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Uttarakhand News CAG report revealed 93 Percent urban poor did not get affordable house in five years
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Uttarakhand: कैग की रिपोर्ट में खुलासा, पांच साल में 93% शहरी गरीबों को नहीं मिला सस्ता घर
अमर उजाला ब्यूरो, देहरादून
Published by: अलका त्यागी
Updated Tue, 21 Mar 2023 11:29 AM IST
यह योजना 2015 से प्रभावी थी। मार्च 2022 तक योजना लागू रहना था। योजना के तहत सरकार की वित्तीय सहायता से वर्ष 2022 तक आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग(ईडब्ल्यूएस), निम्न आय समूह (एलआईजी) और मध्यम आय समूह (एमआईजी) सहित शहरी गरीबों के लिए घर बनाए जाने हैं।
पिछले पांच साल के दौरान उत्तराखंड के शहरी स्थानीय निकायों में 93 फीसदी गरीबों को सस्ता घर देने का सपना अधूरा रह गया। घर बनाने के लिए निकायों को पांच हजार से अधिक आवेदन प्राप्त हुए, जिनमें से तीन हजार से अधिक वास्तविक लाभार्थी पाए गए। इनमें से भी सिर्फ 210 लाभार्थियों की सस्ता घर पाने की मुराद पूरी हो सकी। यानी सात फीसदी को ही सस्ता घर मिल सका।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। कैग ने शहरी क्षेत्र स्थानीय निकायों के माध्यम से प्रधानमंत्री आवास योजना के ऑडिट में यह भारी गड़बड़ी पकड़ी है। कैग ने देहरादून नगर निगम समेत प्रदेश की 19 निकायों में सस्ता घर योजना के आवेदनों की नमूना जांच में यह अनियमितता उजागर की है।
घर बनाने के लिए मिलती है ये वित्तीय सहायता
पात्रता पूरी करने के बाद निर्माण शुरू करने से पहले 20 हजार रुपये, प्लिंथ स्तर तक पूरा होने पर एक लाख रुपये और निर्माण के बाद तक छत 60 हजार रुपये और निर्माण पूरा होने पर 20 हजार रुपये दिए जाते हैं।
योजना पर पलीता, यह है सच्चाई
प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना पर स्थानीय निकायों ने पलीता लगा दिया। 2015-16 से 2019-20 के दौरान 19 निकायों के पास सस्ता घर के लिए 5165 लोगों ने आवेदन किया। इनमें से 3094 को वास्तविक लाभार्थी चुने गए। लेकिन घर की मुराद केवल 210 यानी सात फीसदी ही पूरी हो सकी। 2884 यानी 93 फीसदी आवास नहीं बन पाए।
ये गड़बड़ियां पकड़ी गईं
भीमताल नगर पंचायत ने 2019-20 में डीपीआर तैयार नहीं की।
शक्तिगढ़ नगर पंचायत में पैसे की कमी से 2017-18 से निर्माण लटका था।
नमूना इकायों में निर्माण विभिन्न चरणों में वर्षों से लंबित।
निर्माण पूरा करने में शहरी स्थानीय निकायों के स्तर पर प्रयास नहीं हुए।
योजना पर काम बेहद धीमी गति से हुआ।
डीपीआर की लंबित स्वीकृति, पैसे की कमी और निर्माण में देरी से योजना का उद्देश्य विफल हो गया।
भगवानपुर, पिरान कलियर नगर पंचायत, नगर पालिका परिषद, मुनि की रेती व हरबर्टपुर में 911 लाभार्थियों में से 529 के पास भूमि का स्वामित्व नहीं था। परिवार के सदस्यों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एओसी) प्रस्तुत दिया गया।
योजना का लाभ लेने से ही मना कर दिया
कैग ने पाया कि सत्यापन के बाद 1164 लाभार्थियों में से 32 अपात्र पाए गए अथवा उन्होंने योजना का लाभ लेने से मना कर दिया। अफसरों ने सत्यापन में लापरवाही की। अनियमित भुगतान हुए जिनकी वसूली नहीं की गई।
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