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Pakistan: 1971 युद्ध में भारत से हार थी बड़ी सैन्य विफलता, बिलावट भुट्टो ने जनरल बाजवा के बयान पर किया पलटवार

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, इस्लामाबाद Published by: शिव शरण शुक्ला Updated Thu, 01 Dec 2022 04:43 PM IST
सार

बिलावल भुट्टो जरदारी ने अपने नाना जुल्फिकार अली भुट्टो के बारे में बताते हुए कहा कि उन्होंने कठिन समय में राष्ट्र का पुनर्निर्माण किया और लोगों के विश्वास को बहाल किया। इतना ही नहीं, अपने कड़े प्रयासों के बाद आखिरकार 90,000 सैनिकों को वापस पाकिस्तान ले आए, जिन्हें सैन्य विफलता के कारण युद्धबंदी बना दिया गया था।

पूर्व सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा और बिलावल भुट्टो
पूर्व सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा और बिलावल भुट्टो - फोटो : facebook

विस्तार

साल 1971 में भारत के साथ युद्द में हार और पूर्वी पाकिस्तान का बांग्लादेश के रूप में गठन राजनीतिक नहीं सैन्य विफलता थी। पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने यह टिप्पणी की। वे अपनी पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के 55वें स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित निश्तर पार्क रैली को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि 1971 में पूर्वी पाकिस्तान की हार एक बड़ी सैन्य विफलता थी। गौरतलब है कि उनकी ये टिप्पणी पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के उस बयान पर पलटवार के रूप में आई है जब उन्होंने अपने रिटायरमेंट से एक दिन पहले कहा था कि 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की हार राजनीतिक विफलता का परिणाम थी।  



बिलावल भुट्टो जरदारी ने किया पलटवार
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के 55वें स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित निश्तर पार्क रैली को संबोधित करते हुए पीपीपी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी ने अपनी पार्टी के इतिहास के बारे में चर्चा की। साथ ही उन्होंने पार्टी के संस्थापक और अपने नाना जुल्फिकार अली भुट्टो की उपलब्धियों को भी याद किया। रिपोर्ट्स में उनके हवाले से दावा किया गया है कि जब जुल्फिकार अली भुट्टो ने सरकार संभाली, तो लोग टूट गए थे और सारी उम्मीदें खो दी थीं।


बिलावल भुट्टो जरदारी ने अपने नाना के बारे में बताते हुए कहा कि उन्होंने कठिन समय में राष्ट्र का पुनर्निर्माण किया और लोगों के विश्वास को बहाल किया। इतना ही नहीं, अपने कड़े प्रयासों के बाद आखिरकार 90,000 सैनिकों को वापस पाकिस्तान ले आए, जिन्हें सैन्य विफलता के कारण युद्धबंदी बना दिया गया था। ये केवल उम्मीद, एकता और समावेश की राजनीति के कारण संभव हो सका। गौरतलब है कि 1971 में पाकिस्तान के हारने के बाद पाकिस्तान के 90 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था। उन्हें युद्ध बंदी बनाया गया था। 

 जनरल बाजवा ने करार दिया था राजनीतिक विफलता
गौरतलब है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री की ये प्रतिक्रिया जनरल बाजवा के बयान पर आई है। 29 नवंबर को अपनी सेवानिवृत्ति से पहले जनरल बाजवा ने पूर्वी पाकिस्तान की हार को राजनीतिक विफलता करार दिया था। साथ ही ये शिकायत भी की थी कि सैनिकों के बलिदान को कभी ठीक से स्वीकार नहीं किया गया। बीते सप्ताह रावलपिंडी में जनरल हेडक्वार्टर में एक रक्षा और शहीद समारोह को संबोधित करते हुए बाजवा ने कहा था कि 'मैं रिकॉर्ड को सही करना चाहता हूं। सबसे पहले, पूर्वी पाकिस्तान का पतन एक सैन्य नहीं बल्कि एक राजनीतिक विफलता थी। आत्मसमर्पण करने वाले सैनिकों की संख्या 92,000 नहीं थी, बल्कि वे केवल 34,000 था, बाकी विभिन्न सरकारी विभागों से थे।'

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