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UP By-Election : भाजपा-सपा का लिटमस टेस्ट आज, अखिलेश-शिवपाल की एकता का भी इम्तिहान

चंद्रभान यादव, लखनऊ Published by: दुष्यंत शर्मा Updated Mon, 05 Dec 2022 06:09 AM IST
सार

UP By-Election: यह चुनाव भाजपा और सपा की तैयारी का लिटमस टेस्ट साबित हो सकता है। सपा के अभेद दुर्ग मैनपुरी को ढहाकर भाजपा यूपी फतह का संदेश देना चाहती है जबकि सपा ने भाजपा के रथ को रोकने के लिए चक्रव्यूह बना रखा है। इसमें अखिलेश-शिवपाल की एकता भाजपा के लिए दीवार बन गई है।

सपा व भाजपा।
सपा व भाजपा। - फोटो : अमर उजाला

विस्तार

मैनपुरी लोकसभा और रामपुर व खतौली विधानसभा उपचुनाव के लिए आज मतदान हो रहा है। यह चुनाव भाजपा और सपा की तैयारी का लिटमस टेस्ट साबित हो सकता है। सपा के अभेद दुर्ग मैनपुरी को ढहाकर भाजपा यूपी फतह का संदेश देना चाहती है जबकि सपा ने भाजपा के रथ को रोकने के लिए चक्रव्यूह बना रखा है। इसमें अखिलेश-शिवपाल की एकता भाजपा के लिए दीवार बन गई है।



लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले होने वाले मैनपुरी उपचुनाव पर पूरे देश की निगाह है। यहां मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उपचुनाव हो रहा है। सपा ने पूर्व सांसद डिंपल यादव को मैदान में उतारकर सैफई परिवार की साख दांव पर लगा दी है तो भाजपा ने मुलायम के शागिर्द रहे पूर्व सांसद रघुराज शाक्य पर दांव लगाकर गढ़ में ही मात देने की रणनीति तैयार की है। 


यहां के सियासी मुकाबले की गर्मी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव नामांकन के बाद से मैनपुरी में डेरा डाले हैं। जनसभा के साथ घर-घर जाकर वोट मांग रहे हैं। इसे अखिलेश में हुए बड़े बदलाव के तौर पर भी देखा जा रहा है। क्योंकि अभी तक वह उपचुनाव से दूर रहे हैं। दूसरी तरफ भाजपा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, केशव प्रसाद मौर्य सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं को मैदान में उतार कर पुख्ता सियासी चक्रव्यूह तैयार किया है। इसे तोड़ने में कई जगह सपाई पसीने-पसीने नजर आ रहे हैं।

भाजपा के लिए मैनपुरी का महत्व 
सपा का गढ़ माने जाने वाले ज्यादातर लोकसभा क्षेत्र पर भाजपा ने परचम लहरा दिया है। इनमें कन्नौज, फिरोजाबाद, फर्रुखाबाद, इटावा, आजमगढ़ और रामपुर शामिल हैं। मैनपुरी सैफई परिवार की घर की सीट मानी जाती है। यहां 1989 से अब तक हुए 11 लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह या उनके परिवार के सदस्य को ही विजय मिली। मुलायम अब वह नहीं हैं। ऐसे में भाजपा इस सीट को हासिल कर पूरे देश में नया संदेश देना चाहती है। इस सीट के भाजपा के खाते में जाने का सीधा असर मुख्यमंत्री योगी के कद पर भी पड़ेगा। 

सपा के लिए साख का सवाल
सपा घर की सीट बचाकर अपना दबदबा कायम रखना चाहती है। मुलायम सिंह यहां से खुद पांच बार सांसद रहे। सपा यह संदेश देने में लगी है कि मैनपुरी से सियासी सफर शुरू करने वाले मुलायम सिंह के नहीं रहने पर भी धाक बरकरार है। अब पार्टी नए अंदाज में शुरुआत कर रही है। इस सीट के बहाने प्रत्यक्ष रूप से सैफई परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। लेकिन मैनपुरी खोने का सीधा असर अखिलेश के सियासी कॅरिअर पर पड़ना तय है। 

यही वजह है कि सपा ने उम्मीदवार घोषित करने से पहले यहां पूर्व मंत्री आलोक शाक्य को जिलाध्यक्ष बनाया। इनके जरिए गैर यादव ओबीसी वर्ग को साधने का प्रयास किया गया। क्योंकि यहां यादवों के बाद शाक्य मतदाता सर्वाधिक हैं। इतना ही नहीं लंबे समय से चली आ रही तल्खी को भुलाते हुए अखिलेश ने चाचा शिवपाल यादव का आशीर्वाद लिया। क्योंकि उन्हें इस बात का अंदाजा था कि सियासी रणनीतिकार के रूप में शिवपाल ही उन्हें जीत का रास्ता दिखा सकते हैं। मैनपुरी सीट जीतकर सपा 2024 को साधने की तैयरी में है। यह संदेश देगी कि यादव वोट बैंक में बिखराव नहीं है।
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यह है सियासी गणित
मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र की पांच विधानसभा सीटों में करहल से अखिलेश, जसवंतनगर से शिवपाल और किशनी से ब्रजेश कठेरिया विधायक हैं। मैनपुरी से भाजपा के जयवीर सिंह तो भोगनी से भाजपा के राम नरेश अग्निहोत्री विधायक हैं। यहां सर्वाधिक यादव मतदाता हैं, जिनकी संख्या करीब 4.25 लाख है। इसी तरह शाक्य करीब 3.25 लाख, ठाकुर दो लाख, ब्राह्मण 1.22 लाख, दलित डेढ़ लाख और मुस्लिम 70 हजार हैं।

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