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केंद्रीय मंत्री और पूर्व शिक्षा मंत्री (मानव संसाधन विकास मंत्री) स्मृति ईरानी के समय में शिक्षाविद प्रोफेसर योगेश त्यागी को दिल्ली विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया था। प्रो. योगेश त्यागी को वे बड़े मन से लाई थीं और अब करीब पांच साल बाद केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और शिक्षा मंत्री निशंक की सिफारिश पर राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने प्रो. त्यागी को निलंबित कर दिया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के 98 साल के इतिहास में यह पहली और अनोखी घटना है।
बाघ और बकरी को एक घाट पर पानी पिलाने का प्रयोग फेल
दिल्ली विश्वविद्यालय के कार्यकारी परिषद के सदस्य प्रो. राजेश झा भी मानते हैं कि निलंबित कुलपति प्रो. त्यागी बाघ-बकरी को एक घाट पर पानी पिलाने में रह गए। उनका यह प्रयोग उन्हीं के लिए घातक हो गया। जेएनयू बैकग्राउंड से आए प्रो. त्यागी को लेफ्ट (वाम विचार) का गुट प्रिय था, लेकिन कुलपति वे भगवा दौर में बने। दोनों गुटों के टकराव का नतीजा यह हुआ कि विश्वविद्यालय के सारे काम अटक गए। विश्वविद्यालय विभिन्न मदों में आने वाली राशि का उपयोग करने से जहां चूक गया, वहीं बजट निर्धारण से लेकर हर प्रक्रिया अटकती-लटकती चली गई। राजेश झा का कहना है कि मुझे नहीं लगता कि हमारी मांग पर कुलपति निलंबित हुए हैं। इनके कामकाज पर जांच बिठाई गई है, बल्कि यह उनके साथ के गुटों के आपसी टकराव में ऐसा हुआ है। अब कार्यकाल पूरा होना है और नया कुलपति भी बनाया जाना है। यह भी तो ज्वलंत मुद्दा है।
कुलपति नामित होने के तीन महीने बाद संभाला पदभार
प्रो त्यागी को दिसंबर 2015 में दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति के लिए नामित कर दिया गया था। तब प्रो वीसी प्रोफेसर सुधीश पचौरी थे। लेकिन प्रो. त्यागी दिसंबर, जनवरी, फरवरी तक कार्यभार ग्रहण करने नहीं पहुंचे। भगवान गणेश जी की दो मूर्तियां, गंगाजल के साथ 10 मार्च 2016 को प्रोफेसर त्यागी ने पदभार ग्रहण कर लिया। बताते हैं तब से विश्वविद्यालय की लेफ्ट और राइट की लॉबी में कुलपति फंसकर रह गए। कुलपति के बारे में विश्वविद्यालय के सूत्र बताते हैं कि वह तनख्वाह नहीं लेते थे। यहां आने से पहले दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय में लीगल स्टडीज के डीन थे। इसलिए वह अपनी तनख्वाह पिछले संस्थान से लेते थे और विश्वविद्यालय से कुलपति की तनख्वाह के रूप में केवल एक रुपया लेते थे।
कुछ तो खास है प्रोफेसर त्यागी में
बताते हैं विश्वविद्यालय में कुलपति के कार्यालय में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का प्रोफेसर एनसी रंगा द्वारा हाथ से बनाया चित्र ही टंगा रहता था। शिक्षा के इस मंदिर में कुलपति के कार्यालय में कभी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के चित्र नहीं टंगे। लेकिन योगेश त्यागी ने कार्यभार ग्रहण करते ही यह परंपरा बदल दी। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर टंगवाई। तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की तस्वीर भी लगने के लिए तैयार थी, लेकिन उस समय संकोच के कारण नहीं लग पाई।
यह भी गजब का चलन रहा
योगेश त्यागी की कार्यशैली का एक यह भी उदाहरण है। प्रो वीसी जेसी खुराना प्रख्यात जैव तकनीकी क्षेत्र की शख्सियत हैं। उन्हें विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस का निदेशक बनाया। यह कोई आदेश (नियुक्ति) नहीं था, बल्कि अगला आदेश जारी होने तक की व्यवस्था थी। बाद में प्रो. खुराना को प्रो वीसी, डीन ऑफ कालेज की भी जिम्मेदारी दी गई, लेकिन सभी दायित्व इसी तरह से दिए गए। कुलपति के कामकाज को लेकर विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ समेत अन्य ने काफी प्रदर्शन किए। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, मंत्रालय को लिखा, श्वेत पत्र तक जारी हुआ, लेकिन केंद्र सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया।
ये भी हैं आरोप
विश्वविद्यालय के निलंबित कुलपति पर आरोप है कि विद्वत परिषद की बैठक में निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंचते थे। विश्वविद्यालय की कानून-व्यवस्था को मानते नहीं थे। विश्वविद्यालयों की फाइलें बिना कुलपति के हस्ताक्षर के आगे नहीं बढ़ती, लेकिन फाइलों पर दस्तखत करने में भारी संकोची रहे। विश्वविद्यालय हर साल गवर्निंग बॉडी के लिए लोगों के नाम भेजता है। कुलपति त्यागी के समय में यह परंपरा अटक सी गई। आते ही विश्वविद्यालय में अस्थाई पदों पर 10-15 साल से पढ़ा रहे शिक्षकों को दैनिक के आधार पर काम करने का आदेश जारी कर दिया। 10 मार्च 2016 को विश्वविद्यालय में एकेले ओबीसी श्रेणी में ही तीन हजार पद रिक्त थे, लेकिन तब से आज तक भर्तियों के मामले में विश्वविद्यालय काफी पीछे चला गया है।
कहीं प्रोफेसर त्यागी पर ठीकरा तो नहीं फोड़ रहा केंद्र
देश के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय के एक प्रो वीसी का कहना है कि केंद्र सरकार की भूमिका को बहुत साफ-पाक नहीं कहा जा सकता। सूत्र का कहना है कि कुलपति के समय में न तो भर्तियां हुईं, न ही कर्मचारियों को तीन साल से पेंशन आदि के पैसे मिल पाए। विश्वविद्यालय के कामकाज को लेकर भी तमाम तरह के गतिरोध बने रहे। इसकी शिकायत भी हुई, लेकिन सरकार ने पूरे साल तक कोई ध्यान नहीं दिया। अब कुलपति का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, तो दो महीने पहले उन्हें निलंबित करने का आदेश आया है। अब सरकार को उनके फैसले पर जांच प्रक्रिया शुरू करने की सूझ रही है।
सार
- पहली बार विश्वविद्यालय में वीसी के कार्यालय में लगवाई थी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की तस्वीर
- ली मात्र एक रुपया तनख्वाह, लेकिन खूंटी पर टांग गए यूनिवर्सिटी की व्यवस्था
- कहीं सरकार अपनी नाकामियों का ठीकरा प्रोफेसर त्यागी पर तो नहीं फोड़ रही है
विस्तार
केंद्रीय मंत्री और पूर्व शिक्षा मंत्री (मानव संसाधन विकास मंत्री) स्मृति ईरानी के समय में शिक्षाविद प्रोफेसर योगेश त्यागी को दिल्ली विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया था। प्रो. योगेश त्यागी को वे बड़े मन से लाई थीं और अब करीब पांच साल बाद केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और शिक्षा मंत्री निशंक की सिफारिश पर राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने प्रो. त्यागी को निलंबित कर दिया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के 98 साल के इतिहास में यह पहली और अनोखी घटना है।
बाघ और बकरी को एक घाट पर पानी पिलाने का प्रयोग फेल
दिल्ली विश्वविद्यालय के कार्यकारी परिषद के सदस्य प्रो. राजेश झा भी मानते हैं कि निलंबित कुलपति प्रो. त्यागी बाघ-बकरी को एक घाट पर पानी पिलाने में रह गए। उनका यह प्रयोग उन्हीं के लिए घातक हो गया। जेएनयू बैकग्राउंड से आए प्रो. त्यागी को लेफ्ट (वाम विचार) का गुट प्रिय था, लेकिन कुलपति वे भगवा दौर में बने। दोनों गुटों के टकराव का नतीजा यह हुआ कि विश्वविद्यालय के सारे काम अटक गए। विश्वविद्यालय विभिन्न मदों में आने वाली राशि का उपयोग करने से जहां चूक गया, वहीं बजट निर्धारण से लेकर हर प्रक्रिया अटकती-लटकती चली गई। राजेश झा का कहना है कि मुझे नहीं लगता कि हमारी मांग पर कुलपति निलंबित हुए हैं। इनके कामकाज पर जांच बिठाई गई है, बल्कि यह उनके साथ के गुटों के आपसी टकराव में ऐसा हुआ है। अब कार्यकाल पूरा होना है और नया कुलपति भी बनाया जाना है। यह भी तो ज्वलंत मुद्दा है।
कुलपति नामित होने के तीन महीने बाद संभाला पदभार
प्रो त्यागी को दिसंबर 2015 में दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति के लिए नामित कर दिया गया था। तब प्रो वीसी प्रोफेसर सुधीश पचौरी थे। लेकिन प्रो. त्यागी दिसंबर, जनवरी, फरवरी तक कार्यभार ग्रहण करने नहीं पहुंचे। भगवान गणेश जी की दो मूर्तियां, गंगाजल के साथ 10 मार्च 2016 को प्रोफेसर त्यागी ने पदभार ग्रहण कर लिया। बताते हैं तब से विश्वविद्यालय की लेफ्ट और राइट की लॉबी में कुलपति फंसकर रह गए। कुलपति के बारे में विश्वविद्यालय के सूत्र बताते हैं कि वह तनख्वाह नहीं लेते थे। यहां आने से पहले दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय में लीगल स्टडीज के डीन थे। इसलिए वह अपनी तनख्वाह पिछले संस्थान से लेते थे और विश्वविद्यालय से कुलपति की तनख्वाह के रूप में केवल एक रुपया लेते थे।
कुछ तो खास है प्रोफेसर त्यागी में
बताते हैं विश्वविद्यालय में कुलपति के कार्यालय में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का प्रोफेसर एनसी रंगा द्वारा हाथ से बनाया चित्र ही टंगा रहता था। शिक्षा के इस मंदिर में कुलपति के कार्यालय में कभी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के चित्र नहीं टंगे। लेकिन योगेश त्यागी ने कार्यभार ग्रहण करते ही यह परंपरा बदल दी। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर टंगवाई। तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की तस्वीर भी लगने के लिए तैयार थी, लेकिन उस समय संकोच के कारण नहीं लग पाई।
यह भी गजब का चलन रहा
योगेश त्यागी की कार्यशैली का एक यह भी उदाहरण है। प्रो वीसी जेसी खुराना प्रख्यात जैव तकनीकी क्षेत्र की शख्सियत हैं। उन्हें विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस का निदेशक बनाया। यह कोई आदेश (नियुक्ति) नहीं था, बल्कि अगला आदेश जारी होने तक की व्यवस्था थी। बाद में प्रो. खुराना को प्रो वीसी, डीन ऑफ कालेज की भी जिम्मेदारी दी गई, लेकिन सभी दायित्व इसी तरह से दिए गए। कुलपति के कामकाज को लेकर विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ समेत अन्य ने काफी प्रदर्शन किए। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, मंत्रालय को लिखा, श्वेत पत्र तक जारी हुआ, लेकिन केंद्र सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया।
ये भी हैं आरोप
विश्वविद्यालय के निलंबित कुलपति पर आरोप है कि विद्वत परिषद की बैठक में निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंचते थे। विश्वविद्यालय की कानून-व्यवस्था को मानते नहीं थे। विश्वविद्यालयों की फाइलें बिना कुलपति के हस्ताक्षर के आगे नहीं बढ़ती, लेकिन फाइलों पर दस्तखत करने में भारी संकोची रहे। विश्वविद्यालय हर साल गवर्निंग बॉडी के लिए लोगों के नाम भेजता है। कुलपति त्यागी के समय में यह परंपरा अटक सी गई। आते ही विश्वविद्यालय में अस्थाई पदों पर 10-15 साल से पढ़ा रहे शिक्षकों को दैनिक के आधार पर काम करने का आदेश जारी कर दिया। 10 मार्च 2016 को विश्वविद्यालय में एकेले ओबीसी श्रेणी में ही तीन हजार पद रिक्त थे, लेकिन तब से आज तक भर्तियों के मामले में विश्वविद्यालय काफी पीछे चला गया है।
कहीं प्रोफेसर त्यागी पर ठीकरा तो नहीं फोड़ रहा केंद्र
देश के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय के एक प्रो वीसी का कहना है कि केंद्र सरकार की भूमिका को बहुत साफ-पाक नहीं कहा जा सकता। सूत्र का कहना है कि कुलपति के समय में न तो भर्तियां हुईं, न ही कर्मचारियों को तीन साल से पेंशन आदि के पैसे मिल पाए। विश्वविद्यालय के कामकाज को लेकर भी तमाम तरह के गतिरोध बने रहे। इसकी शिकायत भी हुई, लेकिन सरकार ने पूरे साल तक कोई ध्यान नहीं दिया। अब कुलपति का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, तो दो महीने पहले उन्हें निलंबित करने का आदेश आया है। अब सरकार को उनके फैसले पर जांच प्रक्रिया शुरू करने की सूझ रही है।