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केदारनाथ आपदा से सबक लेते हुए आखिरकार सरकार ने उत्तराखंड में गंगा सहित अन्य कई नदियों के बाढ़ क्षेत्र घोषित करते हुए निर्माण की सशर्त अनुमति की अधिसूचना जारी कर दी है। सरकार ने आपत्तियों की सुनवाई के लिए 60 दिन का समय दिया है।
प्रदेश में बाढ़ मैदान (फ्लड जोन) परिक्षेत्र अधिनियम 2012 में बनाया गया था। इतना होने पर भी इसके तहत नदियों के बाढ़ क्षेत्र के निर्धारण पर कोई कसरत नहीं हुई। 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद यह महसूस किया गया कि नदियों के बाढ़ क्षेत्र में निर्माण या अन्य गतिविधियों को सीमित किया जाना जरूरी है। तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसके लिए नदियों के बाढ़ क्षेत्र को चिह्नित करने पर भी जोर दिया था।
अब प्रदेश सरकार ने गंगा नदी के बाढ़ क्षेत्र को चिह्नित करते हुए अधिसूचना जारी कर दी है। सचिव सिंचाई नितीश कुुमार झा की ओर से जारी आदेश मुताबिक अधिसूचित किए गए क्षेत्र में सशर्त निर्माण की ही अनुमति होगी। जिलाधिकारी अपने स्तर पर आपत्तियों की सुनवाई करेंगे। बता दें कि नदियों का यह बाढ़ क्षेत्र नदी के सौ साल के व्यवहार के आधार पर जारी किया जाता है।
अधिसूचना में नदी के बाढ़ क्षेत्र को दो भागों में बांटा गया है। पहला प्रतिबंधित क्षेत्र और दूसरा निर्बंधित।
प्रतिबंधित क्षेत्र : केवल इनकी होगी अनुमति
तटबंध, बाढ़ प्रबंधन, खनन, पौधरोपण, खेती, स्नान घाट निर्माण, नदी तट विकास, पेयजल योजना, जल क्रीड़ा, जल परिवहन, पुल, सिंचाई, जल विद्युत परियोजनाओं से संबंधित निर्माण कार्य।
निर्बंधित क्षेत्र : इनके लिए सशर्त अनुमति
पार्क, खेल का मैदान, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के साथ अस्थायी निर्माण, भवन निर्माण की अनुमति होने पर हाई फ्लड लेवल से प्लिंथ लेवल कम से कम एक मीटर और भवन अधिकतम दो मंजिला होगा। इसमें सीवरेज आदि की व्यवस्था होगी।
देहरादून जिले में बाढ़ क्षेत्र
ऋषिकेश के ढालवाला ड्रेन से पशुलोक बैराज, पशुलोक बैराज से हरिपुर कलां तक गंगा नदी के दाएं तट पर। अधिसूचना में बाढ़ क्षेत्र की माप भी जारी कर दी गई।
टिहरी जिले में बाढ़ क्षेत्र
तहसील कीर्तिनगर एवं देवप्रयाग में अलकनंदा नदी के दाएं तट पर श्रीनगर बांध से देवप्रयाग संगम तक। तहसील कीर्तिनगर में ग्राम सुपाणा, मंगसू, मढ़ी, सांकरों, नौर, गोरसाली, नैथाना, रानीहाट आदि गांव। कीर्तिनगर तहसील में करीब 51 हेक्टेयर और देवप्रयाग तहसील में 25 हेक्टेयर भूमि प्रतिबंधित क्षेत्र में है। इसी तरह अन्य तहसीलों की अधिसूचना भी जारी कर दी गई है।
पौड़ी और रुद्रप्रयाग में
सिंचाई विभाग के मुताबिक पौड़ी और रुद्रप्रयाग के लिए भी अधिसूचना जारी की जा चुकी है। अन्य जिलों के लिए भी की जा रही है।
केदारनाथ आपदा से सबक
केदारनाथ आपदा के दौरान नदी में आई बाढ़ ने तटीय क्षेत्रों को खासा नुकसान पहुंचाया था। यह पाया गया था कि नदी के बाढ़ क्षेत्र से दूर अगर निर्माण हों तो बाढ़ की भयावहता का सामना लोगों को नहीं करना पड़ेगा और नुकसान भी कम होगा। इसमें सबसे पहली शर्त नदी के बाढ़ क्षेत्र की पहचान की ही है। इसी काम को आगे अभी तक आगे नहीं बढ़ाया जा सका था।
सार
- बाढ़ क्षेत्र अधिसूचित : आपत्तियों की सुनवाई के लिए 60 दिन का समय दिया
विस्तार
केदारनाथ आपदा से सबक लेते हुए आखिरकार सरकार ने उत्तराखंड में गंगा सहित अन्य कई नदियों के बाढ़ क्षेत्र घोषित करते हुए निर्माण की सशर्त अनुमति की अधिसूचना जारी कर दी है। सरकार ने आपत्तियों की सुनवाई के लिए 60 दिन का समय दिया है।
प्रदेश में बाढ़ मैदान (फ्लड जोन) परिक्षेत्र अधिनियम 2012 में बनाया गया था। इतना होने पर भी इसके तहत नदियों के बाढ़ क्षेत्र के निर्धारण पर कोई कसरत नहीं हुई। 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद यह महसूस किया गया कि नदियों के बाढ़ क्षेत्र में निर्माण या अन्य गतिविधियों को सीमित किया जाना जरूरी है। तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसके लिए नदियों के बाढ़ क्षेत्र को चिह्नित करने पर भी जोर दिया था।
अब प्रदेश सरकार ने गंगा नदी के बाढ़ क्षेत्र को चिह्नित करते हुए अधिसूचना जारी कर दी है। सचिव सिंचाई नितीश कुुमार झा की ओर से जारी आदेश मुताबिक अधिसूचित किए गए क्षेत्र में सशर्त निर्माण की ही अनुमति होगी। जिलाधिकारी अपने स्तर पर आपत्तियों की सुनवाई करेंगे। बता दें कि नदियों का यह बाढ़ क्षेत्र नदी के सौ साल के व्यवहार के आधार पर जारी किया जाता है।
अधिसूचना में नदी के बाढ़ क्षेत्र को दो भागों में बांटा गया है। पहला प्रतिबंधित क्षेत्र और दूसरा निर्बंधित।
प्रतिबंधित क्षेत्र : केवल इनकी होगी अनुमति
तटबंध, बाढ़ प्रबंधन, खनन, पौधरोपण, खेती, स्नान घाट निर्माण, नदी तट विकास, पेयजल योजना, जल क्रीड़ा, जल परिवहन, पुल, सिंचाई, जल विद्युत परियोजनाओं से संबंधित निर्माण कार्य।
निर्बंधित क्षेत्र : इनके लिए सशर्त अनुमति
पार्क, खेल का मैदान, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के साथ अस्थायी निर्माण, भवन निर्माण की अनुमति होने पर हाई फ्लड लेवल से प्लिंथ लेवल कम से कम एक मीटर और भवन अधिकतम दो मंजिला होगा। इसमें सीवरेज आदि की व्यवस्था होगी।
देहरादून जिले में बाढ़ क्षेत्र
ऋषिकेश के ढालवाला ड्रेन से पशुलोक बैराज, पशुलोक बैराज से हरिपुर कलां तक गंगा नदी के दाएं तट पर। अधिसूचना में बाढ़ क्षेत्र की माप भी जारी कर दी गई।
टिहरी जिले में बाढ़ क्षेत्र
तहसील कीर्तिनगर एवं देवप्रयाग में अलकनंदा नदी के दाएं तट पर श्रीनगर बांध से देवप्रयाग संगम तक। तहसील कीर्तिनगर में ग्राम सुपाणा, मंगसू, मढ़ी, सांकरों, नौर, गोरसाली, नैथाना, रानीहाट आदि गांव। कीर्तिनगर तहसील में करीब 51 हेक्टेयर और देवप्रयाग तहसील में 25 हेक्टेयर भूमि प्रतिबंधित क्षेत्र में है। इसी तरह अन्य तहसीलों की अधिसूचना भी जारी कर दी गई है।
पौड़ी और रुद्रप्रयाग में
सिंचाई विभाग के मुताबिक पौड़ी और रुद्रप्रयाग के लिए भी अधिसूचना जारी की जा चुकी है। अन्य जिलों के लिए भी की जा रही है।
केदारनाथ आपदा से सबक
केदारनाथ आपदा के दौरान नदी में आई बाढ़ ने तटीय क्षेत्रों को खासा नुकसान पहुंचाया था। यह पाया गया था कि नदी के बाढ़ क्षेत्र से दूर अगर निर्माण हों तो बाढ़ की भयावहता का सामना लोगों को नहीं करना पड़ेगा और नुकसान भी कम होगा। इसमें सबसे पहली शर्त नदी के बाढ़ क्षेत्र की पहचान की ही है। इसी काम को आगे अभी तक आगे नहीं बढ़ाया जा सका था।