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Dattatreya Jayanti 2022: कौन है भगवान दत्तात्रेय और जानिए इनसे जड़ी रोचक बातें
अनीता जैन , वास्तुविद
Published by: विनोद शुक्ला
Updated Wed, 07 Dec 2022 08:08 AM IST
सार
सनातन धर्म में भगवान दत्तात्रेय का विशिष्ट स्थान है। इनके अंदर गुरु और ईश्वर दोनों का स्वरूप निहित होता है। भगवान दत्त के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ। पूरे भारत में इनके अनेकों मंदिर हैं।
Dattatreya Jayanti 2022: भगवान दत्तात्रेय का पूजन और मंत्र का जाप करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है,सभी तरह के पाप,रोग-दोष और बाधाओं का नाश होता है।
- फोटो : pinterest
Dattatreya Jayanti 2022: ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अंश श्री दत्तात्रेय का जन्म मार्गशीर्ष पूर्णिमा को हुआ था,इसलिए इस पूर्णिमा का और भी महत्व बढ़ जाता है। इस बार यह 7 दिसंबर को है। पूर्णिमा तिथि के दिन पूर्ण चन्द्रमा के कारण सकारात्मकता होती है,इसलिए इस दिन पूजा-पाठ,व्रत-अनुष्ठान,दान एवं नदियों में स्न्नान का बहुत फल मिलता है। सनातन धर्म में भगवान दत्तात्रेय का विशिष्ट स्थान है। इनके अंदर गुरु और ईश्वर दोनों का स्वरूप निहित होता है। भगवान दत्त के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ। पूरे भारत में इनके अनेकों मंदिर हैं।
दत्तात्रेय पूर्णिमा का महत्व
इस दिन महादेव की परमप्रिय काशी में पापों का नाश करने वाली गंगा में स्न्नान करने से बहुत पुण्य मिलता है। इस दिन जो मनुष्य अपने पितरों का तर्पण करता है उसे पितृदोष से मुक्ति मिलती है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन इनकी उपासना तत्काल फलदायी होती है और इनके सिर्फ स्मरण मात्र से ये भक्तों के कष्टों का शीघ्र निवारण करते हैं। इस दिन भगवान दत्तात्रेय का पूजन और मंत्र का जाप करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है,सभी तरह के पाप,रोग-दोष और बाधाओं का नाश होता है। प्राणी को कर्म बंधन से मुक्ति मिलती है।
दत्तात्रेय ने इन्हें बनाया गुरु
श्रीमद्भागवत में दत्तात्रेयजी ने कहा है कि उन्होंने अपनी बुद्धि के अनुसार बहुत से गुरुओं का आश्रय लिया। इनके एक नहीं पूरे 24 गुरु हुए। इनके गुरुओं में पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु,आकाश,समुंद्र,चन्द्रमा व सूर्य जैसे आठ प्रकृति के तत्व हैं। जीव-जंतुओं में सर्प,मकड़ी,झींगुर,पतंगा,भौंरा,मधुमक्खी,मछली,कौआ,कबूतर,हिरण,अज़गर व हाथी सहित 12 गुरु हुए। बालक,लोहार,कन्या,और पिंगला नामक वेश्या को भी इन्होंने अपना गुरु स्वीकार किया। भगवान दत्तात्रेय ने कहा है कि हमें जीवन में जिस किसी से भी ज्ञान,विवेक व किसी न किसी रूप में कोई भी शिक्षा मिले,उसे ही अपना गुरु मान लेना चाहिए।
दत्तात्रेय नाम ऐसे पड़ा
श्री मदभागवत ग्रंथ में उल्लेख है कि महर्षि अत्रि ने जगत के पालनहार श्री विष्णु को पुत्र रूप में पाने की अभिलाषा की थी। उनकी इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए एक दिन भगवान ने प्रकट होकर महर्षि से कहा-'मैंने स्वयं को आपको दिया।'इसी देने के भाव से 'दत्त'और अत्रि के ज्येष्ठ पुत्र होने से आत्रेय का मिला हुआ रूप दत्तात्रेय हुआ एवं इनकी माता परम पतिभक्त सती अनुसूया थी। सती अनसुइया और महर्षि अत्रि के पुत्र दत्तात्रेय के तीन सिर और छ: भुजाएं हैं। इनके भीतर ब्रह्मा,विष्णु तथा महेश तीनों का ही संयुक्त रुप से अंश मौजूद है। पृथ्वी,गाय और वेद के रूप में चार कुत्ते सदैव इनके साथ रहते हैं।
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