साल 2013 में पाकिस्तान से भागकर हिंदुस्तान पहुंचे 620 हिंदू शरणार्थियों की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। लगभग दो महीने से बिना बिजली के रह रहे इन लोगों की परेशानी बारिश की वजह से और ज्यादा बढ़ गई है। हर जगह मदद का हाथ फैलाने के बाद भी इन्हें कोई मदद नहीं मिली है।
स्थिति यह है कि जहांगीर पुरी के मजलिस पार्क मेट्रो स्टेशन के पीछे सेना की जमीन पर ये शरणार्थी बेहद तंगहाल परिस्थितियों में रहने को मजबूर हैं। इनके कैंपों के पास नाले बन गए हैं और गहरी जगहों पर जल भराव हो गया है जिनमें मच्छरों की ब्रीडिंग तेज हो गई है। इससे इन शरणार्थियों में डेंगू-मलेरिया जैसी बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ गया है।
पिछले दिनों बिजली विभाग के कर्मचारियों ने इनके कैंपों से बिजली का कनेक्शन काट दिया था। दो महीने के बाद भी आज तक इन कैंपों में बिजली की सुविधा शुरु नहीं करवाई जा सकी। गर्मी में कड़ी धूप और बारिश की उमस के बीच ये लोग बेहद परेशानी भरे हालात में जी रहे हैं।
कैसे चल रहा गुजारा
कुल 620 हिंदू शरणार्थियों में 160 बच्चे और 240 महिलाएं हैं। सभी 220 पुरुष स्थानीय बाजार में मजदूरों के रुप में काम कर रहे हैं। कुछ लोग रेहड़ी लगाते हैं या कोई छोटे-मोटे सामान बनाकर लोगों को बेचते हैं और उससे हुई आय से पेट भर रहे हैं। इन शरणार्थियों की मदद कर रहे एक समाजसेवी हरिओम ने बताया कि कुछ लोगों के सहयोग से यहां एक छोटा सा स्कूल खुलवा दिया गया है जहां इनके बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दी जा रही है। लेकिन इसके लिए उन्हें किसी तरह का कोई सरकारी सहयोग नहीं मिल रहा है। हरिओम ने बताया कि कुछ दूर पर आंगनवाड़ी जैसे कार्यक्रम चल रहे हैं, लेकिन इन बच्चों के लिए प्रयास करने के बाद भी वे आंगनवाड़ी खुलवाने में सफल नहीं हो सके।
उन्होंने बताया कि इन लोगों की मदद के लिए उन्होंने कई लोगों से संपर्क किया लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली। वे इनकी समस्याओं को लेकर केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी से लेकर दिल्ली सरकार तक में हर जगह अपील की, लेकिन उन्हें इसका कोई लाभ नहीं मिला। भाजपा से स्थानीय पार्षद गरिमा गुप्ता और आम आदमी पार्टी से विधायक पवन कुमार शर्मा से भी मदद के नाम पर उन्हें आश्वासन के अलावा और कुछ नहीं मिला है।
सुरक्षा को खतरा नहीं
हरिओम ने बताया कि इन हिंदू शरणार्थियों को यहां रहते लगभग पांच साल का समय बीत चुका है, लेकिन एक भी शरणार्थी के खिलाफ एक भी एफआईआर तक नहीं है। यानी ये शांतिप्रिय लोग हैं जो किसी तरह अपना गुजारा कर रहे हैं। वहीं इनके कैंपों से महज कुछ ही दूरी पर बसे बांग्लादेशी और रोहिंग्या शरणार्थी दिल्ली की सुरक्षा के लिए खतरा बने रहते हैं। समय-समय पर उनके खिलाफ कई मामले दर्ज हुए हैं, जबकि हिंदू शरणार्थियों के खिलाफ कहीं कोई शिकायत तक दर्ज नहीं कराई गई है।
क्यों पहुंचे थे हिंदु्स्तान
पाकिस्तानी हिंदुओं के इस पलायन के पीछे जो दर्द छिपा हुआ है, उसे आसानी से नहीं समझा जा सकता है। शरणार्थियों ने बताया कि पाकिस्तान में उन्हें सिर्फ हिंदू होने के नाते उनका ऐसा शोषण किया जाता है जिसे बयान नहीं किया जा सकता। इनके अंदर छिपा डर इसी बात से समझा जा सकता है कि भारत में होने के बाद भी वे खुलकर कुछ बताने को तैयार नहीं हैं। एक शरणार्थी सीमा ने नाम न छापे जाने की शर्त पर अमर उजाला को बताया कि एक-एक कर उनकी दो बेटियों को दिन दहाड़े उठा लिया गया। उनका धर्म परिवर्तन कर किसी मुस्लिम आदमी के साथ ब्याह दिया गया। आज वे नहीं जानतीं कि उनकी बेटियां कहां और किस हाल में हैं। इन जलालत भरी परिस्थितियों से बचने के लिए उन लोगों ने पाकिस्तान से भागना ही ठीक समझा।
एक हिंदू शरणार्थी ने बताया कि विरोध करने पर उन्हें पुलिस उठा ले जाती थी, बिना किसी गलती के भी उन पर कोई झूठा मुकदमा बनाकर साल-साल भर जेल में भर दिया जाता था।
नई सरकार से कोई उम्मीद नहीं
शरणार्थी ने बताया कि उन्हें नई सरकार बनने पर भी किसी राहत की कोई उम्मीद नहीं है। इसका कारण है कि उनके ऊपर जो अत्याचार होते हैं वह स्थानीय लोगों और स्थानीय पुलिस के सहयोग से होते हैं। सरकार तो सीधे तौर पर उन्हें कुछ नहीं कहती, लेकिन उनके साथ शोषण करने वालों के खिलाफ कोई कदम भी नहीं उठाती। यही कारण है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यक खात्मे के कगार पर हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में हालात सही होने तक वे वापस नहीं जाना चाहते।
साल 2013 में पाकिस्तान से भागकर हिंदुस्तान पहुंचे 620 हिंदू शरणार्थियों की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। लगभग दो महीने से बिना बिजली के रह रहे इन लोगों की परेशानी बारिश की वजह से और ज्यादा बढ़ गई है। हर जगह मदद का हाथ फैलाने के बाद भी इन्हें कोई मदद नहीं मिली है।
स्थिति यह है कि जहांगीर पुरी के मजलिस पार्क मेट्रो स्टेशन के पीछे सेना की जमीन पर ये शरणार्थी बेहद तंगहाल परिस्थितियों में रहने को मजबूर हैं। इनके कैंपों के पास नाले बन गए हैं और गहरी जगहों पर जल भराव हो गया है जिनमें मच्छरों की ब्रीडिंग तेज हो गई है। इससे इन शरणार्थियों में डेंगू-मलेरिया जैसी बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ गया है।
पिछले दिनों बिजली विभाग के कर्मचारियों ने इनके कैंपों से बिजली का कनेक्शन काट दिया था। दो महीने के बाद भी आज तक इन कैंपों में बिजली की सुविधा शुरु नहीं करवाई जा सकी। गर्मी में कड़ी धूप और बारिश की उमस के बीच ये लोग बेहद परेशानी भरे हालात में जी रहे हैं।
कैसे चल रहा गुजारा
कुल 620 हिंदू शरणार्थियों में 160 बच्चे और 240 महिलाएं हैं। सभी 220 पुरुष स्थानीय बाजार में मजदूरों के रुप में काम कर रहे हैं। कुछ लोग रेहड़ी लगाते हैं या कोई छोटे-मोटे सामान बनाकर लोगों को बेचते हैं और उससे हुई आय से पेट भर रहे हैं। इन शरणार्थियों की मदद कर रहे एक समाजसेवी हरिओम ने बताया कि कुछ लोगों के सहयोग से यहां एक छोटा सा स्कूल खुलवा दिया गया है जहां इनके बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दी जा रही है। लेकिन इसके लिए उन्हें किसी तरह का कोई सरकारी सहयोग नहीं मिल रहा है। हरिओम ने बताया कि कुछ दूर पर आंगनवाड़ी जैसे कार्यक्रम चल रहे हैं, लेकिन इन बच्चों के लिए प्रयास करने के बाद भी वे आंगनवाड़ी खुलवाने में सफल नहीं हो सके।
उन्होंने बताया कि इन लोगों की मदद के लिए उन्होंने कई लोगों से संपर्क किया लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली। वे इनकी समस्याओं को लेकर केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी से लेकर दिल्ली सरकार तक में हर जगह अपील की, लेकिन उन्हें इसका कोई लाभ नहीं मिला। भाजपा से स्थानीय पार्षद गरिमा गुप्ता और आम आदमी पार्टी से विधायक पवन कुमार शर्मा से भी मदद के नाम पर उन्हें आश्वासन के अलावा और कुछ नहीं मिला है।
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- फोटो : amar-ujala
सुरक्षा को खतरा नहीं
हरिओम ने बताया कि इन हिंदू शरणार्थियों को यहां रहते लगभग पांच साल का समय बीत चुका है, लेकिन एक भी शरणार्थी के खिलाफ एक भी एफआईआर तक नहीं है। यानी ये शांतिप्रिय लोग हैं जो किसी तरह अपना गुजारा कर रहे हैं। वहीं इनके कैंपों से महज कुछ ही दूरी पर बसे बांग्लादेशी और रोहिंग्या शरणार्थी दिल्ली की सुरक्षा के लिए खतरा बने रहते हैं। समय-समय पर उनके खिलाफ कई मामले दर्ज हुए हैं, जबकि हिंदू शरणार्थियों के खिलाफ कहीं कोई शिकायत तक दर्ज नहीं कराई गई है।
क्यों पहुंचे थे हिंदु्स्तान
पाकिस्तानी हिंदुओं के इस पलायन के पीछे जो दर्द छिपा हुआ है, उसे आसानी से नहीं समझा जा सकता है। शरणार्थियों ने बताया कि पाकिस्तान में उन्हें सिर्फ हिंदू होने के नाते उनका ऐसा शोषण किया जाता है जिसे बयान नहीं किया जा सकता। इनके अंदर छिपा डर इसी बात से समझा जा सकता है कि भारत में होने के बाद भी वे खुलकर कुछ बताने को तैयार नहीं हैं। एक शरणार्थी सीमा ने नाम न छापे जाने की शर्त पर अमर उजाला को बताया कि एक-एक कर उनकी दो बेटियों को दिन दहाड़े उठा लिया गया। उनका धर्म परिवर्तन कर किसी मुस्लिम आदमी के साथ ब्याह दिया गया। आज वे नहीं जानतीं कि उनकी बेटियां कहां और किस हाल में हैं। इन जलालत भरी परिस्थितियों से बचने के लिए उन लोगों ने पाकिस्तान से भागना ही ठीक समझा।
एक हिंदू शरणार्थी ने बताया कि विरोध करने पर उन्हें पुलिस उठा ले जाती थी, बिना किसी गलती के भी उन पर कोई झूठा मुकदमा बनाकर साल-साल भर जेल में भर दिया जाता था।
नई सरकार से कोई उम्मीद नहीं
शरणार्थी ने बताया कि उन्हें नई सरकार बनने पर भी किसी राहत की कोई उम्मीद नहीं है। इसका कारण है कि उनके ऊपर जो अत्याचार होते हैं वह स्थानीय लोगों और स्थानीय पुलिस के सहयोग से होते हैं। सरकार तो सीधे तौर पर उन्हें कुछ नहीं कहती, लेकिन उनके साथ शोषण करने वालों के खिलाफ कोई कदम भी नहीं उठाती। यही कारण है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यक खात्मे के कगार पर हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में हालात सही होने तक वे वापस नहीं जाना चाहते।