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प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर सरकार का दावा है कि इससे किसानों को काफी राहत मिली है, लेकिन इसके साथ ही सच का एक दूसरा पहलू भी है। वह है फसल बीमा योजना का बीमा कंपनियों को जमकर लाभ पहुंचाना। सरकार की इस योजना से बीमा कंपनियों को पिछले साल बतौर प्रीमियम 22 हजार 180 करोड़ रुपये मिले। जबकि किसानों को
बीमा कंपनियों से 12 हजार 949 करोड़ की राशि ही क्षतिपूर्ति के तौर पर मिल पाई।
हाल ही में कृषि मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक कई राज्यों में चुकाए गए प्रीमियम से कई गुना ज्यादा भुगतान का दावा किया गया है। केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह का कहना है कि फसल बीमा योजना के तहत कई राज्यों में किसानों को चुकाए गए प्रीमियम से काफी ज्यादा क्षतिपूर्ति का भुगतान किया गया है। यह फसल बीमा योजना की सफलता को दर्शाता है।
वहीं सरकार के दावों के उलट यह भी खबरें आईं हैं कि किसानों को उनकी फसलों के नुकसान की भरपाई के दावों में देरी हो रही है या बेहद कम मुआवजा दिया जा रहा है। यहां तक कि तमिलनाडु के एक किसान को तो बतौर मुआवजा मात्र 7 रुपये की राशि ही दी गई, वहीं छत्तीसगढ़ के रायगढ़ के किसानों को केवल 5 से 18 रुपये ही मुआवजा राशि का भुगतान किया गया।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को साल 2016 में लॉन्च किया गया था, जिसमें फसल के साथ-साथ बुवाई के पूर्व और फसल कटाई के बाद के नुकसान को वहन किया जाता है। साथ ही इस योजना में खरीफ में अधिकतम 2 फीसदी, रबी में 1.5 फीसदी और कमर्शियल व बागवानी फसलों के लिए मात्र 5 फीसदी प्रीमियम किसानों से लिया जाता है। जबकि शेष प्रीमियम केंद्र और राज्य सरकारें वहन करती हैं। वहीं, किसान अपनी उपज का औसतन 150 फीसदी तक फसल बीमा करा सकते हैं।
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक यह योजना किसानों को आर्थिक संकट से बचा रही है। जिसके चलते बड़ी संख्या में किसान इस योजना से जुड़ रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक 2016-17 में इस स्कीम से 1.20 करोड़ किसान लाभान्वित हुए थे और बीमा कंपनियों ने किसानों को 12 हजार 949 करोड़ की मुआवजा राशि प्रदान की। जबकि 2016-17 में पांच करोड़ 71 लाख किसानों ने बीमा कराया था। इसमें से एक करोड़ 37 लाख गैर-ऋणी किसान थे।
हालांकि बीमा कंपनियों को 22 हजार 180 करोड़ रुपये की राशि प्रीमियम के तौर पर मिली, जिसमें 4 हजार 383 करोड़ रुपये किसानों से और 17 हजार 796 करोड़ रुपये राज्यों और केंद्र से सब्सिडी के तौर पर मिले। हालांकि कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इस योजना में कई पेंच हैं और लगता है कि यह योजना बीमा कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई गई है।
सरकार की इस योजना में सरकारी के साथ
निजी कंपनियां भी पैनल में शामिल हैं। प्राइवेट कंपनियों में आईसीआईसीआई लोंबार्ड जनरल इंश्योरेंस, एचडीएफसी-अर्गो, इफको-टोकियो, चोलामंडलम, टाटा एआईजी, फ्यूचर जनरैली, बजाज अलायंस समेत कई कंपनियां फसल बीमा योजना स्कीम में राज्यों के पैनल में शामिल हैं।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में ओलावृष्टि एवं भूस्खलन के साथ-साथ जलभराव के चलते फसल की क्षतिपूर्ति का आकलन प्रत्येक क्षतिग्रस्त खेत के आधार पर किया जाता है। पुरानी फसल बीमा योजना में सिर्फ खड़ी फसल का बीमा किया जाता था और इसका प्रीमियम 15 फीसदी तक था। पहले 11 फीसदी कैपिंग के चलते किसानों को उपज नुकसान का पूरा मुआवजा नहीं मिल पाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। कैपिंग को हटा देने से किसानों को उपज नुकसान का 100 फीसदी भुगतान किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर सरकार का दावा है कि इससे किसानों को काफी राहत मिली है, लेकिन इसके साथ ही सच का एक दूसरा पहलू भी है। वह है फसल बीमा योजना का बीमा कंपनियों को जमकर लाभ पहुंचाना। सरकार की इस योजना से बीमा कंपनियों को पिछले साल बतौर प्रीमियम 22 हजार 180 करोड़ रुपये मिले। जबकि किसानों को
बीमा कंपनियों से 12 हजार 949 करोड़ की राशि ही क्षतिपूर्ति के तौर पर मिल पाई।
हाल ही में कृषि मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक कई राज्यों में चुकाए गए प्रीमियम से कई गुना ज्यादा भुगतान का दावा किया गया है। केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह का कहना है कि फसल बीमा योजना के तहत कई राज्यों में किसानों को चुकाए गए प्रीमियम से काफी ज्यादा क्षतिपूर्ति का भुगतान किया गया है। यह फसल बीमा योजना की सफलता को दर्शाता है।
वहीं सरकार के दावों के उलट यह भी खबरें आईं हैं कि किसानों को उनकी फसलों के नुकसान की भरपाई के दावों में देरी हो रही है या बेहद कम मुआवजा दिया जा रहा है। यहां तक कि तमिलनाडु के एक किसान को तो बतौर मुआवजा मात्र 7 रुपये की राशि ही दी गई, वहीं छत्तीसगढ़ के रायगढ़ के किसानों को केवल 5 से 18 रुपये ही मुआवजा राशि का भुगतान किया गया।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को साल 2016 में लॉन्च किया गया था, जिसमें फसल के साथ-साथ बुवाई के पूर्व और फसल कटाई के बाद के नुकसान को वहन किया जाता है। साथ ही इस योजना में खरीफ में अधिकतम 2 फीसदी, रबी में 1.5 फीसदी और कमर्शियल व बागवानी फसलों के लिए मात्र 5 फीसदी प्रीमियम किसानों से लिया जाता है। जबकि शेष प्रीमियम केंद्र और राज्य सरकारें वहन करती हैं। वहीं, किसान अपनी उपज का औसतन 150 फीसदी तक फसल बीमा करा सकते हैं।
योजना में सरकारी के साथ निजी कंपनियां भी पैनल में शामिल हैं
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक यह योजना किसानों को आर्थिक संकट से बचा रही है। जिसके चलते बड़ी संख्या में किसान इस योजना से जुड़ रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक 2016-17 में इस स्कीम से 1.20 करोड़ किसान लाभान्वित हुए थे और बीमा कंपनियों ने किसानों को 12 हजार 949 करोड़ की मुआवजा राशि प्रदान की। जबकि 2016-17 में पांच करोड़ 71 लाख किसानों ने बीमा कराया था। इसमें से एक करोड़ 37 लाख गैर-ऋणी किसान थे।
हालांकि बीमा कंपनियों को 22 हजार 180 करोड़ रुपये की राशि प्रीमियम के तौर पर मिली, जिसमें 4 हजार 383 करोड़ रुपये किसानों से और 17 हजार 796 करोड़ रुपये राज्यों और केंद्र से सब्सिडी के तौर पर मिले। हालांकि कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इस योजना में कई पेंच हैं और लगता है कि यह योजना बीमा कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई गई है।
सरकार की इस योजना में सरकारी के साथ
निजी कंपनियां भी पैनल में शामिल हैं। प्राइवेट कंपनियों में आईसीआईसीआई लोंबार्ड जनरल इंश्योरेंस, एचडीएफसी-अर्गो, इफको-टोकियो, चोलामंडलम, टाटा एआईजी, फ्यूचर जनरैली, बजाज अलायंस समेत कई कंपनियां फसल बीमा योजना स्कीम में राज्यों के पैनल में शामिल हैं।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में ओलावृष्टि एवं भूस्खलन के साथ-साथ जलभराव के चलते फसल की क्षतिपूर्ति का आकलन प्रत्येक क्षतिग्रस्त खेत के आधार पर किया जाता है। पुरानी फसल बीमा योजना में सिर्फ खड़ी फसल का बीमा किया जाता था और इसका प्रीमियम 15 फीसदी तक था। पहले 11 फीसदी कैपिंग के चलते किसानों को उपज नुकसान का पूरा मुआवजा नहीं मिल पाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। कैपिंग को हटा देने से किसानों को उपज नुकसान का 100 फीसदी भुगतान किया जा रहा है।