भारत चीन युद्ध पर बनी फिल्म ‘हकीकत’ हो या फिर भारत पाकिस्तान युद्ध पर बनी फिल्म ‘बॉर्डर’ दोनों में फौजियों की निजी जिंदगी के एहसासों को कुछ इस तरह इनके निर्देशकों ने दिखाया कि इन्होंने दर्शकों को रुलाकर रख दिया। सिनेमा का इतिहास भी यही कहता है कि युद्ध अगर आंखों में पानी ले आता है तो बॉक्स ऑफिस भी उन्हीं की कहानी कहता है। लेकिन, 21वीं सदी का हिंदी सिनेमा एहसासों को कहीं पीछे छोड़ आया सिनेमा है। अब यहां सिनेमा नहीं प्रोजेक्ट बनते हैं। उनकी मार्केंटिंग किसी प्रोडक्ट की तरह होती है। यहां तक कि इनकी पहली झलक भी आमतौर पर उन्हीं लोगों को दिखाई जाती है जो इस ‘प्रोडक्ट’ की शान में कसीदे गढ़ सकें। जो कंपनी फिल्मों के ओटीटी राइट्स खरीदती है, कई बार वही इनको मिलने वाले पुरस्कारों की प्रायोजक भी बन जाती है। आईएमडीबी का गोरखधंधा अब सामने आ ही चुका है तो कसौटियों के करप्ट होने के इस दौर में आखिर कारगिय युद्ध पर बना सिनेमा बार बार दर्शकों की कसौटी पर क्यों चूक जाता है, आइए समझने की कोशिश करते हैं।
एलओसी कारगिल (2003)
भारत पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध पर साल 1997 में फिल्म 'बॉर्डर' बनाने वाले निर्देशक जे पी दत्ता ने कारगिल युद्ध पर भी फिल्म बनाई, एलओसी कारगिल (LOC Kargil)। जे पी दत्ता ने फिल्म में हिंदी सिनेमा के बेहतरीन कलाकारों की फौज इकट्ठी की। संजय दत्त, सुनील शेट्टी, करण नाथ, अजय देवगन, अभिषेक बच्चन, सैफ अली खान, अक्कीनेनी नागार्जुन, अक्षय खन्ना, रानी मुखर्जी, मनोज बाजपेयी, आशुतोष राणा, करीना कपूर, ईशा देओल, रवीना टंडन, प्रीति झंगियानी और महिमा चौधरी जैसे सितारों की इस बारात की अगवानी बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों ने नहीं की। फिल्म में कैप्टन विक्रम बत्रा का किरदार अभिषेक बच्चन ने निभाया और उनका किरदार लोगों को अरसे तक याद भी रहा लेकिन फिल्म नहीं चली। चार घंटे लंबी ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर चार हफ्ते भी शान से खड़ी नहीं रह सकी।
धूप (2003)
इस फिल्म का जिक्र यहां पर इसलिए कि युद्ध के साइडइफेक्ट्स पर हिंदी सिनेमा में इससे बेहतर फिल्म शायद ही दूसरी बनी हो। राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अश्विनी चौधरी (Ashwini Chaudhary) के निर्देशन में बनी यह फिल्म सीधे तौर पर कारगिल युद्ध (Kargil War) पर आधारित तो नहीं है लेकिन उस युद्ध से इस फिल्म का नाता जरूर है। यह फिल्म कारगिल युद्ध में 17 जाट रेजीमेंट के हिस्सा रहे कैप्टन अनुज नय्यर के परिवार की कहानी है। युद्ध में अनुज नय्यर शहीद हो गए तो भारत सरकार ने पुरस्कार स्वरूप उनके परिवार को एक पेट्रोल पंप दिया। लेकिन, देश की नौकरशाही उस पेट्रोल पंप को चलाने के लिए अनुज के परिवार को अनुमति देने में नखरे करती है। यह फिल्म इसी मसले के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म में ओमपुरी, रेवती, गुल पनाग, संजय सूरी और यशपाल शर्मा मुख्य भूमिकाओं में हैं। बॉक्स ऑफिस पर इस फिल्म को देखने भी ज्यादा दर्शक नहीं आए।
स्टंप्ड (2003)
इस फिल्म का जॉनर वैसे तो स्पोर्ट्स ड्रामा है लेकिन कहानी का संबंध कारगिल युद्ध से भी है। फिल्म में अली खान और रवीना टंडन मुख्य भूमिकाओं में हैं। गौरव पांडे के निर्देशन में बनी इस फिल्म में वर्ष 1999 का क्रिकेट विश्व कप और कारगिल युद्ध दोनों एक साथ अपना प्रभाव छोड़ने की कोशिश करते हैं। जहां एक ओर लोग क्रिकेट विश्व कप में भारत के जीतने की कामना कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ फिल्म की मुख्य किरदार रीना आर सेठ कारगिल में युद्ध लड़ रहे अपने पति मेजर राघव सेठ की जीत की कामना कर रही थी। फिल्म कब आई और कब गई किसी को पता भी नहीं चला। हां, फिल्म के सिनेमाघरों से उतरने के बाद भी इसका विशाल पोस्टर जरूर जुहू चौपाटी के पास हफ्तों तक लोगों को नजर आता रहा।
लक्ष्य (2004)
फिल्म लक्ष्य (Lakshya) कारगिल युद्ध से प्रेरित जरूर है लेकिन इसकी कहानी एकदम काल्पनिक है। फिल्म में एक नाकारा निकम्मा लड़का करण शेरगिल होता है जिसका जिंदगी में कोई लक्ष्य नहीं है। वह ऐसे ही मजे मजे में भारतीय सेना में भर्ती हो जाता है। लेकिन, जब उसे पता चलता है कि एक सैनिक की जिंदगी तो बहुत मुश्किल होती है तो वह सेना छोड़ देता है। ऐसा काम करने की वजह से उसकी प्रेमिका रोमिला दत्ता उससे दूर हो जाती है। अपनी प्रेमिका की नजर में खुद को बहादुर साबित करने के लिए करण फिर से सेना में भर्ती हो जाता है और कारगिल युद्ध भी लड़ता है। फरहान अख्तर के निर्देशन में बनी इस फिल्म में ऋतिक रोशन, प्रीति जिंटा, अमिताभ बच्चन आदि कलाकारों ने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं। इतने बड़े बड़े सितारे भी कारगिल पर बनी फिल्मों को मिले बॉक्स ऑफिस अभिशाप से इस फिल्म को मुक्ति नहीं दिला पाए। फिल्म फ्लॉप रही।