अपनी पहली ही फिल्म से 25 देसी-विदेशी फिल्म पुरस्कार जीत लेने वाले रितेश बत्रा अमेरिका में रहकर भारतीय संवेदनाओं पर फिल्में बनाते हैं। उनकी अगली फिल्म फोटोग्राफ रिलीज के लिए तैयार है। अमर उजाला ने की रितेश बत्रा से ये खास मुलाकात।
'लंचबॉक्स' जैसी सुपरहिट फिल्म के बाद दूसरी फिल्म बनाने में आपको छह साल लग गए। क्या वजह रही इसकी?
'लंचबॉक्स' के बाद मैं न्यूयॉर्क चला गया था। वहां मैंने रॉबर्ट रेटफर्ड के साथ 'अवर सोल्स एट नाइट' बनाई, 'द सेंस ऑफ एन एंडिंग' का डायरेक्शन किया था लेकिन अब मेरी योजना है मैं हर साल एक हिंदी फिल्म जरूर बनाऊं। मेरी फिल्म 'लंचबॉक्स' को इरफान और नवाज ने दूसरे ही स्तर तक पहुंचा दिया था। मुझे उम्मीद भी नहीं थी कि ये इतनी बड़ी हिट होगी।
मुंबई के एक मध्यमवर्गीय परिवार से निकलकर आप अमेरिका पहुंच गए, फिल्म मेकिंग का शौक कब जगा?
मेरा कोई बैकग्राउंड फिल्म इंडस्ट्री से नहीं है। जब मैंने 'लंचबॉक्स' लिखी तब चार साल तक केवल ये सीखा कि फिल्म कैसे बनाई जा सकती है। हां, लिखने का शौक बचपन से ही था। सिनेमा के लिए बैकग्राउंड नहीं कहानी कहने की कला जरूरी है। मैं बचपन से कहानियां पढ़ता रहा हूं और अपने अंदर से भी कहानियां बनाता हूं। 80 और 90 के दशक में अमीर लड़की, गरीब लड़के के प्यार पर बनी फिल्मों को देख-देखकर मैं बड़ा हुआ हूं। फोटोग्राफ फिल्म की कहानी मेरी इन्हीं यादों से निकली है। ये एक फोटोग्राफर और एक सीए स्टूडेंट की लव स्टोरी है।
फोटोग्राफ की कहानी में नवाजुद्दीन और सान्या कैसे आए?
जब मैंने ये फिल्म लिखी तो नवाजुद्दीन का चेहरा ही बार-बार सामने आ रहा था। नवाजुद्दीन सिद्दीकी जितने अच्छे एक्टर हैं उससे भी ज्यादा अच्छे इंसान हैं। आमतौर पर मारधाड़ वाली फिल्मों में नवाज दिखते हैं ऐसी सॉफ्ट लव स्टोरी पर नवाजुद्दीन का एक अलग ही रूप नजर आता है। नवाजुद्दीन इस फिल्म में खुद का ही किरदार निभाते दिखेंगे। सान्या को मैंने दंगल में देखा था। उनकी एक्टिंग काफी अच्छी लगी। ऑडिशन में भी उन्होंने अच्छा परफॉर्म करके दिखाया।
शॉर्ट फिल्मों से करियर शुरू करके फीचर फिल्म तक पहुंचने का संघर्ष कैसा रहा? क्या सबक मिले इस दौरान?
शॉर्ट फिल्म जरिया होती हैं काम सीखने का। किसी भी बड़े काम को करने के लिए शुरूआत छोटे से ही करनी चाहिए। इससे हम बड़े काम की बारीकियां सीख जाते हैं। मेरा सबक ये रहा कि कला के तौर पर फिल्म मेकिंग किसी को भी सिखाई जा सकती है। लेकिन किसी फिल्म का आधार और इसकी आत्मा आप किसी को सिखा नहीं सकते, ये एक फिल्ममेकर के एहसासों का आइना होता है।