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उजड़ी दीवारों पर पेंटिंग बना लौटाई वीरान पहाड़ की रंगत

विनोद मुसान/ अमर उजाला, देहरादून Updated Mon, 03 Jul 2017 08:46 AM IST
deepak ramola stops migration through painting
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टिहरी जनपद के चंबा-धनोल्टी मार्ग पर बसा सौड गांव इन दिनों दीवारों पर खिलखिलाती पेंटिंग के कारण सुर्खियों में है। यहां कोई आर्ट गैलरी या वर्कशॉप नहीं चल रही, बल्कि पलायन के दंश से वीरान हो गए गांव की उजड़ी दीवारों पर कुछ उत्साही युवा रंग भर रहे हैं। ताकि दुनिया का ध्यान इस ओर आकर्षित कर सकें। ‘प्रोजेक्ट फ्यूल’ के तहत एक जून को शुरू हुई इस मुहिम में देश के विभिन्न हिस्सों से आए करीब 100 से अधिक युवा अब तक 50 से अधिक घरों की दीवारों पर विभिन्न प्रकार की आकृतियां उकेर चुके हैं।
 
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इस अनूठे कार्य का श्रेय जाता है चंबा ब्लाक के कोट गांव निवासी युवा दीपक रमोला को। आर्मी स्कूल क्लेमेंटटाउन से स्कूलिंग करने के बाद मुंबई में रह रहे दीपक को पलायन का दर्द यहां खींच लाया। उन्होंने कुछ ऐसा करने की ठानी, जिससे पहाड़ में लगातार हो रहे पलायन की ओर दुनिया का ध्यान खींचा जा सके।
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इसके बाद ‘प्रोजेक्ट फ्यूल’ के तहत शुरू हुई गांव के खाली पड़े घरों की दीवारों को रंगों से भरने की मुहिम। दीपक के निर्देशन और हेड आर्टिस्ट पूर्णिमा सुकुमार के नेतृत्व में विभोर यादव, साबित तिश्केर, नीतिश यादव, श्रद्धा बख्शी, लैला बजीर अली, खाना, नीरव दोसी और अन्य युवा पिछले एक माह से रात दिन इस काम को अंजाम दिया। प्रोजेक्ट 30 जून को खत्म हो गया।
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यूं तो उत्तराखंड के हर कोने को प्रकृति ने खास नेमत बख्शी है, लेकिन सौड गांव की बात ही निराली है। प्रकृति की गोद में बसा ये गांव दूर से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। लेकिन दुर्भाग्य यहां रह रहे लोगों को ही यहां की अबोहवा रास नहीं आई। कुछ साल पहले तक गांव में 90 से अधिक परिवार निवास करते थे। लेकिन धीरे-धीरे गांव खाली होता गया। अब यहां रह रहे परिवारों की संख्या मात्र 12 रह गई है।
 
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सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव ने लोगों को गांव से पलायन करने पर मजबूर कर दिया। लोगों ने मूल गांव से इतर सुविधाजनक जड़ीपानी, कणाताल, ढांगधार, सनगांव, अंधियारगढी, पाताल देवी सहित अन्य स्थानों पर बसना शुरू कर दिया। जिसकी परणीति यह हुई की गांव धीरे-धीरे खाली होता चला गया। आज इस गांव के ज्यादातर मकान जीर्ण-शीर्ण स्थिति में पहुंच गए हैं। कुछ तो देखभाल के अभाव में पूरी तरह खंडहर में तब्दील हो चुकें हैं। ये बात अलग है कि अब मुख्य सड़क से गांव तक करीब 11 किमी दूरी तक सड़क पहुंच चुकी है।
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