उत्तर प्रदेश जिला अस्पताल बहराइच में रविवार को कई घंटे तड़पने के बाद भर्ती किए गए इकौना के पूर्व विधायक भगौती प्रसाद का मंगलवार को निधन हो गया। वह सांस और पेट की बीमारियों से पीड़ित थे।
मुफलिसी में जीवनयापन करने वाले पूर्व विधायक के बेटों के पास उनके कफन तक के लिए भी पैसे नहीं हैं। आज की चकाचौंध सियासत की तस्वीर के आगे भगौती प्रसाद की वैचारिक राजनीति की दास्तां बेहद मार्मिक रही।
70 के दशक में दो बार विधायक रहने के बाद भी उन्हें 10 साल तक चाय और चने बेचकर पेट की आग बुझानी पड़ी।
1967 और 1969 में दो बार जनसंघ के टिकट पर इकौना के विधायक रहे भगौती प्रसाद को रविवार को जिला अस्पताल बहराइच लाया गया था। पहले तो अस्पताल प्रशासन ने उन्हें डेढ़ घंटे तक भर्ती नहीं किया और वह फर्श पर ही तड़पते रहे।
मीडिया में जब बात आई तो डॉक्टरों ने उन्हें भर्ती तो किया लेकिन इलाज में हीलाहवाली जारी रखी। सोमवार को पूर्व विधायक को छह घंटे तक खून के लिए तरसना पड़ा।
घंटों पीड़ा से गुजरने के बाद उन्हें एक यूनिट ब्लड मिला और इलाज शुरू हुआ। लगातार मीडिया में खबरें आने पर अस्पताल प्रशासन सजग हुआ। मंगलवार को उनका ऑपरेशन किया जाना था लेकिन सुबह चार बजे अचानक सांस की समस्या गंभीर हो गई।
डॉक्टरों ने ऑक्सीजन चढ़ाकर उन्हें बचाने की कोशिश की लेकिन दोपहर 12:30 बजे पूर्व विधायक ने दम तोड़ दिया। पूर्व विधायक के बड़े बेटे राधेश्याम का कहना है कि उनके पिता गांधीवादी विचारधारा के थे।
ईमानदारी से पूरा जीवन जिया। 1990 से परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि पिता को चने और चाय बेचकर गुजारा करना पड़ा। बेटों का कहना है कि उनके पास इतने रुपये भी नहीं कि पिता के कफन का इंतजाम कर सकें।
उत्तर प्रदेश जिला अस्पताल बहराइच में रविवार को कई घंटे तड़पने के बाद भर्ती किए गए इकौना के पूर्व विधायक भगौती प्रसाद का मंगलवार को निधन हो गया। वह सांस और पेट की बीमारियों से पीड़ित थे।
मुफलिसी में जीवनयापन करने वाले पूर्व विधायक के बेटों के पास उनके कफन तक के लिए भी पैसे नहीं हैं। आज की चकाचौंध सियासत की तस्वीर के आगे भगौती प्रसाद की वैचारिक राजनीति की दास्तां बेहद मार्मिक रही।
70 के दशक में दो बार विधायक रहने के बाद भी उन्हें 10 साल तक चाय और चने बेचकर पेट की आग बुझानी पड़ी।
1967 और 1969 में दो बार जनसंघ के टिकट पर इकौना के विधायक रहे भगौती प्रसाद को रविवार को जिला अस्पताल बहराइच लाया गया था। पहले तो अस्पताल प्रशासन ने उन्हें डेढ़ घंटे तक भर्ती नहीं किया और वह फर्श पर ही तड़पते रहे।
मीडिया में जब बात आई तो डॉक्टरों ने उन्हें भर्ती तो किया लेकिन इलाज में हीलाहवाली जारी रखी। सोमवार को पूर्व विधायक को छह घंटे तक खून के लिए तरसना पड़ा।
घंटों पीड़ा से गुजरने के बाद उन्हें एक यूनिट ब्लड मिला और इलाज शुरू हुआ। लगातार मीडिया में खबरें आने पर अस्पताल प्रशासन सजग हुआ। मंगलवार को उनका ऑपरेशन किया जाना था लेकिन सुबह चार बजे अचानक सांस की समस्या गंभीर हो गई।
डॉक्टरों ने ऑक्सीजन चढ़ाकर उन्हें बचाने की कोशिश की लेकिन दोपहर 12:30 बजे पूर्व विधायक ने दम तोड़ दिया। पूर्व विधायक के बड़े बेटे राधेश्याम का कहना है कि उनके पिता गांधीवादी विचारधारा के थे।
ईमानदारी से पूरा जीवन जिया। 1990 से परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि पिता को चने और चाय बेचकर गुजारा करना पड़ा। बेटों का कहना है कि उनके पास इतने रुपये भी नहीं कि पिता के कफन का इंतजाम कर सकें।