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शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को सरकारी दस्तावेज में शहीद घोषित कराने का मुद्दा संसद में उठने के बाद भी लंबित है। यानी दस्तावेज में वे शहीद घोषित नहीं किए गए हैं।
सरकारें अब तक बयानों से आगे नहीं बढ़ सकी हैं। सरकार की बेरुखी से नाराज भगत सिंह के पौत्र यादवेंद्र सिंह संधू अब इस मुद्दे को लेकर आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं।
फरीदाबाद में रहने वाले भगत सिंह के पौत्र यादवेंद्र सिंह संधू इस मुद्दे को लगातार उठा रहे हैं। वर्ष 2013 में संधू ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था। इसके बाद अगस्त में सरकार ने राज्यसभा में बयान दिया था कि जल्द ही रिकॉर्ड दुरुस्त किया जाएगा।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी इस बारे में बयान दिया था। इसके बावजूद अब तक यह मांग पूरी नहीं की गई है। संधू का कहना है कि वह सरकार से खैरात नहीं मांग रहे हैं।
वह तो उन क्रांतिकारियों को दस्तावेज में शहीद घोषित करने की मांग कर रहे हैं, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। उन्होंने साथ ही कहा कि मैं भाजपा और कांग्रेस सहित सभी दलों से पूछना चाहता हूं कि वे इस मुद्दे पर क्या करेंगे।
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को पाकिस्तान के लायलपुर (वर्तमान में फैसलाबाद) में हुआ था। अंग्रेजों ने उन्हें कैद करके लाहौर सेंट्रल जेल में रखा। वहीं 23 मार्च 1931 को उन्हें फांसी दे दी गई।
अप्रैल 2013 में ‘अमर उजाला’ की ओर से केंद्रीय गृह मंत्रालय में डाली गई एक आरटीआई के जवाब से पता चला था कि अब तक भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को दस्तावेज में शहीद घोषित नहीं किया गया है।
जुलाई में इससे संबंधित खबर प्रकाशित की गई तो बवाल मच गया। इसके बाद से भगत सिंह के वंशज लगातार यह मुद्दा उठा रहे हैं।
यादवेंद्र सिंह संधू के पास शहीद भगत सिंह की वह अनमोल डायरी है, जिसे उन्होंने लाहौर जेल में लिखा था। यह डायरी अब किताब की शक्ल में लोगों के बीच आने वाली है। भगत सिंह से जुड़े मुद्दे उठाने के कारण इसकी प्रस्तावना में ‘अमर उजाला’ का जिक्र किया गया है। शहीदी दिवस पर दिल्ली में इसका विमोचन होना है।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को सरकारी दस्तावेज में शहीद घोषित कराने का मुद्दा संसद में उठने के बाद भी लंबित है। यानी दस्तावेज में वे शहीद घोषित नहीं किए गए हैं।
सरकारें अब तक बयानों से आगे नहीं बढ़ सकी हैं। सरकार की बेरुखी से नाराज भगत सिंह के पौत्र यादवेंद्र सिंह संधू अब इस मुद्दे को लेकर आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं।
फरीदाबाद में रहने वाले भगत सिंह के पौत्र यादवेंद्र सिंह संधू इस मुद्दे को लगातार उठा रहे हैं। वर्ष 2013 में संधू ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था। इसके बाद अगस्त में सरकार ने राज्यसभा में बयान दिया था कि जल्द ही रिकॉर्ड दुरुस्त किया जाएगा।
'हम सरकार से खैरात नहीं मांग रहे हैं'
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी इस बारे में बयान दिया था। इसके बावजूद अब तक यह मांग पूरी नहीं की गई है। संधू का कहना है कि वह सरकार से खैरात नहीं मांग रहे हैं।
वह तो उन क्रांतिकारियों को दस्तावेज में शहीद घोषित करने की मांग कर रहे हैं, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। उन्होंने साथ ही कहा कि मैं भाजपा और कांग्रेस सहित सभी दलों से पूछना चाहता हूं कि वे इस मुद्दे पर क्या करेंगे।
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को पाकिस्तान के लायलपुर (वर्तमान में फैसलाबाद) में हुआ था। अंग्रेजों ने उन्हें कैद करके लाहौर सेंट्रल जेल में रखा। वहीं 23 मार्च 1931 को उन्हें फांसी दे दी गई।
अमर उजाला ने की थी पहल
अप्रैल 2013 में ‘अमर उजाला’ की ओर से केंद्रीय गृह मंत्रालय में डाली गई एक आरटीआई के जवाब से पता चला था कि अब तक भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को दस्तावेज में शहीद घोषित नहीं किया गया है।
जुलाई में इससे संबंधित खबर प्रकाशित की गई तो बवाल मच गया। इसके बाद से भगत सिंह के वंशज लगातार यह मुद्दा उठा रहे हैं।
यादवेंद्र सिंह संधू के पास शहीद भगत सिंह की वह अनमोल डायरी है, जिसे उन्होंने लाहौर जेल में लिखा था। यह डायरी अब किताब की शक्ल में लोगों के बीच आने वाली है। भगत सिंह से जुड़े मुद्दे उठाने के कारण इसकी प्रस्तावना में ‘अमर उजाला’ का जिक्र किया गया है। शहीदी दिवस पर दिल्ली में इसका विमोचन होना है।