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प्रत्याशी चयन की भाजपा की कसौटी जानने के लिए सिर्फ एक उदाहरण ही काफी है।
अयोध्या में 84 कोसी परिक्रमा को लेकर चर्चित हुए डॉ. रामविलास वेदांती भाजपा नेताओं का भरोसा नहीं जीत पाए, पर 84 कोसी परिक्रमा को लेकर भगवा टोली को गाली देने वाले और पाला बदलने में माहिर जगदंबिका पाल भाजपा नेताओं की गणेश परिक्रमा के सहारे उनका भरोसा जीतने में सफल रहे।
पाल जहां से अब तक कांग्रेस के सांसद थे, वहीं से भाजपा के उम्मीदवार बन गए।
रविवार रात को भी पार्टी ने दो प्रत्याशियों के नाम घोषित किए जिनमें कंवर सिंह तंवर बसपा से आए हैं। इन्हें अमरोहा से टिकट दिया गया है।
भाजना आलाकमान की इस चाल से कार्यकर्ता असमंजस में हैं। उनकी समझ में नहीं आ रहा कि मोदी की लहर में दलबदलुओं पर दांव लगाना भाजपा नेताओं की मजबूरी क्यों बन गई।
घोषित 72 प्रत्याशियों में 23 सीटों पर उन चेहरों पर भरोसा करना पड़ा, जो भरोसा तोड़ने के लिए जाने जाते रहे हैं। बात की शुरुआत पाल से ही।
भाजपा के एक नेता बताते हैं कि पाल ने सदन में लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट पर बहस के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी को भी अभियुक्त बनाने की मांग की थी।
तब पार्टी के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ ने पाल को धोखेबाज करार दिया था।
वही पाल विहिप व पार्टी के अन्य नेताओं के विरोध के बावजूद न सिर्फ भाजपा में आ गए बल्कि उम्मीदवार भी बन गए।
डॉ. यशवंत बसपा में थे। वे विधानसभा का चुनाव लड़े और हार गए, फिर भी भाजपा ने लोकसभा चुनाव में नगीना से मैदान में उतार दिया।
एसपी सिंह बघेल लोकसभा के पिछले चुनाव में फीरोजाबाद सीट पर सपा के अखिलेश यादव से चुनाव हारे। इस बार भाजपा ने अपना झंडा इनको सौंप दिया।
एटा से उम्मीदवार बनाए गए राजवीर सिंह कल्याण सिंह के पुत्र हैं। वे विधानसभा का पिछला चुनाव अपनी जनक्रांति पार्टी (राष्ट्रवादी) से लड़े और हार गए।
भाजपा ने इस बार उन्हें उनके पिता कल्याण की सीट से उम्मीदवार बनाया है। सीतापुर से मैदान में उतारे गए राजेश वर्मा पिछला चुनाव बसपा से धौरहरा से लड़े थे और पराजित हुए।
मोहनलालगंज से उतारे गए कौशल किशोर की पूरी राजनीति भाजपा विरोध की रही। मंदिर मुद्दे पर तो उनकी बातें बसपा के दिवंगत नेता कांशीराम को भी मात देती दिखीं।
पर, भाजपा नेताओं ने विधानसभा चुनाव हार चुके कौशल के सहारे लोकसभा चुनाव जीतने का सपना पाल लिया।
फर्रुखाबाद से प्रत्याशी मुकेश राजपूत भी उन नेताओं में हैं जो कल्याण के साथ भाजपा में आए हैं। इलाहाबाद से प्रत्याशी श्यामा चरण गुप्ता सपा से भाजपा में आए हैं।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि गुप्ता को टिकट पहले मिला। श्रावस्ती से चुनाव लड़ रहे दद्दन मिश्र बसपा से भाजपा में आए। विधानसभा का चुनाव लड़े और पराजित हुए, पर अब भाजपा ने इन्हें फिर लोकसभा का उम्मीदवार बना दिया।
गोंडा से उम्मीदवार कीर्तिवर्धन सिंह प्रदेश के पूर्व कृषि आनंद सिंह के पुत्र हैं। सलेमपुर से प्रत्याशी रवींद्र कुशवाहा पूर्व सपा सांसद हरिकेवल प्रसाद के पुत्र हैं।
भाजपा प्रत्याशियों पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि टिकट देने में कोई मानक या कसौटी नहीं रही है।
फतेहपुर सीकरी से भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे चौधरी बाबूलाल कविता चौधरी कांड में आरोपों के घेरे में आए और चर्चित पनवाड़ी कांड में भी घिरे।
उन्नाव से उतारे गए साक्षी महाराज बीच में सपा में रहे। वापस भाजपा में आए। इन पर शिष्या के उत्पीड़न के भी आरोप हैं। कैसरगंज से उम्मीदवार बृजभूषण शरण सिंह 2004 में भाजपा छोड़कर गए थे।
भाजपा नेताओं की कृपा से चुनावी राजनीति शुरू करने वाले सिंह ने परमाणु अप्रसार संधि के मुद्दे पर लोकसभा में भाजपा से बगावत करके सपा के साथ खड़े होकर केंद्र सरकार का साथ दिया।
भाजपा की किरकिरी कराई। पर, भाजपा नेताओं ने सब कुछ भुलाकर इन्हें प्रत्याशी बना दिया। इटावा से उम्मीदवार बनाए गए अशोक दोहरे मूलत: बसपाई हैं।
राम मंदिर से लेकर हिंदुत्व तक के मुद्दे पर इनकी आग उगलती बातें इटावा और आसपास के भाजपा कार्यकर्ताओं को भुलाए नहीं भूलतीं।
इस स्थिति से असहज भाजपा के ही एक नेता कहते हैं कि जिन्हें टिकट दिया गया है, उन्हें दलबदलू नहीं, अवसरवादी कहिए।
हालांकि हमारे दल में भी तमाम नेता अवसरवादी हो गए हैं जो इन्हें चुनाव लड़ाकर अपने समीकरण ठीक करने का सपना देख रहे हैं। वे उदाहरण देते हैं धर्मेंद्र कश्यप का।
बताते हैं कि वे बसपा में थे। भाजपा व राम मंदिर पर तमाम उल्टे-सीधे बयान दिए। बसपा की हवा बिगड़ते ही सपा में पहुंच गए।
लोकसभा के पिछले चुनाव में पार्टी उम्मीदवार मेनका गांधी के खिलाफ सपा के टिकट पर लड़े।
हार गए। पर, मेनका गांधी को पता नहीं इनमें क्या दिखा कि इस बार वह खुद धर्मेन्द्र को भाजपा में ले आईं। टिकट भी दिला दिया।
प्रत्याशी चयन की भाजपा की कसौटी जानने के लिए सिर्फ एक उदाहरण ही काफी है।
अयोध्या में 84 कोसी परिक्रमा को लेकर चर्चित हुए डॉ. रामविलास वेदांती भाजपा नेताओं का भरोसा नहीं जीत पाए, पर 84 कोसी परिक्रमा को लेकर भगवा टोली को गाली देने वाले और पाला बदलने में माहिर जगदंबिका पाल भाजपा नेताओं की गणेश परिक्रमा के सहारे उनका भरोसा जीतने में सफल रहे।
पाल जहां से अब तक कांग्रेस के सांसद थे, वहीं से भाजपा के उम्मीदवार बन गए।
रविवार रात को भी पार्टी ने दो प्रत्याशियों के नाम घोषित किए जिनमें कंवर सिंह तंवर बसपा से आए हैं। इन्हें अमरोहा से टिकट दिया गया है।
भरोसा तोड़ने वाले ही बने विश्वासपात्र
भाजना आलाकमान की इस चाल से कार्यकर्ता असमंजस में हैं। उनकी समझ में नहीं आ रहा कि मोदी की लहर में दलबदलुओं पर दांव लगाना भाजपा नेताओं की मजबूरी क्यों बन गई।
घोषित 72 प्रत्याशियों में 23 सीटों पर उन चेहरों पर भरोसा करना पड़ा, जो भरोसा तोड़ने के लिए जाने जाते रहे हैं। बात की शुरुआत पाल से ही।
भाजपा के एक नेता बताते हैं कि पाल ने सदन में लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट पर बहस के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी को भी अभियुक्त बनाने की मांग की थी।
तब पार्टी के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ ने पाल को धोखेबाज करार दिया था।
वही पाल विहिप व पार्टी के अन्य नेताओं के विरोध के बावजूद न सिर्फ भाजपा में आ गए बल्कि उम्मीदवार भी बन गए।
पिता की वजह से मिला टिकट
डॉ. यशवंत बसपा में थे। वे विधानसभा का चुनाव लड़े और हार गए, फिर भी भाजपा ने लोकसभा चुनाव में नगीना से मैदान में उतार दिया।
एसपी सिंह बघेल लोकसभा के पिछले चुनाव में फीरोजाबाद सीट पर सपा के अखिलेश यादव से चुनाव हारे। इस बार भाजपा ने अपना झंडा इनको सौंप दिया।
एटा से उम्मीदवार बनाए गए राजवीर सिंह कल्याण सिंह के पुत्र हैं। वे विधानसभा का पिछला चुनाव अपनी जनक्रांति पार्टी (राष्ट्रवादी) से लड़े और हार गए।
भाजपा ने इस बार उन्हें उनके पिता कल्याण की सीट से उम्मीदवार बनाया है। सीतापुर से मैदान में उतारे गए राजेश वर्मा पिछला चुनाव बसपा से धौरहरा से लड़े थे और पराजित हुए।
सपा और बसपा के हैं कई धुरंधर
मोहनलालगंज से उतारे गए कौशल किशोर की पूरी राजनीति भाजपा विरोध की रही। मंदिर मुद्दे पर तो उनकी बातें बसपा के दिवंगत नेता कांशीराम को भी मात देती दिखीं।
पर, भाजपा नेताओं ने विधानसभा चुनाव हार चुके कौशल के सहारे लोकसभा चुनाव जीतने का सपना पाल लिया।
फर्रुखाबाद से प्रत्याशी मुकेश राजपूत भी उन नेताओं में हैं जो कल्याण के साथ भाजपा में आए हैं। इलाहाबाद से प्रत्याशी श्यामा चरण गुप्ता सपा से भाजपा में आए हैं।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि गुप्ता को टिकट पहले मिला। श्रावस्ती से चुनाव लड़ रहे दद्दन मिश्र बसपा से भाजपा में आए। विधानसभा का चुनाव लड़े और पराजित हुए, पर अब भाजपा ने इन्हें फिर लोकसभा का उम्मीदवार बना दिया।
गोंडा से उम्मीदवार कीर्तिवर्धन सिंह प्रदेश के पूर्व कृषि आनंद सिंह के पुत्र हैं। सलेमपुर से प्रत्याशी रवींद्र कुशवाहा पूर्व सपा सांसद हरिकेवल प्रसाद के पुत्र हैं।
कोई मानक न कसौटी
भाजपा प्रत्याशियों पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि टिकट देने में कोई मानक या कसौटी नहीं रही है।
फतेहपुर सीकरी से भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे चौधरी बाबूलाल कविता चौधरी कांड में आरोपों के घेरे में आए और चर्चित पनवाड़ी कांड में भी घिरे।
उन्नाव से उतारे गए साक्षी महाराज बीच में सपा में रहे। वापस भाजपा में आए। इन पर शिष्या के उत्पीड़न के भी आरोप हैं। कैसरगंज से उम्मीदवार बृजभूषण शरण सिंह 2004 में भाजपा छोड़कर गए थे।
भाजपा नेताओं की कृपा से चुनावी राजनीति शुरू करने वाले सिंह ने परमाणु अप्रसार संधि के मुद्दे पर लोकसभा में भाजपा से बगावत करके सपा के साथ खड़े होकर केंद्र सरकार का साथ दिया।
भाजपा की किरकिरी कराई। पर, भाजपा नेताओं ने सब कुछ भुलाकर इन्हें प्रत्याशी बना दिया। इटावा से उम्मीदवार बनाए गए अशोक दोहरे मूलत: बसपाई हैं।
राम मंदिर से लेकर हिंदुत्व तक के मुद्दे पर इनकी आग उगलती बातें इटावा और आसपास के भाजपा कार्यकर्ताओं को भुलाए नहीं भूलतीं।
दलबदलू नहीं, अवसरवादी कहिए
इस स्थिति से असहज भाजपा के ही एक नेता कहते हैं कि जिन्हें टिकट दिया गया है, उन्हें दलबदलू नहीं, अवसरवादी कहिए।
हालांकि हमारे दल में भी तमाम नेता अवसरवादी हो गए हैं जो इन्हें चुनाव लड़ाकर अपने समीकरण ठीक करने का सपना देख रहे हैं। वे उदाहरण देते हैं धर्मेंद्र कश्यप का।
बताते हैं कि वे बसपा में थे। भाजपा व राम मंदिर पर तमाम उल्टे-सीधे बयान दिए। बसपा की हवा बिगड़ते ही सपा में पहुंच गए।
लोकसभा के पिछले चुनाव में पार्टी उम्मीदवार मेनका गांधी के खिलाफ सपा के टिकट पर लड़े।
हार गए। पर, मेनका गांधी को पता नहीं इनमें क्या दिखा कि इस बार वह खुद धर्मेन्द्र को भाजपा में ले आईं। टिकट भी दिला दिया।