केदारघाटी के पर्यटन पर शोधकार्य कर रहे गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण और विकास संस्थान वर्ष 2008 से लगातार रुद्रप्रयाग जिले के अधिकारियों और अन्य जन प्रतिनिधियों को होने वाले खतरे सचेत कर रहा था।
गोष्ठियों और सेमीनार के माध्यम से भी केदार घाटी में नदी किनारे बन रहे होटलों और पर्यटन आवासों, हवाई यात्रा के दुष्परिणाम, घोड़े और खच्चरों की लीद से पर्यावरण को हो रहे नुकसान पर चिंता जताई थी। इससे निपटने के लिए सुझाव भी प्रस्तुत किए गए थे फिर भी सुरक्षा के कोई उपाय नहीं किए गए।
समय रहते उठाते कदम, तो बचते हजारों लोग
केदार घाटी में आठ वर्षों से वृहद स्तर पर शोध कार्य कर रहे श्रीनगर स्थित गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण एवं विकास संस्थान ने अधिकारियों और गोष्ठियों के माध्यम से केदारघाटी के पर्यटन स्वरूप में तब्दीली की जरूरत बताई थी।
उन्होंने बैठक कर इसमें सीडीओ, विधायकों, डीएम को भी आमंत्रित किया था और केदारघाटी के पर्यटन के स्वरूप में बदलाव पर चर्चाएं भी की थी।
केदारनाथ में हो रहे खतरे के बारे में भी बताया था। उन्होंने इन खतरों से बचने को कई सुझाव भी दिए थे लेकिन अधिकारियों ने उन्हें बैठक में सुना और भूल गए। इस संबंध में कोई कार्रवाई आगे नहीं की गई।
ये रहे थे बैठक में शामिल
जिलाधिकारी दिलीप जावलकर, नीरज खैरवाल, सीडीओ डीएस कुटियाल, नरेंद्र सिंह रावत, जिला पंचायत अध्यक्ष चंडी प्रसाद भट्ट, विधायक आशा नौटियाल समेत तत्कालीन डीएफओ, जिला पर्यटन अधिकारी और कई जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत सदस्य गोष्ठियों में शामिल हुए।
हवाई उड़ानों से 9.83 लाख किग्रा कार्बनडाई ऑक्साइड उत्सर्जित
वर्ष 2010 से 2012 के दौरान हवाई उड़ानों से उत्सर्जित कार्बन डाई ऑक्साइड पर संस्थान ने शोध कार्य किया। तीन वर्षों के अंतराल में ही हवाई उड़ानों से 9.83 लाख किग्रा कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन पाया गया, जिससे केदार क्षेत्र की पारिस्थितिकी में बदलाव के साथ ही जैव विविधता तथा स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव भी पाया गया।
ये बताए थे खतरे
- गुप्तकाशी, फाटा, रामपुर, सीतापुर, सोनप्रयाग, रामबाड़ा और केदारनाथ में प्रतिदिन 9 से 10 हजार यात्रियों की क्षमता, लेकिन रुकते हैँ 16 से 18 हजार यात्री।
- वनों के अंधाधुंध कटान से प्रतिवर्ष करीब 7 करोड़ का हो रहा नुकसान।
- एक दिन में 60-60 हेलीकॉप्टरों के चक्कर हो रहे हैं घातक।
ये दिए गए थे सुझाव
- केदारनाथ धाम में प्रतिदिन दस हजार ही यात्री रुकें।
- हवाई यात्रा पर नियंत्रण रहे।
- ईको ट्रैक रूटों को स्थापित कर अन्य पर्यटन स्थलों के प्रति पर्यटकों में रुझान पैदा किया जाए।
- निगम की ओर से जलाऊ लकड़ी की व्यवस्था करना ताकि जंगलों का अवैध कटान रुक सके।
क्या कहतें हैं जानकार
'केदारनाथ क्षेत्र में हुए सेमीनारों और गोष्ठियों को इसलिए कराया गया था कि अधिकारियों, जन प्रतिनिधियों तथा आम जनता तक हमारी ओर से किए जा रहे कार्यों को पहुंचाया जा सके। यदि हमारी रिपोर्टों तथा सुझावों पर अमल होता, तो आज आपदा में हुए नुकसान का आंकड़ा कम होता।'
डा. आरके मैखुरी, वैज्ञानिक प्रभारी गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण और विकास संस्थान श्रीनगर।
'जब मैं रुद्रप्रयाग में डीएम था, तो त्रिजुगीनारायण गांव में हुए सेमीनार में शामिल हुआ था, जिसमें पर्यावरण और आपदा का खतरा विषय पर चर्चा हुई थी। मैं सेमीनार में हुए वार्तालाप पर कुछ करता, इससे पहले ही मेरा स्थानांतरण हो गया था।'
दिलीप जावलकर, जिलाधिकारी रुद्रप्रयाग।