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साल भर पहले आज की ही तारीख में दिल्ली ने दंगों की तपिश महसूस की थी। 24 फरवरी को दंगाईयों ने दिल्ली की तासीर को तार-तार कर दिया था। हिंसक भीड़ ने सारी हदें लांघी थीं। बावजूद इस सबके, जल रही दिल्ली में भी उम्मीद की लौ नहीं बुझी थी। नफरत की आंधी में भी कुछ लोग ऐसे थे, जिन्होंने हजारों की सामने खड़ी भीड़ में अपनी जान पर खेलकर दूसरे समुदाय के लोगों की जान बचाई थी। इससे यकीन एक-दूसरे पर गाढ़ा हुआ। साल भर बाद भी वह हंसी खुशी साथ-साथ चल रहे हैं। उजली कहानियों के सहारे फिर से उठ खड़ी होती दिल्ली पर राजीव कुमार और शुजात आलम की रिपोर्ट....
इस मोहब्बत को छोड़ जाना कौन चाहेगा...
कहानी शाहिद पहवान की, शीशराम ने जिनकी दंगों के दौरान बचाई थी जान, गुरू-शिष्य का है दोनों में नाता
'शीशराम मेरा शिष्य है, उसने अपना धर्म निभाया, आज मैं और मेरा परिवार उसकी वजह से जिंदा है...।' बात करते-करते शाहिद पहलवान की आंखो में पानी भर आया। सीआईएसएफ से वीआरएस लेने वाले शाहिद ने राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर गोल्डमेडल समेत कई पदक जीते हैं। दंगे वाले दिन जब उपद्रवियों ने उनके मकान को घेर लिया तो शाहिद के शिष्य शीशराम दीवार बनकर खड़े हो गए थे। उन्होंने लोगों को समझाया और वहां से भगा दिया। बाद में शाहिद और उनके भाई के परिवार 12 लोगों को वह अपने घर ले आए। जब तक शांति नहीं हुई शीशराम ने परिवार को अपने घर पर रखा। शाहिद के अलावा रुस्तम और फैजान के परिवार को शीशराम ने शरण दी। आज शाहिद और बाकी लोगों के परिवार इन शांति दूतों की मोहब्बत की वजह से अपना घर छोड़कर नहीं जाना चाहते। उनका कहना है कि जब तक वह जिंदा है, इसी मोहल्ले में रहेंगे।
शाहिद पहलवान और उनके भाई अतीक अली का परिवार मोहल्ला बिचपट्टया, घोंडा गांव में रहता है। शाहिद बताते हैं उनके कई पीढ़ियां यहीं गांव में रहीं। शाहिद नेशनल रेसलर रहे। इनके पड़ोस में ही रहने वाले शीशराम पहलवान उर्फ शीशू (49) ने शाहिद से पहलवानी के गुर सीखे। शीशू को वर्ष 1994 में हिमाचल केसरी के खिताब से नवाजा गया। शाहिद सीआईएसएफ में थे, निजी कारणों से वर्ष 2012 में उन्होंने वीआरएस ले लिया था। इनके एक बेटा मोहसिन गुलाब अली सेना में है।
शाहिद बताते हैं कि 25 फरवरी 2020 को चारों ओर से चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं। हर ओर धुंआ ही धुंआ दिखाई दे रहा था। उनका पूरा परिवार बुरी तरह डरा हुआ था। दिन में अचानक सैकड़ों लोगों की भीड़ उनके दरवाजे पर पहुंच गई और धार्मिक नारेबाजी करने लगी। एक पल के लिए लगा कि आज शायद उनका परिवार नहीं बच पाएगा। इसी दौरान उनका शिष्य शीशू वहां पहुंचा। उसने गांव वालों से कहा कि हर सुख-दुख में शाहिद हमारे साथ रहता है, दंगे तो दो दिन के हैं, हम भगवान को क्या मुंह दिखाएंगे।
उपद्रवी तब भी नहीं मानें तो शीशू ने कहा कि शाहिद के परिवार को आंच पहुंचाने से पहले तुमकों मेरी लाश पर से जाना होगा। इसके बाद दंगाई वहां से गए। हालात देखकर शीशू शाहिद के परिवार के अलावा पड़ोस में स्त्री करने वाले रुस्तम और मोबाइल शॉप चलाने वाले फैजान के परिवारों को अपने घर ले आया। तीनों परिवारों के करीब 20 लोगों को अपने घर पर रखकर शीशू ने न सिर्फ उनकी रक्षा की बल्कि उनके खाने-पीने की भी व्यवस्था की। दंगों के बाद रुस्तम और फैजान के परिवारों ने जब मोहल्ला छोड़कर दूसरी जगह जाने का प्रयास किया तो शीशू और उसके परिवार ने इन परिवारों को जाने नहीं दिया। मोहल्ले वालों की मोहब्बत देखकर आज कोई यहां से जाना भी नहीं चाहता।
साल भर पहले आज की ही तारीख में दिल्ली ने दंगों की तपिश महसूस की थी। 24 फरवरी को दंगाईयों ने दिल्ली की तासीर को तार-तार कर दिया था। हिंसक भीड़ ने सारी हदें लांघी थीं। बावजूद इस सबके, जल रही दिल्ली में भी उम्मीद की लौ नहीं बुझी थी। नफरत की आंधी में भी कुछ लोग ऐसे थे, जिन्होंने हजारों की सामने खड़ी भीड़ में अपनी जान पर खेलकर दूसरे समुदाय के लोगों की जान बचाई थी। इससे यकीन एक-दूसरे पर गाढ़ा हुआ। साल भर बाद भी वह हंसी खुशी साथ-साथ चल रहे हैं। उजली कहानियों के सहारे फिर से उठ खड़ी होती दिल्ली पर राजीव कुमार और शुजात आलम की रिपोर्ट....
इस मोहब्बत को छोड़ जाना कौन चाहेगा...
कहानी शाहिद पहवान की, शीशराम ने जिनकी दंगों के दौरान बचाई थी जान, गुरू-शिष्य का है दोनों में नाता
'शीशराम मेरा शिष्य है, उसने अपना धर्म निभाया, आज मैं और मेरा परिवार उसकी वजह से जिंदा है...।' बात करते-करते शाहिद पहलवान की आंखो में पानी भर आया। सीआईएसएफ से वीआरएस लेने वाले शाहिद ने राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर गोल्डमेडल समेत कई पदक जीते हैं। दंगे वाले दिन जब उपद्रवियों ने उनके मकान को घेर लिया तो शाहिद के शिष्य शीशराम दीवार बनकर खड़े हो गए थे। उन्होंने लोगों को समझाया और वहां से भगा दिया। बाद में शाहिद और उनके भाई के परिवार 12 लोगों को वह अपने घर ले आए। जब तक शांति नहीं हुई शीशराम ने परिवार को अपने घर पर रखा। शाहिद के अलावा रुस्तम और फैजान के परिवार को शीशराम ने शरण दी। आज शाहिद और बाकी लोगों के परिवार इन शांति दूतों की मोहब्बत की वजह से अपना घर छोड़कर नहीं जाना चाहते। उनका कहना है कि जब तक वह जिंदा है, इसी मोहल्ले में रहेंगे।
शाहिद पहलवान और उनके भाई अतीक अली का परिवार मोहल्ला बिचपट्टया, घोंडा गांव में रहता है। शाहिद बताते हैं उनके कई पीढ़ियां यहीं गांव में रहीं। शाहिद नेशनल रेसलर रहे। इनके पड़ोस में ही रहने वाले शीशराम पहलवान उर्फ शीशू (49) ने शाहिद से पहलवानी के गुर सीखे। शीशू को वर्ष 1994 में हिमाचल केसरी के खिताब से नवाजा गया। शाहिद सीआईएसएफ में थे, निजी कारणों से वर्ष 2012 में उन्होंने वीआरएस ले लिया था। इनके एक बेटा मोहसिन गुलाब अली सेना में है।
शाहिद बताते हैं कि 25 फरवरी 2020 को चारों ओर से चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं। हर ओर धुंआ ही धुंआ दिखाई दे रहा था। उनका पूरा परिवार बुरी तरह डरा हुआ था। दिन में अचानक सैकड़ों लोगों की भीड़ उनके दरवाजे पर पहुंच गई और धार्मिक नारेबाजी करने लगी। एक पल के लिए लगा कि आज शायद उनका परिवार नहीं बच पाएगा। इसी दौरान उनका शिष्य शीशू वहां पहुंचा। उसने गांव वालों से कहा कि हर सुख-दुख में शाहिद हमारे साथ रहता है, दंगे तो दो दिन के हैं, हम भगवान को क्या मुंह दिखाएंगे।
उपद्रवी तब भी नहीं मानें तो शीशू ने कहा कि शाहिद के परिवार को आंच पहुंचाने से पहले तुमकों मेरी लाश पर से जाना होगा। इसके बाद दंगाई वहां से गए। हालात देखकर शीशू शाहिद के परिवार के अलावा पड़ोस में स्त्री करने वाले रुस्तम और मोबाइल शॉप चलाने वाले फैजान के परिवारों को अपने घर ले आया। तीनों परिवारों के करीब 20 लोगों को अपने घर पर रखकर शीशू ने न सिर्फ उनकी रक्षा की बल्कि उनके खाने-पीने की भी व्यवस्था की। दंगों के बाद रुस्तम और फैजान के परिवारों ने जब मोहल्ला छोड़कर दूसरी जगह जाने का प्रयास किया तो शीशू और उसके परिवार ने इन परिवारों को जाने नहीं दिया। मोहल्ले वालों की मोहब्बत देखकर आज कोई यहां से जाना भी नहीं चाहता।