Movie Review: लूडो
कलाकार: अभिषेक बच्चन, आदित्य रॉय कपूर, राजकुमार राव, रोहित सराफ, फातिमा सना शेख, सान्या मल्होत्रा, पर्ल मैनी, इनायत वर्मा और पंकज त्रिपाठी आदि
निर्देशक: अनुराग बसु
ओटीटी: नेटफ्लिक्स
रेटिंग: ***
ओटीटी पर दिखने वाला सिनेमा अब सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अधीन हो चला है। ये फैसला अगर पहले से ओटीटी पर मौजूद सामग्री पर भी लागू हुआ और अनुराग बसु को अपनी फिल्म ‘लूडो’ को सेंसर कराने की नौबत आई तो इसे शायद ‘वयस्कों के लिए’ सर्टिफिकेट के साथ रिलीज होना पड़े। लेकिन, ‘लूडो’ में इस्तेमाल की गईं गालियां और आदित्य रॉय कपूर वाले ट्रैक की गैर जरूरी हरकतें निकाल दें तो ये फिल्म कमाल की है। रिव्यू के पहले ही पैरे में ये बातें इसलिए भी लिख दी जा रही हैं ताकि कहीं आप ये फिल्म अपने स्मार्ट टीवी पर परिवार के साथ देखने न बैठ जाएं। सिनेमा अब पारिवारिक और वैयक्तिक हिस्सों में बंट रहा है। और, ऐसी तमाम एडल्ट फिल्में हैं जिन्हें आप अपने बड़े हो चुके बच्चों के साथ देख सकते हैं, लेकिन फिर ‘लूडो’ के लिए ये वैधानिक चेतावनी जरूरी है।
फिल्म ‘लूडो’ कोई ढाई तीन साल पहले से बन रही फिल्म है। अनुराग बसु की अपनी एक और फिल्म ‘जग्गा जासूस’ की रिलीज के लिए चल रहे संघर्ष के दिनों की। अनुराग जब तक भट्ट भाइयों के साथ ‘साया’, ‘मर्डर’ ‘तुमसा नहीं देखा’ और ‘गैंगस्टर’ बनाते रहे, वह सेफ खेलने वाले ऐसे फिल्ममेकर बने रहे, जिसका अपना कोई दृष्टिकोण सिनेमा का बनता दिखता नहीं था। फिर आई ‘लाइफ इन ए मेट्रो’। और, इस एक फिल्म ने न सिर्फ अनुराग बसु के प्रति दर्शकों का नजरिया बदल दिया बल्कि फिल्म जगत ने भी उन्हें एक अलग नजरिये से देखना शुरू किया। अनुराग ने फिर दो बेहतरीन फिल्में ‘काइट्स’ और ‘बर्फी’ बनाईं। मुझसे पूछे तों ‘बर्फी’ ऑस्कर पुरस्कार जीतने लायक फिल्म है। कमतर फिल्म ‘जग्गा जासूस’ भी नहीं है लेकिन उसे आप खालिस मनोरंजन के लिए नहीं देख सकते।
अनुराग की नई फिल्म ‘लूडो’ एक ऐसी फिल्मावली है जिसमें फिल्म के भीतर फिल्म चल रही है। ‘ओम शांति ओम’ टाइप नहीं बल्कि ऑल्ट बालाजी की ‘गंदी बात’ टाइप। वीडियो में जो लड़की है, उसकी शादी होने वाली है। और, जो लड़का है वो लड़की को सतर्क कर ये वीडियो इंटरनेट से हटवाना चाहता है। बिट्टू जेल से लौट आया है। उसकी बीवी किसी दूसरे से ब्याह कर चुकी है। बिटिया वह वापस पाना चाहता है, लेकिन बीच में 90 लाख का रोड़ा है। मामला राहुल अवस्थी का भी नर्स मैडम के साथ सेट हो सकता है क्योंकि इलाके के पपलू डॉन का नाम भी राहुल जो ठहरा, वैसे प्यार से लोग उसे सत्तू भैया कहते हैं। कहानियां चार हैं। चौराहे चालीस से ऊपर हैं और किरदार भी कम नहीं हैं। तो शुरू में हो सकता है आपको कहानियां स्वेटर की बुनाई के फंदों की तरह गिनते रहनी पड़ें लेकिन एक बार नाप समझ में आ गई तो ये भी समझ आ जाएगा कि कहां फंदे गिराने हैं और कहां बढ़ाने हैं। और, ये इस बुनावट को लिखने की कसावट ही है कि एक कहानी दूसरी कहानी के ऊपर से फिसलती रहती है और दर्शक को देखने में कहीं कोई बाधा आने नहीं पाती। इसके लिए फिल्म के वीडियो एडीटर अजय शर्मा को दस में दस नंबर दिए जा सकते हैं।
अब आगे बढ़ते हैं और देखते हैं कि कलाकारों की पलटन में किसे महावीर चक्र मिला और किसे मिला परमवीर चक्र। दोनों का फर्क अगर आपको पता है तो बता देते हैं कि अभिनेता अभिषेक बच्चन ने इस फिल्म में परमवीर चक्र जीता है। बदमाशी का रोल जूनियर बच्चन कमाल का इसके पहले मणिरत्नम की ‘युवा’ में भी कर चुके हैं और उस किरदार का अक्स आपको यहां भी दिखता है। अभिषेक की जोड़ीदार बनी बाल कलाकार इनायत वर्मा को देखना अपने आप में अलग अनुभव है। अगर इस उम्र में ये इतनी ‘काकी’ हैं, तो फिर आगे तो..। दूसरे नंबर पर यहां हैं अदाकारी के राजकुमार यानी राजकुमार राव। मिथुन चक्रवर्ती के फैन के किरदार में सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या हुआ टाइप प्रेमी बने राजकुमार के इस किरदार की तासीर बहुत गर्म है। तपिश उसकी शादीशुदा प्रेमिका और एक बच्चे की मां बनी फातिमा सना शेख की भी कम नहीं है। फिल्म का सरप्राइज पैकेज रोहित और पर्ल की अदाकारी है। अनुराग बसु ने दो हीरे अदाकारी के समंदर से खोजे हैं, इनकी कढ़ाई और गढ़ाई पर जमाने की सतर्क नजर रहने वाली है। फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी हैं, आदित्य रॉय कपूर और सान्या मल्होत्रा। दोनों का ट्रैक दिलचस्प है, पर दोनों ने अभिनय बहुत औसत किया है। पंकज त्रिपाठी का सत्तू भैया वाला रोल फिल्म की जान है।
फिल्म ‘लूडो’ में अनुराग बसु ने एक बार फिर सतरंगी दुनिया का इंद्रधनुष अपने किरदारों के साथ साथ उनके आस पास दिखने वाली रंग बिरंगी चीजों से सजाया है। हर फ्रेम में रंग समेटने की उनकी आदत उनकी कहानी को सहज बनाती है। कोलकाता और उसके आसपास के इलाके अनुराग की फिल्मों को खूब संजाते संवारते हैं। ये लोकेशन्स ‘लूडो’ के भी खूब काम आती है। सिनेमैटोग्राफी वर्ल्ड क्लास है। बैकग्राउंड म्यूजिक उत्तम है। बस प्रीतम का सुर इस बार सही नहीं लगा है। सईद कादरी से बेहतर गाने की उम्मीद थी। संदीप श्रीवास्तव और श्लोक लाल के लिखे गाने भी कुछ खास नहीं हैं। अरिजीत सिंह जब तक कामयाब हैं, चल ही रहे हैं, लेकिन इन्हें भी अपना फर्मा कभी न कभी तो तोड़ना ही होगा। अनुराग बसु के लिए ये फिल्म ‘जग्गा जासूस’ से आगे बढ़ने की अच्छी पायदान है और भले फिल्म आप अकेले ही देख रहे हों, लेकिन चेहरे पर ये मुस्कान आपके तब भी छोड़ ही जाती है।
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