मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को भंग करने का एलान करके धर्म की सियासत में बड़ा दांव चला है। तय वक्त पर वादा निभाकर उन्होंने रूठे तीर्थ पुरोहितों को न सिर्फ मनाने का काम किया, बल्कि कांग्रेस के हाथों से मुद्दा छीनकर एक तीर से दो निशाने साधे।
चारधाम देवस्थानम बोर्ड: अपने फैसलों पर अपनों से ही घिर गई थी भाजपा, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई थी याचिका
सत्ता की बागडोर हाथों में आने के दिन से ही धामी पर देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को भंग करने का दबाव था। अधिनियम के विरोध में आंदोलित तीर्थ पुरोहित, पंडा समाज उनके समक्ष पहुंचे थे। उनसे पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने भी वादा किया था, लेकिन वादा पूरा करने से पहले उनकी सत्ता से विदाई हो गई।
उत्तराखंड: सीएम धामी का फैसला, चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम वापस, सदन में लगेगी मुहर
विधानसभा चुनाव तीर्थ पुरोहितों के लिए सरकार पर दबाव बनाने का बड़ा हथियार बना। मुख्यमंत्री ने पूर्व राज्यसभा सांसद मनोहर कांत ध्यानी की अध्यक्षता में नौ सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति गठित की। समिति चारों धामों के पंडा पुरोहित समाज के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया। समिति को अंतरिम और अंतिम रिपोर्ट देने में तीन महीने लग गए।
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सत्ता की बागडोर हाथों में आने के दिन से ही धामी पर देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को भंग करने का दबाव था। अधिनियम के विरोध में आंदोलित तीर्थ पुरोहित, पंडा समाज उनके समक्ष पहुंचे थे। उनसे पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने भी वादा किया था, लेकिन वादा पूरा करने से पहले उनकी सत्ता से विदाई हो गई।
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