लखनऊ। प्लास्टिक मनी जितनी सहूलियत भरी है, उतनी ही जटिल किस्म की ठगी की आशंकाएं भी इसके साथ हैं। लखनऊ में हाल के महीनों में हुई ठगी की घटनाओं ने यही साबित किया है।अपराध होने के बाद रिकवरी की संभावना बहुत कम रह जाती हैं। साइबर एक्सपर्ट्स और साइबर पुलिस का मानना है कि सुरक्षा संबंधी एहतियातों का पालन कर ही ऐसी ठगी से बचा जा सकता है।
नादानी बनाती है शिकार ः इन मामलों में साइबर एक्सपर्ट्स लोगों की गलती से ज्यादा नादानी मानते हैं। वजह है उन साधनों तक हमारी पहुंच हो गई है जिनकी हमें ज्यादा जानकारी नहीं है। बिना इनकी जानकारी के ऑनलाइन ट्रांजेक्शन वैसा ही है जैसा हमें यह नहीं पता कि रुपया जिसे दे रहे हैं वह सामने है भी या नहीं। इन हालात में साइबर क्राइम एक्सपर्ट सुमित सिंह बडे़ स्तर पर साइबर साक्षरता को जरूरी बताते हैं। उनके अनुसार अधिकतर लोग बैंकों और रिजर्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी होने वाली एडवायजरी को भी फॉलो नहीं करते, जिससे खतरे बढ़ रहे हैं। एक औसत इंटरनेट यूजर को साइबर सुरक्षा उपकरणों, एंटी वायरस और फायरवॉल सुरक्षा मानकों का महत्व बताने की जरूरत है। दूसरी ओर अपनी वित्तीय निजी जानकारियों की सुरक्षा को लेकर भी लोग सचेत नहीं हैं।
ज्यादातर मामलों में पुलिस खाली हाथ ः खुद उत्तर प्रदेश पुलिस में अब तक वित्तीय साइबर क्राइम को लेकर विशेष जागरुकता नहीं रही है। 2010 तक इन मामलों को वित्तीय जालसाजियों की श्रेणी में रखा जाता था। इन्हें साइबर क्राइम के तहत लाने की प्रक्रिया 2011 से शुरू हुई। इस साल साइबर क्राइम में 23 एफआईआर हुईं इनमें 7 वित्तीय फ्रॉड के मामले थे। इस वर्ष अब तक 12 मामले आ चुके हैं। पिछले दिनों जाली चेकों से मुंबई, लखनऊ व अन्य शहरों में लाखों की रकम पार कर जाने वाले शोएब की गिरफ्तारी के अलावा पुलिस के पास गिनाने को ज्यादा मामले नहीं हैं। दूसरी तरफ लुटे-पिटे लोग आज भी लाखों रुपये वापस मिलने के इंतजार में पुलिस से उम्मीद लगाए बैठे हैं।
बरतें सावधानी
सेशन सिक्योरिटी ः आमतौर पर बैंक अपनी वेबसाइट उपयोग होने पर उपभोक्ताओं को एनक्रिप्टेड (कंप्यूटर की कूट भाषा में परिवर्तित पेज) पेज से सुरक्षा उपलब्ध करवाते हैं। लेकिन अपनी वेबसाइट पर वे जिन शॉपिंग वेबसाइटों के विज्ञापन करते फिरते हैं, वे एनक्रिप्टेड पेज मुहैया नहीं करवा रही। बैंकों को समझना होगा कि हर उपभोक्ता सॉफ्टवेयर इंजीनियर नहीं होता, जब आम लोग इन वेबसाइटों पर ट्रांजेक्शन करते हैं तो उनकी सारी जानकारियां बिना कूट भाषा में परिवर्तित हुए स्टोर होती रहती हैं। यह जानकारियां गलत हाथों में पड़ सकती हैं।
वर्चुअल की-बोर्ड ः जब भी उपभोक्ता अपने कंप्यूटर के की-बोर्ड से कुछ लिखते हैं तो हर दबता बटन इसकी जानकारी (की-लॉग) कंप्यूटर में फीड करता जाता है। यही काम जब उपभोक्ता ऑनलाइन करते हैं तो जो वेबसाइट खुली है वहां ये की-बोर्ड की जानकारियां फीड होने लगती हैं। यह साइबर ठगों के लिए खजाने का पिटारा खोलने समान है। अधिकतर बैंक ट्रांजेक्शन के दौरान वर्चुअल की बोर्ड उपलब्ध करवाते हैं ताकि की-लॉग फीड नहीं हो सके। कुछ वेबसाइटें भी यह सुरक्षा फीचर दे रही हैं, लेकिन जहां नहीं हैं, वहां वर्चुअल की बोर्ड सॉफ्टवेयर का उपयोग करते हुए सुरक्षा बरती जा सकती है।
पैड लॉक ः बैंक सावधान करते हैं कि उपभोक्ता केवल विश्वसनीय वेबसाइटों से ही शॉपिंग करें, और पेमेंट के दौरान उनका यूआरएल लिंक जांचें। इसमें अगर शुरुआती एड्रैस https:// के साथ अक्षर s नहीं है तो समझ लीजिए की आप वेबसाइट पर जो जानकारियां लिखने जा रहे हैं वे एनक्रिप्टेड नहीं है। बैंक पेड लॉक ऑन रखने को लेकर लगातार उपभोक्ताओं को चेताते रहे हैं।
पुलिस कहती है नहीं छोड़ेंगे, लेकिन पकड़ेंगे तभी तो... ः लखनऊ की साइबर क्राइम ब्रांच इन मामलों में पूरी सख्ती बरतने का दावा करती है लेकिन अकाउंट से कटी राशि की रिकवरी और अन्य सफलताएं अभी दूर हैं। ब्रांच प्रभारी एसओ दिनेश यादव ने बताया कि इन मामलों में आरोपियों की पहचान सबसे बड़ी समस्या है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ठगी की जा रही है, ऐसे में ठगों तक पहुंचना बेहद लंबी प्रक्रिया है। इंटरपोल के जरिए ही कार्रवाई करवाई जा सकती है, लेकिन इसमें कई व्यवहारिक दिक्कतें हैं। जिन देशों से ठगी की जा रही है, उनसे हमारे देश की द्विपक्षीय संधि, अंतरराष्ट्रीय संधि, संबंध, कई बातें हैं जिन पर कार्रवाई निर्भर है। और मामले इतने ज्यादा हैं कि फॉलो करना सबसे मुश्किल काम बनता जा रहा है।
लखनऊ। प्लास्टिक मनी जितनी सहूलियत भरी है, उतनी ही जटिल किस्म की ठगी की आशंकाएं भी इसके साथ हैं। लखनऊ में हाल के महीनों में हुई ठगी की घटनाओं ने यही साबित किया है।अपराध होने के बाद रिकवरी की संभावना बहुत कम रह जाती हैं। साइबर एक्सपर्ट्स और साइबर पुलिस का मानना है कि सुरक्षा संबंधी एहतियातों का पालन कर ही ऐसी ठगी से बचा जा सकता है।
नादानी बनाती है शिकार ः इन मामलों में साइबर एक्सपर्ट्स लोगों की गलती से ज्यादा नादानी मानते हैं। वजह है उन साधनों तक हमारी पहुंच हो गई है जिनकी हमें ज्यादा जानकारी नहीं है। बिना इनकी जानकारी के ऑनलाइन ट्रांजेक्शन वैसा ही है जैसा हमें यह नहीं पता कि रुपया जिसे दे रहे हैं वह सामने है भी या नहीं। इन हालात में साइबर क्राइम एक्सपर्ट सुमित सिंह बडे़ स्तर पर साइबर साक्षरता को जरूरी बताते हैं। उनके अनुसार अधिकतर लोग बैंकों और रिजर्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी होने वाली एडवायजरी को भी फॉलो नहीं करते, जिससे खतरे बढ़ रहे हैं। एक औसत इंटरनेट यूजर को साइबर सुरक्षा उपकरणों, एंटी वायरस और फायरवॉल सुरक्षा मानकों का महत्व बताने की जरूरत है। दूसरी ओर अपनी वित्तीय निजी जानकारियों की सुरक्षा को लेकर भी लोग सचेत नहीं हैं।
ज्यादातर मामलों में पुलिस खाली हाथ ः खुद उत्तर प्रदेश पुलिस में अब तक वित्तीय साइबर क्राइम को लेकर विशेष जागरुकता नहीं रही है। 2010 तक इन मामलों को वित्तीय जालसाजियों की श्रेणी में रखा जाता था। इन्हें साइबर क्राइम के तहत लाने की प्रक्रिया 2011 से शुरू हुई। इस साल साइबर क्राइम में 23 एफआईआर हुईं इनमें 7 वित्तीय फ्रॉड के मामले थे। इस वर्ष अब तक 12 मामले आ चुके हैं। पिछले दिनों जाली चेकों से मुंबई, लखनऊ व अन्य शहरों में लाखों की रकम पार कर जाने वाले शोएब की गिरफ्तारी के अलावा पुलिस के पास गिनाने को ज्यादा मामले नहीं हैं। दूसरी तरफ लुटे-पिटे लोग आज भी लाखों रुपये वापस मिलने के इंतजार में पुलिस से उम्मीद लगाए बैठे हैं।
बरतें सावधानी
सेशन सिक्योरिटी ः आमतौर पर बैंक अपनी वेबसाइट उपयोग होने पर उपभोक्ताओं को एनक्रिप्टेड (कंप्यूटर की कूट भाषा में परिवर्तित पेज) पेज से सुरक्षा उपलब्ध करवाते हैं। लेकिन अपनी वेबसाइट पर वे जिन शॉपिंग वेबसाइटों के विज्ञापन करते फिरते हैं, वे एनक्रिप्टेड पेज मुहैया नहीं करवा रही। बैंकों को समझना होगा कि हर उपभोक्ता सॉफ्टवेयर इंजीनियर नहीं होता, जब आम लोग इन वेबसाइटों पर ट्रांजेक्शन करते हैं तो उनकी सारी जानकारियां बिना कूट भाषा में परिवर्तित हुए स्टोर होती रहती हैं। यह जानकारियां गलत हाथों में पड़ सकती हैं।
वर्चुअल की-बोर्ड ः जब भी उपभोक्ता अपने कंप्यूटर के की-बोर्ड से कुछ लिखते हैं तो हर दबता बटन इसकी जानकारी (की-लॉग) कंप्यूटर में फीड करता जाता है। यही काम जब उपभोक्ता ऑनलाइन करते हैं तो जो वेबसाइट खुली है वहां ये की-बोर्ड की जानकारियां फीड होने लगती हैं। यह साइबर ठगों के लिए खजाने का पिटारा खोलने समान है। अधिकतर बैंक ट्रांजेक्शन के दौरान वर्चुअल की बोर्ड उपलब्ध करवाते हैं ताकि की-लॉग फीड नहीं हो सके। कुछ वेबसाइटें भी यह सुरक्षा फीचर दे रही हैं, लेकिन जहां नहीं हैं, वहां वर्चुअल की बोर्ड सॉफ्टवेयर का उपयोग करते हुए सुरक्षा बरती जा सकती है।
पैड लॉक ः बैंक सावधान करते हैं कि उपभोक्ता केवल विश्वसनीय वेबसाइटों से ही शॉपिंग करें, और पेमेंट के दौरान उनका यूआरएल लिंक जांचें। इसमें अगर शुरुआती एड्रैस https:// के साथ अक्षर s नहीं है तो समझ लीजिए की आप वेबसाइट पर जो जानकारियां लिखने जा रहे हैं वे एनक्रिप्टेड नहीं है। बैंक पेड लॉक ऑन रखने को लेकर लगातार उपभोक्ताओं को चेताते रहे हैं।
पुलिस कहती है नहीं छोड़ेंगे, लेकिन पकड़ेंगे तभी तो... ः लखनऊ की साइबर क्राइम ब्रांच इन मामलों में पूरी सख्ती बरतने का दावा करती है लेकिन अकाउंट से कटी राशि की रिकवरी और अन्य सफलताएं अभी दूर हैं। ब्रांच प्रभारी एसओ दिनेश यादव ने बताया कि इन मामलों में आरोपियों की पहचान सबसे बड़ी समस्या है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ठगी की जा रही है, ऐसे में ठगों तक पहुंचना बेहद लंबी प्रक्रिया है। इंटरपोल के जरिए ही कार्रवाई करवाई जा सकती है, लेकिन इसमें कई व्यवहारिक दिक्कतें हैं। जिन देशों से ठगी की जा रही है, उनसे हमारे देश की द्विपक्षीय संधि, अंतरराष्ट्रीय संधि, संबंध, कई बातें हैं जिन पर कार्रवाई निर्भर है। और मामले इतने ज्यादा हैं कि फॉलो करना सबसे मुश्किल काम बनता जा रहा है।