लखनऊ । ‘क्लीन लखनऊ ’ का सपना महापौर के दूसरे कार्यकाल में भी फिलहाल हकीकत से कोसों दूर है। न तो कर्मचारियों की कमी दूर हो सकी, न ही हदबंदी लागू की जा सकी। शहर को कचरे से निजात दिलाने के लिए कूड़ा निस्तारण प्लांट की समय सीमा पूरी हो गई लेकिन संयंत्र नहीं शुरू हो सका। वहीं दूसरी ओर कार्यदायी संस्थाओं की मनमानी शहरवासियों पर भारी पड़ रही है वो अलग। शहर के कुछ पॉश इलाकों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर इलाकों में सफाई व्यवस्था बदहाल है। नगर निगम सीमा से सटे वार्डों और नवविकसित हो रही कॉलोनियों की हालत और भी बदतर है। इनमें गोमती नगर विस्तार जैसी प्रमुख कॉलोनी भी शामिल है। सफाई व्यवस्था की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां पर नगर निगम का कोई स्थाई सफाई कर्मचारी तक तैनात नहीं है। यहां की पूरी सफाई व्यवस्था नगर निगम ने कार्यदायी संस्थाओं के भरोसे छोड़ रखी है।
सफाई कर्मचारियाें की कमी जस की तस बनी हुई है। दस हजार कर्मचारियों के मुकाबले सिर्फ आधे कर्मचारी ही हैं। जोन पांच में कुछ वार्डों को छोड़ ज्यादातर में सफाई कर्मियों का टोटा है। यहां पर करीब आधा दर्जन वार्डों में सफाई व्यवस्था कार्यदायी संस्थाओं के भरोसे है। वहीं जोन-छह, जोन तीन व जोन दो के तमाम वार्डों के बहुत से मोहल्ले ऐसे हैं, जहां पर किसी कार्यदायी संस्था के कर्मचारी तक तैनात नही हैं। इन क्षेत्रों में तभी साफ-सफाई कराई जाती है जब कोई अभियान चलता है या संक्रामक बीमारी फैलती है। वैसे कागज पर तो नगर निगम के सभी 110 वार्डों में सफाई कर्मचारी तैनात हैं मगर ज्यादातर में मानक के अनुरूप नहीं है। हजरतगंज के आसपास वाले वार्डों में सफाई कर्मचारियों की तादाद मानक के हिसाब से 60-70 प्रतिशत है, लेकिन अधिकांश वार्डों में यह 20 से 30 प्रतिशत ही है। मानक हिसाब से प्रति 10 हजार की आबादी पर 28 सफाई कर्मचारी तैनात किए जाने चाहिए।
घर बैठे वेतन ले रहे सफाई कर्मचारी
यह सच है कि आबादी के हिसाब से नगर निगम में सफाई कर्मचारी नहीं है, मगर यह भी सच है कि जितने कर्मचारी नगर निगम में हैं उनमें से करीब 25 से 30 प्रतिशत काम ही नहीं करते हैं। उनमें ज्यादातर नेता, उनके परिवार व समर्थक शामिल है। इनमें तमाम ऐसे हैं ,जिन्होंने कभी झाड़ू पकड़ी ही नहीं लेकिन हर महीना वेतन ले रहे हैं। यही हाल इनके परिवार की महिलाआें का है। कहने को तो इनक ी नियुक्ति सफाई कर्मचारी केपद पर हैं मगर नेताओं ने उनको दूसरे विभागों व मुख्यालय में अटैच करा रखा है। हैरानी की बात तो यह है कि यह सच नगर निगम प्रशासन भी जानता है, मगर इनसे काम लेने की हिम्मत कभी नहीं दिखाई। कर्मचारी पद के अनुरूप काम करेंगे यह आदेश नगर निगम में हर नगर आयुक्त जारी करता है लेकिन उसका असर नहीं हो रहा है। वहीं करीब 10 से 15 प्रतिशत सफाई कर्मचारी ऐसे हैं जो ‘बैठकी’ (काम न करने केएवज में सुपरवाइजर को हर माह पैसा देते हैं) देते हैं और मजे से घर बैठे वेतन लेते हैं।
हदबंदी से सुधर सकते हैं हालात
सफाई व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए हदबंदी व्यवस्था का लागू होना आवश्यक है लेकिन सफाई कर्मचारी नेताओं के विरोध को देखते हुए यह कागज पर ही है। नगर निगम के अधिकारी मानते हैं कि यदि हदबंदी ठीक से लागू हो जाए तो शहर की सफाई व्यवस्था काफी हद तक सुधर जाएगी। जब हर कर्मचारी की हद तय होगी कि उसे उसकी सफाई करनी है, तो फिर फिर उसकी बहानेबाजी नहीं चल पाएगी। उसकी हद में गंदगी होगी तो उसकी जवाबदेही तय होगी।
माल काट रहीं कार्यदायी संस्थाएं
कर्मचारियों की कमी के कारण नगर निगम ठेके पर सफाई के नाम पर हर माह लाखेां रुपए खर्च करता है लेकिन उसका लाभ शहरवासियाें को नहीं मिल रहा है। ठेके पर सफाई सिर्फ कमीशनखोरी का जरिया बनकर रह गई । कर्मचारी अधिकारी से लेकर पार्षद तक इसमें शामिल रहते हैं। स्थिति यह है कि पांच कर्मचारियों को तैनात कर कार्यदायी संस्थाएं पच्चीस का भुगतान लेती हैं। ऐसे शिकायतें कई बार नगर निगम के अधिकारियों ने अपने निरीक्षण में तमाम बार पकड़ीं मगर उसके बाद भी उन पर शिकंजा नहीं कसा जा सका। कई बार निगम प्रशासन ने इन कार्यदायी संस्थाओं का अनुबंध समाप्त करने के लिए शासन को लिखा लेकिन हुआ कुछ नहीं। ठेेके व संविदा सफाई पर निगम हर महीना करीब 80 लाख रुपए खर्च करता है।
शुरू नहीं हो पाया कचरा निस्तारण प्लांट
शहर को कचरे से निजात मिले और खुले में कचरा न डाला जाए, इसके लिए जेएनएनयूआरएम में कचरा प्रबंधन योजना 2007 में मंजूर हुई थी लेकिन पूरी अब तक नही हो पाई। योजना के तहत मोहान रोड पर शिवरी गांव में कचरा निस्तारण प्लांट बनाया गया है लेकिन काम पूरा न होने यह महज दिखावा भर है। प्लांट जल्द शुरू होगा, ऐसे दावे पिछले करीब डेढ़ साल से किए जा रहे हैं लेकिन प्लांट शुरू नहीं हो पाया। कई बार बढ़ाए जाने के बाद बीती 30 जून को प्लांट का काम पूरा होने की समय सीमा भी पूरी हो गई फिर भी प्लांट कब शरू होगा यह पता नहीं।
ट्रांसफर स्टेशन भी नहीं बन सके
शहर से निकलने वाले कचरे को प्लांट तक ले जाने से पहले उसे शहर में अलग चार स्थानों पर एकत्र करने के लिए ट्रांसफर स्टेशन बनाए जाने थे जो अब तक नहीं बन पाए हैं। जिन स्थानों पर यह बनाए जाने हैं, उनमें गोमती नगर में ग्वारी पाम्पिंग स्टेशन के पास, सीतापुर रोड सब्जी मंडी के पीछे, हरदोई रोड बाई पास पर रिलायंस कार्यालय के निकट व बिजनौर गांव में रेलवे लाइन के पास।
संसाधनों की स्थिति
सफाई कर्मचारियों की आवश्यकता-10000
उपलब्ध कर्मचारी-5000
सफाई व्यवस्था पर सालान खर्च-25 करोड़
कचरा निस्तारण पर सालाना खर्च-22 करोड़
डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन वाले वार्ड-57
निजी संस्थाओं को दिए गए वार्ड-13
लखनऊ । ‘क्लीन लखनऊ ’ का सपना महापौर के दूसरे कार्यकाल में भी फिलहाल हकीकत से कोसों दूर है। न तो कर्मचारियों की कमी दूर हो सकी, न ही हदबंदी लागू की जा सकी। शहर को कचरे से निजात दिलाने के लिए कूड़ा निस्तारण प्लांट की समय सीमा पूरी हो गई लेकिन संयंत्र नहीं शुरू हो सका। वहीं दूसरी ओर कार्यदायी संस्थाओं की मनमानी शहरवासियों पर भारी पड़ रही है वो अलग। शहर के कुछ पॉश इलाकों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर इलाकों में सफाई व्यवस्था बदहाल है। नगर निगम सीमा से सटे वार्डों और नवविकसित हो रही कॉलोनियों की हालत और भी बदतर है। इनमें गोमती नगर विस्तार जैसी प्रमुख कॉलोनी भी शामिल है। सफाई व्यवस्था की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां पर नगर निगम का कोई स्थाई सफाई कर्मचारी तक तैनात नहीं है। यहां की पूरी सफाई व्यवस्था नगर निगम ने कार्यदायी संस्थाओं के भरोसे छोड़ रखी है।
सफाई कर्मचारियाें की कमी जस की तस बनी हुई है। दस हजार कर्मचारियों के मुकाबले सिर्फ आधे कर्मचारी ही हैं। जोन पांच में कुछ वार्डों को छोड़ ज्यादातर में सफाई कर्मियों का टोटा है। यहां पर करीब आधा दर्जन वार्डों में सफाई व्यवस्था कार्यदायी संस्थाओं के भरोसे है। वहीं जोन-छह, जोन तीन व जोन दो के तमाम वार्डों के बहुत से मोहल्ले ऐसे हैं, जहां पर किसी कार्यदायी संस्था के कर्मचारी तक तैनात नही हैं। इन क्षेत्रों में तभी साफ-सफाई कराई जाती है जब कोई अभियान चलता है या संक्रामक बीमारी फैलती है। वैसे कागज पर तो नगर निगम के सभी 110 वार्डों में सफाई कर्मचारी तैनात हैं मगर ज्यादातर में मानक के अनुरूप नहीं है। हजरतगंज के आसपास वाले वार्डों में सफाई कर्मचारियों की तादाद मानक के हिसाब से 60-70 प्रतिशत है, लेकिन अधिकांश वार्डों में यह 20 से 30 प्रतिशत ही है। मानक हिसाब से प्रति 10 हजार की आबादी पर 28 सफाई कर्मचारी तैनात किए जाने चाहिए।
घर बैठे वेतन ले रहे सफाई कर्मचारी
यह सच है कि आबादी के हिसाब से नगर निगम में सफाई कर्मचारी नहीं है, मगर यह भी सच है कि जितने कर्मचारी नगर निगम में हैं उनमें से करीब 25 से 30 प्रतिशत काम ही नहीं करते हैं। उनमें ज्यादातर नेता, उनके परिवार व समर्थक शामिल है। इनमें तमाम ऐसे हैं ,जिन्होंने कभी झाड़ू पकड़ी ही नहीं लेकिन हर महीना वेतन ले रहे हैं। यही हाल इनके परिवार की महिलाआें का है। कहने को तो इनक ी नियुक्ति सफाई कर्मचारी केपद पर हैं मगर नेताओं ने उनको दूसरे विभागों व मुख्यालय में अटैच करा रखा है। हैरानी की बात तो यह है कि यह सच नगर निगम प्रशासन भी जानता है, मगर इनसे काम लेने की हिम्मत कभी नहीं दिखाई। कर्मचारी पद के अनुरूप काम करेंगे यह आदेश नगर निगम में हर नगर आयुक्त जारी करता है लेकिन उसका असर नहीं हो रहा है। वहीं करीब 10 से 15 प्रतिशत सफाई कर्मचारी ऐसे हैं जो ‘बैठकी’ (काम न करने केएवज में सुपरवाइजर को हर माह पैसा देते हैं) देते हैं और मजे से घर बैठे वेतन लेते हैं।
हदबंदी से सुधर सकते हैं हालात
सफाई व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए हदबंदी व्यवस्था का लागू होना आवश्यक है लेकिन सफाई कर्मचारी नेताओं के विरोध को देखते हुए यह कागज पर ही है। नगर निगम के अधिकारी मानते हैं कि यदि हदबंदी ठीक से लागू हो जाए तो शहर की सफाई व्यवस्था काफी हद तक सुधर जाएगी। जब हर कर्मचारी की हद तय होगी कि उसे उसकी सफाई करनी है, तो फिर फिर उसकी बहानेबाजी नहीं चल पाएगी। उसकी हद में गंदगी होगी तो उसकी जवाबदेही तय होगी।
माल काट रहीं कार्यदायी संस्थाएं
कर्मचारियों की कमी के कारण नगर निगम ठेके पर सफाई के नाम पर हर माह लाखेां रुपए खर्च करता है लेकिन उसका लाभ शहरवासियाें को नहीं मिल रहा है। ठेके पर सफाई सिर्फ कमीशनखोरी का जरिया बनकर रह गई । कर्मचारी अधिकारी से लेकर पार्षद तक इसमें शामिल रहते हैं। स्थिति यह है कि पांच कर्मचारियों को तैनात कर कार्यदायी संस्थाएं पच्चीस का भुगतान लेती हैं। ऐसे शिकायतें कई बार नगर निगम के अधिकारियों ने अपने निरीक्षण में तमाम बार पकड़ीं मगर उसके बाद भी उन पर शिकंजा नहीं कसा जा सका। कई बार निगम प्रशासन ने इन कार्यदायी संस्थाओं का अनुबंध समाप्त करने के लिए शासन को लिखा लेकिन हुआ कुछ नहीं। ठेेके व संविदा सफाई पर निगम हर महीना करीब 80 लाख रुपए खर्च करता है।
शुरू नहीं हो पाया कचरा निस्तारण प्लांट
शहर को कचरे से निजात मिले और खुले में कचरा न डाला जाए, इसके लिए जेएनएनयूआरएम में कचरा प्रबंधन योजना 2007 में मंजूर हुई थी लेकिन पूरी अब तक नही हो पाई। योजना के तहत मोहान रोड पर शिवरी गांव में कचरा निस्तारण प्लांट बनाया गया है लेकिन काम पूरा न होने यह महज दिखावा भर है। प्लांट जल्द शुरू होगा, ऐसे दावे पिछले करीब डेढ़ साल से किए जा रहे हैं लेकिन प्लांट शुरू नहीं हो पाया। कई बार बढ़ाए जाने के बाद बीती 30 जून को प्लांट का काम पूरा होने की समय सीमा भी पूरी हो गई फिर भी प्लांट कब शरू होगा यह पता नहीं।
ट्रांसफर स्टेशन भी नहीं बन सके
शहर से निकलने वाले कचरे को प्लांट तक ले जाने से पहले उसे शहर में अलग चार स्थानों पर एकत्र करने के लिए ट्रांसफर स्टेशन बनाए जाने थे जो अब तक नहीं बन पाए हैं। जिन स्थानों पर यह बनाए जाने हैं, उनमें गोमती नगर में ग्वारी पाम्पिंग स्टेशन के पास, सीतापुर रोड सब्जी मंडी के पीछे, हरदोई रोड बाई पास पर रिलायंस कार्यालय के निकट व बिजनौर गांव में रेलवे लाइन के पास।
संसाधनों की स्थिति
सफाई कर्मचारियों की आवश्यकता-10000
उपलब्ध कर्मचारी-5000
सफाई व्यवस्था पर सालान खर्च-25 करोड़
कचरा निस्तारण पर सालाना खर्च-22 करोड़
डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन वाले वार्ड-57
निजी संस्थाओं को दिए गए वार्ड-13