सुरेंद्र कुमार वर्मा, अमर उजाला, पंतनगर
Updated Tue, 25 Aug 2020 02:00 AM IST
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सर्जिकल सिरिंज सहित, फूड प्रोसेसिंग और पैकेजिंग आदि में प्रयुक्त होने वाले प्लास्टिक उपकरणों के संक्रमित हो जाने की वजह से उन्हें बार-बार की जाने वाली स्टेरलाइजिंग से अब छुटकारा मिल सकेगा। जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 11 वर्षों के अथक प्रयास से एक ऐसा प्लास्टिक बनाने में सफलता हासिल की है, जो कि जीवाणुरोधी होगा।
विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग में प्राध्यापक डॉ. एमजीएच जैदी एवं सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग की पूर्व प्रमुख डॉ. रीता गोयल ने बताया कि सर्जिकल सिरिंज, उपकरण एवं फूड प्रोसेसिंग में प्रयुक्त होने वाले प्लास्टिक पदार्थों को संक्रमित होने के चलते बार-बार स्टेरलाइज करना पड़ता है। भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ बायो टेक्नोलॉजी (डीबीटी) के नैनो टेक्नोलॉजी टास्क फोर्स से सितंबर 2008 में स्वीकृत 36.7 लाख रुपये की परियोजना के विवि के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे प्लास्टिक को बनाने में सफलता हासिल की, जो जीवाणुरोधी था।
इस प्लास्टिक को पानी में डाला गया तो यह 72 घंटे तक जीवाणुरोधी पाया गया। वर्ष 2013 में इसके पेटेंट के लिए आवेदन किया, जो विभिन्न परीक्षणों के बाद फरवरी 2020 में हासिल हुआ है। इतना ही नहीं इस तकनीक को पेटेंट कोऑपरेशन ट्रिटी (पीसीटी) के तहत विश्व के 147 देशों में भी मान्यता मिली है। यह तकनीक उद्योगों को दी जाएगी। इस परियोजना में हुए एमओयू के तहत जो भी पदार्थ बनेगा, वह पंत विवि व डीबीटी का साझा उपक्रम होगा।
प्राध्यापक डॉ. एमजीएच जैदी ने बताया कि सबसे पहले हमने ऐसे प्लास्टिक पदार्थ चुने, जो मानवीय प्रयोग में हानिकारक न हों और जिनका जैव विघटन संभव हो। इन प्लास्टिक पदार्थों में जीवाणु नाशक नैनो पार्टिकल्स को मिलाया और तरल कार्बन डाई ऑक्साइड (हरित रसायन तकनीक) द्वारा जीवाणुरोधक नैनो पार्टिकल्स को अविषाक्त प्लास्टिक पदार्थों में संयोजित कर दिया।
इससे जो नैनो सबमिश्रण प्राप्त हुए, उसका उपयोग एंटी माइक्रोबियल (जीवाणुरोधी) प्लास्टिक बनाने में किया गया। विकसित नैनो सबमिश्रित प्लास्टिक विभिन्न प्रकार के घरेलू तथा चिकित्सीय उत्पादों के निर्माण और संरक्षण में वरदान साबित होंगे।
वर्तमान में जीवाणुरोधक प्लास्टिक का निर्माण विषैले कार्बनिक विलायकों की उपस्थिति में किया जाता है। इनके उपयोग से बनने वाले प्लास्टिक पदार्थों में विषाक्तता मौजूद रहती है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। नैनो सबमिश्रण के निर्माण में जो भी प्लास्टिक पदार्थ व नैनो पार्टिकल्स प्रयोग किए गए, वह मानव हितैषी हैं। इसमें किसी भी प्रकार के कार्बनिक विलायकों का प्रयोग न करते हुए हरित विलायकों का प्रयोग किया गया है।
-डॉ. एमजीएच जैदी, प्राध्यापक रसायन विज्ञान पंतनगर विवि
सार
- पंत विवि के वैज्ञानिकों ने 11 वर्षों के शोध के बाद बनाया जीवाणुरोधी प्लास्टिक
- डीबीटी से वित्त पोषित परियोजना के तहत पेटेंट भी हासिल
विस्तार
सर्जिकल सिरिंज सहित, फूड प्रोसेसिंग और पैकेजिंग आदि में प्रयुक्त होने वाले प्लास्टिक उपकरणों के संक्रमित हो जाने की वजह से उन्हें बार-बार की जाने वाली स्टेरलाइजिंग से अब छुटकारा मिल सकेगा। जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 11 वर्षों के अथक प्रयास से एक ऐसा प्लास्टिक बनाने में सफलता हासिल की है, जो कि जीवाणुरोधी होगा।
विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग में प्राध्यापक डॉ. एमजीएच जैदी एवं सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग की पूर्व प्रमुख डॉ. रीता गोयल ने बताया कि सर्जिकल सिरिंज, उपकरण एवं फूड प्रोसेसिंग में प्रयुक्त होने वाले प्लास्टिक पदार्थों को संक्रमित होने के चलते बार-बार स्टेरलाइज करना पड़ता है। भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ बायो टेक्नोलॉजी (डीबीटी) के नैनो टेक्नोलॉजी टास्क फोर्स से सितंबर 2008 में स्वीकृत 36.7 लाख रुपये की परियोजना के विवि के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे प्लास्टिक को बनाने में सफलता हासिल की, जो जीवाणुरोधी था।
इस प्लास्टिक को पानी में डाला गया तो यह 72 घंटे तक जीवाणुरोधी पाया गया। वर्ष 2013 में इसके पेटेंट के लिए आवेदन किया, जो विभिन्न परीक्षणों के बाद फरवरी 2020 में हासिल हुआ है। इतना ही नहीं इस तकनीक को पेटेंट कोऑपरेशन ट्रिटी (पीसीटी) के तहत विश्व के 147 देशों में भी मान्यता मिली है। यह तकनीक उद्योगों को दी जाएगी। इस परियोजना में हुए एमओयू के तहत जो भी पदार्थ बनेगा, वह पंत विवि व डीबीटी का साझा उपक्रम होगा।
ऐसे बनाया गया जीवाणुरोधी प्लास्टिक
प्राध्यापक डॉ. एमजीएच जैदी ने बताया कि सबसे पहले हमने ऐसे प्लास्टिक पदार्थ चुने, जो मानवीय प्रयोग में हानिकारक न हों और जिनका जैव विघटन संभव हो। इन प्लास्टिक पदार्थों में जीवाणु नाशक नैनो पार्टिकल्स को मिलाया और तरल कार्बन डाई ऑक्साइड (हरित रसायन तकनीक) द्वारा जीवाणुरोधक नैनो पार्टिकल्स को अविषाक्त प्लास्टिक पदार्थों में संयोजित कर दिया।
इससे जो नैनो सबमिश्रण प्राप्त हुए, उसका उपयोग एंटी माइक्रोबियल (जीवाणुरोधी) प्लास्टिक बनाने में किया गया। विकसित नैनो सबमिश्रित प्लास्टिक विभिन्न प्रकार के घरेलू तथा चिकित्सीय उत्पादों के निर्माण और संरक्षण में वरदान साबित होंगे।
वर्तमान में जीवाणुरोधक प्लास्टिक का निर्माण विषैले कार्बनिक विलायकों की उपस्थिति में किया जाता है। इनके उपयोग से बनने वाले प्लास्टिक पदार्थों में विषाक्तता मौजूद रहती है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। नैनो सबमिश्रण के निर्माण में जो भी प्लास्टिक पदार्थ व नैनो पार्टिकल्स प्रयोग किए गए, वह मानव हितैषी हैं। इसमें किसी भी प्रकार के कार्बनिक विलायकों का प्रयोग न करते हुए हरित विलायकों का प्रयोग किया गया है।
-डॉ. एमजीएच जैदी, प्राध्यापक रसायन विज्ञान पंतनगर विवि