लक्ष्मणझूला,रामझूला में आने वाले पर्यटकों और यात्रियों को ‘स्माइल प्लीज’ बोलकर उनकी तस्वीरें खिंचने वाले फोटोग्राफरों के चेहरे मुरझाए हुए हैं। केदारघाटी की दैवी आपदा के बाद क्षेत्र में पड़े सैलानियों के अकाल ने उनके व्यवसाय को चौपट कर दिया है।
1988 से स्वर्गाश्रम क्षेत्र में फोटोग्राफी व्यवसाय से जुड़े प्रोफेशनल फोटोग्राफरों के सामने रोजी रोटी का संकट गहराने लगा है। रामझूला और लक्ष्मणझूला में कैमरे गले में टांगकर लगभग 20 दिनों से यात्रियों की बाट जोह रहे छायाकारों के पास अब फोटो खिंचवाने कोई नहीं आ रहा है। क्षेत्र में पर्यटकों और यात्रियों का आवागमन बंद होने से उनके सामने आर्थिक संकट पैदा हो गया है।
कैमरा उतार हल पकड़ना मजबूरीयहां कार्य करने वाले यमकेश्वर ब्लाक के ग्रामीण क्षेत्रों के कई छायाकारों का कहना है यही हाल रहा, तो वह मजबूरी में गले से कैमरे उतारकर हाथों में हल पकड़ लेंगे।
बताया कि उन्होंने पर्यटकों के पलायन से पैदा हुई आर्थिक तंगी से इस हाल में रहने की बजाए गांव में जाकर पुस्तैनी खेती करने का निर्णय लिया है। स्थिति सामान्य होते ही फिर से लक्ष्मणझूला, रामझूला पहुंचकर इस कार्य में जुटेंगे।
समझिए छायाकार का दर्द फोटोग्राफर हर्षमणी सेमवाल, धर्मपाल नेगी, विक्रम सिंह रावत, सोहन लाल कंडवाल, मनोहर लाल थपलियाल ने बताया कि उनकी रोजी रोटी ही पर्यटकों से चलती है। पहले वे प्रतिदिन लगभग पांच सौ रुपया कमा लेते थे, मगर जब से केदारनाथ में तबाही मची है, लोग स्वर्गाश्रम आने से कतराने लगे हैं।
खबरों पर अपनी राय देने के लिए क्लिक करेंवे कई वर्षों से इस क्षेत्र में कार्यरत हैं मगर, ऐसा सन्नाटा पहले कभी नहीं देखा। सुनसान पड़े रामझूला, लक्ष्मणझूला पुलों पर अब फोटो खिंचने वाले तो हैं मगर खिंचवाने वाला कोई नहीं। जिसके कारण उनके सामने जीवनयापन करना मुश्किल हो गया है।
लक्ष्मणझूला,रामझूला में आने वाले पर्यटकों और यात्रियों को ‘स्माइल प्लीज’ बोलकर उनकी तस्वीरें खिंचने वाले फोटोग्राफरों के चेहरे मुरझाए हुए हैं। केदारघाटी की दैवी आपदा के बाद क्षेत्र में पड़े सैलानियों के अकाल ने उनके व्यवसाय को चौपट कर दिया है।
1988 से स्वर्गाश्रम क्षेत्र में फोटोग्राफी व्यवसाय से जुड़े प्रोफेशनल फोटोग्राफरों के सामने रोजी रोटी का संकट गहराने लगा है। रामझूला और लक्ष्मणझूला में कैमरे गले में टांगकर लगभग 20 दिनों से यात्रियों की बाट जोह रहे छायाकारों के पास अब फोटो खिंचवाने कोई नहीं आ रहा है। क्षेत्र में पर्यटकों और यात्रियों का आवागमन बंद होने से उनके सामने आर्थिक संकट पैदा हो गया है।
कैमरा उतार हल पकड़ना मजबूरी
यहां कार्य करने वाले यमकेश्वर ब्लाक के ग्रामीण क्षेत्रों के कई छायाकारों का कहना है यही हाल रहा, तो वह मजबूरी में गले से कैमरे उतारकर हाथों में हल पकड़ लेंगे।
बताया कि उन्होंने पर्यटकों के पलायन से पैदा हुई आर्थिक तंगी से इस हाल में रहने की बजाए गांव में जाकर पुस्तैनी खेती करने का निर्णय लिया है। स्थिति सामान्य होते ही फिर से लक्ष्मणझूला, रामझूला पहुंचकर इस कार्य में जुटेंगे।
समझिए छायाकार का दर्द
फोटोग्राफर हर्षमणी सेमवाल, धर्मपाल नेगी, विक्रम सिंह रावत, सोहन लाल कंडवाल, मनोहर लाल थपलियाल ने बताया कि उनकी रोजी रोटी ही पर्यटकों से चलती है। पहले वे प्रतिदिन लगभग पांच सौ रुपया कमा लेते थे, मगर जब से केदारनाथ में तबाही मची है, लोग स्वर्गाश्रम आने से कतराने लगे हैं।
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वे कई वर्षों से इस क्षेत्र में कार्यरत हैं मगर, ऐसा सन्नाटा पहले कभी नहीं देखा। सुनसान पड़े रामझूला, लक्ष्मणझूला पुलों पर अब फोटो खिंचने वाले तो हैं मगर खिंचवाने वाला कोई नहीं। जिसके कारण उनके सामने जीवनयापन करना मुश्किल हो गया है।