अब लोकसभा चुनाव का नतीजे डेरे की सियासत को लेकर कुछ ओर ही इशारा कर रहे हैं।
हरियाणा में राजनीतिक मामलों के जानकार डा. रमेश मदान की माने तो इस बार डेराप्रेमियों ने साइलेंट वोट ही किया है, क्योंकि इस बार न तो डेरे की ओर से समर्थन को लेकर कोई स्पष्ट गाइडलाइन थी और न ही अधिकतर राजनीतिक दलों ने डेरे के चक्कर काटे। उन्होंने कहा कि अब नतीजे आने केबाद जो स्थिति सामने आई है, उससे तो यही प्रतीत हो रहा है कि डेराप्रेमियों की साइलेंट वोट का फायदा भाजपा को ही हुआ है। इतना ही नहीं डेरे में जाने वाले एकमात्र नेता कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष डा. अशोक तंवर अपनी सीट भी नहीं जीत पाए।
हरियाणा की सियासत में बड़ा दखल रखने वाला डेरा सच्चा सौदा इस बार सक्रिय रूप से राजनीति का हिस्सा नहीं बना। लोकसभा व विधानसभा में किस पार्टी को समर्थन देना है, इसका फरमान कभी डेरामुखी के आदेशों के बाद डेरे की राजनीतिक विंग से जारी किया जाता था। मगर डेरामुखी को सजा होने के बाद पहली बार लोकसभा चुनाव में डेरे की इस तरह की कोई गतिविधि प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं दी। हरियाणा में डेरा सच्चा सौदे के लाखों की संख्या में अनुयायी हैं और हर सीट पर इन डेराप्रेमियों का अच्छा खास प्रभाव है।
हरियाणा में अभी तक जितने भी चुनाव हुए हैं, उन सभी चुनावों में लगभग एक तिहाई सीटों पर डेरा फेक्टर को काफी प्रभावशाली माना जाता रहा है। इसी वजह से हर पार्टी के नेता चुनावों से पहले डेरे में जाकर डेरामुखी से समर्थन मांगने में भी कोई गुरेज नहीं करते थे। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। डेरे में आयोजित एक धार्मिक सत्संग के दौरान हरियाणा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष एवं सिरसा से कांग्रेस प्रत्याशी डा. अशोक तंवर ही डेरे में संबंधित कार्यक्रम में भाग लेने गए थे। मगर अब लोकसभा चुनाव का नतीजे डेरे की सियासत को लेकर कुछ ओर ही इशारा कर रहे हैं।
हरियाणा में राजनीतिक मामलों के जानकार डा. रमेश मदान की माने तो इस बार डेराप्रेमियों ने साइलेंट वोट ही किया है, क्योंकि इस बार न तो डेरे की ओर से समर्थन को लेकर कोई स्पष्ट गाइडलाइन थी और न ही अधिकतर राजनीतिक दलों ने डेरे के चक्कर काटे। उन्होंने कहा कि अब नतीजे आने केबाद जो स्थिति सामने आई है, उससे तो यही प्रतीत हो रहा है कि डेराप्रेमियों की साइलेंट वोट का फायदा भाजपा को ही हुआ है। इतना ही नहीं डेरे में जाने वाले एकमात्र नेता कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष डा. अशोक तंवर अपनी सीट भी नहीं जीत पाए।