लोकसभा चुनाव के नतीजों ने बसपा प्रमुख मायावती के उन दावों की भी हवा निकाल दी जिनमें वह कहा करती थीं कि दलित समाज उनके साथ चट्टान की तरह एकजुट है और उनके इशारे पर वह वोट देता है। अमेठी व रायबरेली में कांग्रेस के पक्ष में माया की अपील पूरी तरह बेअसर रही।
अमेठी और रायबरेली में 6 मई को चुनाव था।
रिपोर्ट आ रही थी कि वहां गठबंधन से प्रत्याशी न उतारे जाने के बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कड़ी लड़ाई में फंस गए हैं। पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस को जमकर कोसने वाली मायावती ने अमेठी व रायबरेली में मतदान से एक दिन पहले 5 मई को एक अपील जारी की।
उन्होंने दावा किया कि बसपा समर्थक उनका इशारा समझकर वोट करते हैं। इन दोनों सीटों पर पार्टी का बेस वोट 22-23 प्रतिशत है। बसपा का एक-एक वोट इन सीटों पर कांग्रेस के दोनों नेताओं को मिलने वाला है, इसमें किसी को भी कोई संदेह नहीं होना चाहिए। अन्य समाज के जो लोग बसपा से जुड़े हैं, वे भी इन दोनों सीटों पर इसी तरह वोट करेंगे, लेकिन इस अपील का कोई असर नहीं दिखा।
दरअसल, 2012 के विधानसभा चुनाव में माना गया था कि अपर कास्ट की नाराजगी की वजह से बसपा सत्ता से बाहर हुई। पर, बसपा शासन में जाटव व गैरजाटव का मनभेद खुलकर सामने आने लगा था। हालांकि उस समय इसे नोटिस में नहीं लिया गया। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद विश्लेषक खुलकर कहने लगे कि बसपा से गैर जाटव वोट तेजी से खिसक रहे हैं।
लोकसभा चुनाव में यह बात पूरी तरह साबित हो गई। प्रदेश में 21 प्रतिशत दलित वोटर माने जाते हैं। गठबंधन में मायावती ने अपने हिस्से में एससी के लिए आरक्षित 17 में से 10 सीटें लीं, लेकिन गठबंधन के बावजूद वह दलितों में जाटव के प्रभाव वाली दो सीटें ही जीत पाईं।
इसमें भी सहयोगी दलों के बेस वोट का बड़ा योगदान था। बाकी सभी सीटें भाजपा ने जीत ली। चुनाव के दौरान जगह-जगह सामने आया कि पासी, धनगर, धोबी, कोरी, सोनकर, वाल्मीकि और मुसहर जैसी जातियां भाजपा को खुलकर वोट कर रही हैं।
राहुल गांधी को 2014 के लोकसभा चुनाव में 4,08,651 वोट मिले थे। उस समय बसपा प्रत्याशी धर्मेंद्र सिंह मैदान में थे और उन्हें 57,716 वोट मिले थे। इस चुनाव में राहुल को 4,13,394 वोट मिले। यानी सिर्फ 4743 वोट ज्यादा। वह भी तब जब सपा भी सामने नहीं थी। यदि पिछले चुनाव में बसपा प्रत्याशी को मिले वोट ही राहुल को मिल जाते तो वह चुनाव न हारते। उनका वोट स्मृति ईरानी के 4,68,514 से अधिक 4,71,110 वोट हो जाता।
इसी तरह रायबरेली में सोनिया गांधी को 2014 में 5,26,434 वोट मिले थे। मौजूदा चुनाव में उनका वोट 5,33,687 लाख रहा। यानी 7253 वोट बढ़े। 2014 के चुनाव में बसपा प्रत्याशी प्रवेश सिंह को 63,633 वोट मिले थे। यहां इस बार भी सपा मैदान में नहीं थी। समझना कठिन नहीं है कि यदि बसपा के बेस वोट सोनिया के साथ जुड़े होते तो उनकी लीड कहीं ज्यादा होती।
लोकसभा चुनाव के नतीजों ने बसपा प्रमुख मायावती के उन दावों की भी हवा निकाल दी जिनमें वह कहा करती थीं कि दलित समाज उनके साथ चट्टान की तरह एकजुट है और उनके इशारे पर वह वोट देता है। अमेठी व रायबरेली में कांग्रेस के पक्ष में माया की अपील पूरी तरह बेअसर रही।
अमेठी और रायबरेली में 6 मई को चुनाव था।
रिपोर्ट आ रही थी कि वहां गठबंधन से प्रत्याशी न उतारे जाने के बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कड़ी लड़ाई में फंस गए हैं। पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस को जमकर कोसने वाली मायावती ने अमेठी व रायबरेली में मतदान से एक दिन पहले 5 मई को एक अपील जारी की।
उन्होंने दावा किया कि बसपा समर्थक उनका इशारा समझकर वोट करते हैं। इन दोनों सीटों पर पार्टी का बेस वोट 22-23 प्रतिशत है। बसपा का एक-एक वोट इन सीटों पर कांग्रेस के दोनों नेताओं को मिलने वाला है, इसमें किसी को भी कोई संदेह नहीं होना चाहिए। अन्य समाज के जो लोग बसपा से जुड़े हैं, वे भी इन दोनों सीटों पर इसी तरह वोट करेंगे, लेकिन इस अपील का कोई असर नहीं दिखा।
इस तरह साबित हो गई ये बात
दरअसल, 2012 के विधानसभा चुनाव में माना गया था कि अपर कास्ट की नाराजगी की वजह से बसपा सत्ता से बाहर हुई। पर, बसपा शासन में जाटव व गैरजाटव का मनभेद खुलकर सामने आने लगा था। हालांकि उस समय इसे नोटिस में नहीं लिया गया। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद विश्लेषक खुलकर कहने लगे कि बसपा से गैर जाटव वोट तेजी से खिसक रहे हैं।
लोकसभा चुनाव में यह बात पूरी तरह साबित हो गई। प्रदेश में 21 प्रतिशत दलित वोटर माने जाते हैं। गठबंधन में मायावती ने अपने हिस्से में एससी के लिए आरक्षित 17 में से 10 सीटें लीं, लेकिन गठबंधन के बावजूद वह दलितों में जाटव के प्रभाव वाली दो सीटें ही जीत पाईं।
इसमें भी सहयोगी दलों के बेस वोट का बड़ा योगदान था। बाकी सभी सीटें भाजपा ने जीत ली। चुनाव के दौरान जगह-जगह सामने आया कि पासी, धनगर, धोबी, कोरी, सोनकर, वाल्मीकि और मुसहर जैसी जातियां भाजपा को खुलकर वोट कर रही हैं।
इस तरह जीत सकते थे राहुल गांधी
राहुल गांधी को 2014 के लोकसभा चुनाव में 4,08,651 वोट मिले थे। उस समय बसपा प्रत्याशी धर्मेंद्र सिंह मैदान में थे और उन्हें 57,716 वोट मिले थे। इस चुनाव में राहुल को 4,13,394 वोट मिले। यानी सिर्फ 4743 वोट ज्यादा। वह भी तब जब सपा भी सामने नहीं थी। यदि पिछले चुनाव में बसपा प्रत्याशी को मिले वोट ही राहुल को मिल जाते तो वह चुनाव न हारते। उनका वोट स्मृति ईरानी के 4,68,514 से अधिक 4,71,110 वोट हो जाता।
...तो सोनिया की लीड कहीं और बड़ी होती
इसी तरह रायबरेली में सोनिया गांधी को 2014 में 5,26,434 वोट मिले थे। मौजूदा चुनाव में उनका वोट 5,33,687 लाख रहा। यानी 7253 वोट बढ़े। 2014 के चुनाव में बसपा प्रत्याशी प्रवेश सिंह को 63,633 वोट मिले थे। यहां इस बार भी सपा मैदान में नहीं थी। समझना कठिन नहीं है कि यदि बसपा के बेस वोट सोनिया के साथ जुड़े होते तो उनकी लीड कहीं ज्यादा होती।