देहरादून स्थित श्री गुरु राम राय दरबार साहिब उदासीन संप्रदाय का एक परोपकारी संगठन है। सिखों के सातवें गुरू श्री हर राय जी के के ज्येष्ठ पुत्र श्री गुरु राम राय जी ने परंपराओं, विचारों, आदर्शों और हिंदू धर्म के दर्शन की रक्षा और प्रसार के लिए इसे स्थापित किया था।
श्री गुरु राम राय छोटी उम्र में 1676 में देहरादून आए थे। उन्होंने दून घाटी में अपना 'डेरा' निवास बनाया जो बाद में औरंगजेब के शासन काल के दौरान देहरादून के रूप में लोकप्रिय हो गया है। उस समय दून वैली गुरू महराज जी की संपत्ति थी.
अंग्रेज भी लेते थे आज्ञा
तब अंग्रेज दरबार साहिब से आज्ञा लेने के बाद ही देहरादून में प्रवेश कर सकते थे. दरबार साहिब अभी भी इस संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा मालिक है.दरबार साहिब के भवन में इस्लामी और हिंदू स्थापत्य कला देखने को मिलती है। इस भवन में गुंबद, मीनारें, गुरुद्वारा, एक मिश्रित संस्कृति और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतिनिधित्व दर्शाती भित्ति चित्र शामिल हैं। दरबार साहिब में सभी वर्ग, जातियों और पंथ के लोग जा सकता हैं।
श्री गुरु राम राय जी का जन्म चैत्रावदी पंचमी को हुआ था। होली के पांचवें दिन किरतपुर में 1646 में पंजाब के जिला रोपड़ में महाराज जी का जन्म हुआ था। इनकी याद में उत्तरी भारत के प्रसिद्ध मेलों से एक देहरादून का झंडा मेला हर साल मनाया जाता है। यह में 1676 से मनाया जाता रहा है।
सेवा के लिए प्रतिबद्ध
1687 से श्री गुरु राम राय जी के बाद सजदा नशीन श्री महंतों को गद्दी पर बैठाया गया। इस गद्दी पर बैठने वाला महंत ज्ञानी, आरोही, भक्ति के रमा हुआ, मानवता की सेवा के लिए प्रतिबद्ध होता है। इस गद्दी पर बैठने वाले व्यक्ति द्वारा ही दरबार साहिब की पूरी देख रेख की जाती है। दरबार सहिब का पूरा प्रबंधन भी इसी व्यक्ति के पास होता है।
वर्तमान में इस गद्दी पर श्री महंत देवेंद्र दास जी विराजमान हैं। राजधानी में दरबार साहिब द्वारा संचालित श्री गुरु राम राय स्कूल, कॉलेज, मेडिकल कॉलेज और संबद्ध श्री महंत इंद्रेश अस्पताल और आम आदमी की सेवा करने में सफल चल रहे हैं।
देहरादून स्थित श्री गुरु राम राय दरबार साहिब उदासीन संप्रदाय का एक परोपकारी संगठन है। सिखों के सातवें गुरू श्री हर राय जी के के ज्येष्ठ पुत्र श्री गुरु राम राय जी ने परंपराओं, विचारों, आदर्शों और हिंदू धर्म के दर्शन की रक्षा और प्रसार के लिए इसे स्थापित किया था।
श्री गुरु राम राय छोटी उम्र में 1676 में देहरादून आए थे। उन्होंने दून घाटी में अपना 'डेरा' निवास बनाया जो बाद में औरंगजेब के शासन काल के दौरान देहरादून के रूप में लोकप्रिय हो गया है। उस समय दून वैली गुरू महराज जी की संपत्ति थी.
अंग्रेज भी लेते थे आज्ञा
तब अंग्रेज दरबार साहिब से आज्ञा लेने के बाद ही देहरादून में प्रवेश कर सकते थे. दरबार साहिब अभी भी इस संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा मालिक है.दरबार साहिब के भवन में इस्लामी और हिंदू स्थापत्य कला देखने को मिलती है। इस भवन में गुंबद, मीनारें, गुरुद्वारा, एक मिश्रित संस्कृति और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतिनिधित्व दर्शाती भित्ति चित्र शामिल हैं। दरबार साहिब में सभी वर्ग, जातियों और पंथ के लोग जा सकता हैं।
श्री गुरु राम राय जी का जन्म चैत्रावदी पंचमी को हुआ था। होली के पांचवें दिन किरतपुर में 1646 में पंजाब के जिला रोपड़ में महाराज जी का जन्म हुआ था। इनकी याद में उत्तरी भारत के प्रसिद्ध मेलों से एक देहरादून का झंडा मेला हर साल मनाया जाता है। यह में 1676 से मनाया जाता रहा है।
सेवा के लिए प्रतिबद्ध
1687 से श्री गुरु राम राय जी के बाद सजदा नशीन श्री महंतों को गद्दी पर बैठाया गया। इस गद्दी पर बैठने वाला महंत ज्ञानी, आरोही, भक्ति के रमा हुआ, मानवता की सेवा के लिए प्रतिबद्ध होता है। इस गद्दी पर बैठने वाले व्यक्ति द्वारा ही दरबार साहिब की पूरी देख रेख की जाती है। दरबार सहिब का पूरा प्रबंधन भी इसी व्यक्ति के पास होता है।
वर्तमान में इस गद्दी पर श्री महंत देवेंद्र दास जी विराजमान हैं। राजधानी में दरबार साहिब द्वारा संचालित श्री गुरु राम राय स्कूल, कॉलेज, मेडिकल कॉलेज और संबद्ध श्री महंत इंद्रेश अस्पताल और आम आदमी की सेवा करने में सफल चल रहे हैं।