'पाताल लोक' से जयदीप अहलावत को ऐसी लोकप्रियता मिली कि आयुष्मान खुराना को 'एन एक्शन हीरो' के लिए जयदीप अहलावत के डेट्स के हिसाब से अपनी तारीखें बदलनी पड़ीं। इस बात का जिक्र करने पर जयदीप अहलावत सिर्फ मुस्कराकर रह जाते हैं। जयदीप अहलावत को ओटीटी से पहले सिनेमा ने ही बांहें पसारकर अपनाया। कुछ अच्छे किरदार भी उन्होंने किया लेकिन असल पहचान उन्हें ‘पाताललोक’ ने ही दिलाई। फिल्म 'एन एक्शन हीरो' में आयुष्मान खुराना और जयदीप अहलावत के बीच सीधा मुकाबला है। और, इस मुकाबले पर ही फिल्म का असली आकर्षण टिका हुआ है। उनसे एक संक्षिप्त मुलाकात..
फिल्म ‘एन एक्शन हीरो’ के ट्रेलर में आयुष्मान खुराना के साथ आपके जबरदस्त एक्शन सीन हैं। इनके किस तरह की तैयारियां करनी पड़ीं?
फिल्म ‘एन एक्शन हीरो’ के एक्शन सीन्स के लिए ज्यादा बॉडी डबल की जरूरत नहीं पड़ी। मुझे लगता है कि आयुष्मान को भी बॉडी डबल की जरुरत नहीं पड़ी, शूटिंग पर जाने से पहले एक्शन सीन की पूरी तैयारी के साथ जाते हैं। एक्शन टीम में मुंबई और इटली के भी लोग थे। फिल्म में बहुत सारे एक्शन सीन है तो बहुत अच्छे तरीके से डिजाइन किया गया है। बहुत सारे गाड़ियों के रनिग शॉट है तो बहुत सेफ्टी का ध्यान रखा गया था। जब भी किसी एक्शन सीन की शूटिंग करनी होती थी तो, उसकी दो दिन पहले हम लोग ठीक से रिहर्सल करते थे, ऐसा नहीं था कि सेट पर पहुंचते ही हम लोग शूटिंग शुरू कर देते थे। रिहर्सल करने के बाद शूटिंग आसान हो जाता था।
एक्शन में आप अपना रोल मॉडल किसे मानते हैं?
अगर हम बॉलीवुड की बात करें तो यहां पहले दारा सिंह थे, धर्मेंद्र जी हैं, आज भी उनको एक्शन हीरो ही माना जाता है, सनी देयोल एक्शन के बहुत बडे स्टार हुए, सुनील शेट्टी, अक्षय कुमार अपने अपने समय में एक्शन करते रहे। आज के दौर में टाइगर श्रॉफ और विद्युत जामवाल बहुत कमाल का एक्शन करते हैं मैंने टाइगर श्रॉफ के साथ 'बागी' और विद्युत जामवाल के साथ 'कमांडो' में काम किया है। आज बहुत सारी टेक्नॉलजी आ गई है। एक्शन में कई तरह के नए नए प्रयोग हो रहे हैं।
'पाताल लोक' में ऐसा क्या कर दिया आपने कि वह किरदार आप की बाकी फिल्मों के किरदार पर भारी पड़ गया?
‘पाताल लोक’ की कहानी बहुत प्यारी थी और बहुत ही खूबसूरती से लिखी गई थी, जब आप पूरी ईमानदारी के साथ काम करते हैं तो, बात दर्शकों तक पहुंचती है। ‘पाताल लोक’ में हाथीराम चौधरी का मेरा किरदार ही ऐसा था कि लोगों ने खुद से रिलेट किया। उसमें पिता-पुत्र का जो संबंध दिखाया गया, उसे हर मध्यमवर्गीय परिवार ने खुद से जुड़ा हुआ महसूस किया। हम सभी अपने पिता को लेकर बहुत सजग रहते हैं। आज के 15 साल के बच्चों को तो लगता है कि उन्हे सब कुछ पता है, पापा तो बस पगला गए हैं। हम सब उस दौर से गुजरे हैं। हाथीराम जब अपने बेटे के लिए बाहर निकलता है तो आप उसे हीरो के रूप में भी देखते हैं।
जब आप 15 साल के थे, उस समय सिनेमा का कैसा प्रभाव था आपके ऊपर, किस तरह की फिल्में आप देखते थे, कब लगा आपको अभिनय में आना है?
जब हम सब 90 के दशक में बडे हो रहे थे तब उस समय सिनेमा का प्रभाव हम सब पर होता है। उस समय जो भी फिल्में आती थी सब देखते थे। सिनेमा ही दुनिया को जानने का एक तरीका था, उस समय अखबार में हफ्ते में एक दिन फिल्मों के बारे में लेख आता था। वही पढकर फिल्मी दुनिया के बारे में जानते थे। उस समय कभी सोचा नहीं था कि अभिनय के फील्ड में आना है। ग्रेजुएशन के बाद आर्मी में जाने की सोच रहा था।