जोशीमठ की बसागत के साक्षी कल्पवृक्ष पर ही खतरा मंडराने लगा है। आठवीं सदी से यह वृक्ष यहां के लोगों के सुख-दुख को गवाह बना हुआ है। अब, इस प्राचीन धरोहर की कई शाखाएं सूखने लगी हैं लेकिन इसके संरक्षण के लिए ठोस इंतजाम नहीं हो रहे हैं।
नगर क्षेत्र के ऊपरी तरफ ज्योतिर्मठ है जहां पर प्राचीन कल्पवृक्ष है। मान्यता है कि आठवीं सदी में केरल के कालसी में 11 वर्ष की उम्र में शंकराचार्य यहां पहुंचे थे। उन्होंने इस वृक्ष के नीचे गुफा में बैठकर पांच वर्ष तक तपस्या की। इसी स्थान पर उन्हें ज्योति के दर्शन हुए जिससे यहां का नाम ज्योतिर्मठ पड़ा।
बाद में ज्योतिर्मठ का अपभ्रंश होकर यह क्षेत्र जोशीमठ कहा जाने लगा। करीब 21 मीटर व्यास वाले इस वृक्ष की कई शाखाएं सूखने लगी है। साथ ही बीच का कुछ हिस्सा खोखला होता जा रहा है।
नगर क्षेत्र के ऊपरी तरफ ज्योतिर्मठ है जहां पर प्राचीन कल्पवृक्ष है। मान्यता है कि आठवीं सदी में केरल के कालसी में 11 वर्ष की उम्र में शंकराचार्य यहां पहुंचे थे। उन्होंने इस वृक्ष के नीचे गुफा में बैठकर पांच वर्ष तक तपस्या की। इसी स्थान पर उन्हें ज्योति के दर्शन हुए जिससे यहां का नाम ज्योतिर्मठ पड़ा।
बाद में ज्योतिर्मठ का अपभ्रंश होकर यह क्षेत्र जोशीमठ कहा जाने लगा। करीब 21 मीटर व्यास वाले इस वृक्ष की कई शाखाएं सूखने लगी है। साथ ही बीच का कुछ हिस्सा खोखला होता जा रहा है।