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चुनावी संग्राम 2022: यूपी-झारखंड में लहलहाए लेकिन उत्तराखंड में मुरझाए क्षेत्रीय दल

राकेश खंडूड़ी, अमर उजाला, देहरादून Published by: अलका त्यागी Updated Thu, 25 Nov 2021 02:20 AM IST
सार

Uttarakhand Election 2022:  इतिहास बताता है कि जहां उत्तरप्रदेश में क्षेत्रीय राजनीतिक दल सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रहे, वहीं उत्तराखंड में जन भावनाओं और संभावनाओं के बावजूद क्षेत्रीय दल मुरझाते चले गए।

Uttarakhand Election 2022: Regional parties wins in UP and Jharkhand but Fail in Uttarakhand
उत्तराखंड क्रांति दल - फोटो : फाइल फोटो

विस्तार

उत्तराखंड में क्षेत्रीय सरोकारों की राजनीति करने वाली पार्टियां सत्ता का ताला नहीं खोल पाई। पहाड़ के जनमानस को राज्य आंदोलन का नेतृत्व करने वाली उत्तराखंड क्रांति दल से बहुत उम्मीदें थीं। लेकिन राज्य में अब तक हुए चार विधानसभा चुनावों का इतिहास बताता है कि जहां उत्तरप्रदेश में क्षेत्रीय राजनीतिक दल सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रहे, वहीं जन भावनाओं और संभावनाओं के बावजूद क्षेत्रीय दल मुरझाते चले गए।



झारखंड में झामुमो का परचम लहराया, उत्तराखंड में यूकेडी हाशिए पर 
वर्ष 2000 में तत्कालीन अटल सरकार ने तीन नए राज्य उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और झारखंड बनाए। झारखंड की सियासत में क्षेत्रीय दल झारखंड मुक्ति मोर्चा(झामुमो) एक मजबूत राजनीतिक ताकत के तौर पर स्थापित है। वर्तमान में वहां सत्ता की कमान झामुमो के हेमंत सोरेन के हाथों में है। लेकिन यह सौभाग्य उत्तराखंड में सक्रिय क्षेत्रीय दलों का नहीं रहा। जनाकांक्षाओं, अस्मिता और संवेनदाओं की प्रतीक होने के बावजूद यूकेडी जनमत हासिल करने में नाकाम रही। 


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अधूरा रह गया अपना राज्य, अपनी सरकार का सपना
कुमाऊं विवि के पूर्व कुलपति डॉ. डीडी पंत ने 26 जुलाई 1979 को जब उत्तराखंड क्रांति दल(यूकेडी) की स्थापना की। तब यही सपना था कि भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों से एकदम भिन्न उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के जनसरोकारों के लिए यूकेडी अलग राज्य की लड़ाई का नेतृत्व करेगी। अपना राज्य होगा और अपनी सरकार बनेगी।

ऐरी जगाते रहे उम्मीद
उत्तरप्रदेश के समय से ही ऐरी उत्तराखंड क्रांति दल की संभावनाओं की उम्मीद जगाते रहे। वह डीडीहाट विधानसभा सीट से 1985 से 1996 तक तीन बार विधायक रहे। उत्तराखंड राज्य गठन के बाद 2002 ऐरी फिर विधानसभा पहुंचे।

चौके से किया था आगाज, अब शून्य पर

राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में भाजपा की अंतरिम सरकार बनी। ये क्षेत्रीय राजनीति के लिए संक्रमणकाल का दौर था। यही वह समय था जब राज्य की जनता को तय करना था कि वह क्षेत्रीय दलों के साथ जाए या राष्ट्रीय दलों का साथ दे। लेकिन पहाड़ की कुछ इलाकों का मत स्पष्ट था। लिहाजा नए राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में यूकेडी ने चार सीटें जीतकर उपस्थिति दर्ज कराई। लेकिन चौके से सियासी पारी का आगाज करने वाली यूकेडी चौथे चुनाव तक शून्य पर विधानसभा से आउट हो गई।

क्षेत्रीय दल भी नहीं बन पाया विकल्प
भाजपा और कांग्रेस के दबदबे और यूकेडी की आपसी लड़ाई के चलते राज्य में उत्तराखंड रक्षा मोर्चा का उदय हुआ। उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, उत्तराखंड जनवादी पार्टी ने चुनाव में भाग्य अजमाया। यूकेडी के विकल्प के तौर पर रक्षा मोर्चा ने भी चुनाव में ताल भी ठोकी। लेकिन इन सबके हाथ कुछ हाथ नहीं लगा।  जनता ने इस क्षेत्रीय दल को दरकिनार कर दिया। दल के शीर्ष नेता पूर्व सांसद टीपीएस ने दल को आप में विलय कर दिया। इस बीच उक्रांद भी दो हिस्सों में बंट गया।

चुनाव दर चुनाव हांफता गया बसपा का हाथी
राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय दल के तौर पर बहुजन समाज पार्टी(बसपा) ने सात सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन किया। लेकिन चुनाव दर दर चुनाव उसकी स्थिति खराब होती गई और राष्ट्रीय दलों की सियासी चालों के आगे बसपा का हाथी हांफने लगा। हालांकि उसका प्रदर्शन हरिद्वार जिले तक सीमित रहा। वर्ष 2017 के विस चुनाव में बसपा खाता तक नहीं खोल पाई। सपा की तो पहले चुनाव से ही खराब स्थिति रही।
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