Movie Review: तूफान
लेखक: अंजुम रजबअली, विजय मौर्या
कलाकार: फरहान अख्तर, मृणाल ठाकुर, हुसैन दलाल, मोहन अगाशे, विजय राज और परेश रावल
निर्देशक: राकेश ओमप्रकाश मेहरा
ओटीटी: प्राइम वीडियो
रेटिंग: ***
फरहान अख्तर हिंदी सिनेमा के उन गिनती के अभिनेताओं में है जो अपने किसी भी किरदार को करने से पहले उसकी महीनों तैयारी करते हैं। परदे पर फरहान अख्तर ने अब तक जितने भी किरदार निभाए हैं, उनमें वह उस किरदार जैसे ही हो जाते है। यही फरहान ने फिल्म ‘तूफान’ में भी किया है। फिल्म की कहानी बहुत नई नहीं है। ऐसी कहानियां देसी विदेशी फिल्मों में पहले भी देखी गई हैं। बस निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने इसमें दो अलग अलग धर्मों के किरदार जोड़कर इसे सामयिक तो बनाया ही, फिल्म को चर्चा में लाने का एक मुद्दा भी दे दिया है। फिल्म ‘तूफान’ एक विलक्षण फिल्म नहीं है लेकिन हां, ‘सैक्रेड गेम्स’, ‘मिर्जापुर’ और ‘गंदी बात’ से आगे भी कुछ ओटीटी पर देखने की राह तकने वालों के लिए एक अलग बयार जरूर है।
हिंदुस्तानी सिनेमा में बॉक्सिंग की फिल्मों का जब भी जिक्र होता है मिथुन चक्रवर्ती की फिल्म ‘बॉक्सर’ ज़रूर याद आती है। प्रियंका चोपड़ा ने भी ‘मैरी कॉम’ में अपना खून पसीना एक किया। अच्छी फिल्म आर माधवन की बनाई ‘साला खड़ूस’ भी रही। लेकिन, जिसने भी बॉक्सिंग चैंपियन मोहम्मद अली की बायोपिक ‘अली’ देखी है, उन्हें समझ आएगा कि बॉक्सिंग पर फिल्म बनाना आसान काम नहीं है। खासतौर पर अगर पैमाना ‘रेजिंग बुल’ या ‘सिंड्रेलामैन’ जैसी फिल्मों को माना जाए तो मुक्केबाज़ की जिंदगी को बॉक्सिंग रिंग से बाहर ले जाकर भारतीय सिनेमा में देखने की कोशिशें कम ही हुई है। फिल्म ‘तूफान’ एक मुक्केबाज के सब कुछ खो देने के बाद वापसी करने की कहानी है। वापसी इस फिल्म से निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा भी कर रहे हैं। पांच साल हो गए उनको अपने करियर की सबसे बड़ी फ्लॉप फिल्म दिए और अब जाकर वह भी समझ गए हैं, ‘अपनी इज्जत अपने हाथ होती है।’
लेखक: अंजुम रजबअली, विजय मौर्या
कलाकार: फरहान अख्तर, मृणाल ठाकुर, हुसैन दलाल, मोहन अगाशे, विजय राज और परेश रावल
निर्देशक: राकेश ओमप्रकाश मेहरा
ओटीटी: प्राइम वीडियो
रेटिंग: ***
फरहान अख्तर हिंदी सिनेमा के उन गिनती के अभिनेताओं में है जो अपने किसी भी किरदार को करने से पहले उसकी महीनों तैयारी करते हैं। परदे पर फरहान अख्तर ने अब तक जितने भी किरदार निभाए हैं, उनमें वह उस किरदार जैसे ही हो जाते है। यही फरहान ने फिल्म ‘तूफान’ में भी किया है। फिल्म की कहानी बहुत नई नहीं है। ऐसी कहानियां देसी विदेशी फिल्मों में पहले भी देखी गई हैं। बस निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने इसमें दो अलग अलग धर्मों के किरदार जोड़कर इसे सामयिक तो बनाया ही, फिल्म को चर्चा में लाने का एक मुद्दा भी दे दिया है। फिल्म ‘तूफान’ एक विलक्षण फिल्म नहीं है लेकिन हां, ‘सैक्रेड गेम्स’, ‘मिर्जापुर’ और ‘गंदी बात’ से आगे भी कुछ ओटीटी पर देखने की राह तकने वालों के लिए एक अलग बयार जरूर है।
हिंदुस्तानी सिनेमा में बॉक्सिंग की फिल्मों का जब भी जिक्र होता है मिथुन चक्रवर्ती की फिल्म ‘बॉक्सर’ ज़रूर याद आती है। प्रियंका चोपड़ा ने भी ‘मैरी कॉम’ में अपना खून पसीना एक किया। अच्छी फिल्म आर माधवन की बनाई ‘साला खड़ूस’ भी रही। लेकिन, जिसने भी बॉक्सिंग चैंपियन मोहम्मद अली की बायोपिक ‘अली’ देखी है, उन्हें समझ आएगा कि बॉक्सिंग पर फिल्म बनाना आसान काम नहीं है। खासतौर पर अगर पैमाना ‘रेजिंग बुल’ या ‘सिंड्रेलामैन’ जैसी फिल्मों को माना जाए तो मुक्केबाज़ की जिंदगी को बॉक्सिंग रिंग से बाहर ले जाकर भारतीय सिनेमा में देखने की कोशिशें कम ही हुई है। फिल्म ‘तूफान’ एक मुक्केबाज के सब कुछ खो देने के बाद वापसी करने की कहानी है। वापसी इस फिल्म से निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा भी कर रहे हैं। पांच साल हो गए उनको अपने करियर की सबसे बड़ी फ्लॉप फिल्म दिए और अब जाकर वह भी समझ गए हैं, ‘अपनी इज्जत अपने हाथ होती है।’