गणगौर व्रत 2021: शास्त्रों के अनुसार मां पार्वती ने भी अखण्ड सौभाग्य की कामना से कठोर तपस्या की थी और उसी तप के प्रताप से भगवान शिव को पाया।
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नवरात्रि के तीसरे दिन यानि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला गणगौर का त्योहार स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य प्राप्ति का पर्व है। इस साल यह पावन पर्व 15 अप्रैल को मनाया जाएगा। गणगौर दो शब्दों से मिलकर बना है,'गण' और 'गौर'। गण का तात्पर्य है शिव (ईसर) और गौर का अर्थ है पार्वती। वास्तव में गणगौर पूजन माँ पार्वती और भगवान शिव की पूजा का दिन है।
भगवान शिव को पाया-
शास्त्रों के अनुसार मां पार्वती ने भी अखण्ड सौभाग्य की कामना से कठोर तपस्या की थी और उसी तप के प्रताप से भगवान शिव को पाया। इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री जाति को सौभाग्य का वरदान दिया था। माना जाता है कि तभी से इस व्रत को करने की प्रथा आरंभ हुई। इसी से प्रभावित होकर विवाह योग्य कन्याएं सुयोग्य वर पाने के लिए पूर्ण श्रद्धा भक्ति से यह पूजन-व्रत करती हैं।वहीं सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु व मंगल कामना के लिए शिव -गौरी पूजन करती हैं।
सुहागजल से होती है पूजा
गणगौर पूजन के लिए कुंवारी कन्याएं व विवाहित स्त्रियां सुबह सुंदर वस्त्र एवं आभूषण पहन कर सिर पर लोटा लेकर बाग़-बगीचों में जाती हैं। वहीं से ताज़ा जल लोटों में भरकर उसमें हरी-हरी दूब और फूल सजाकर सिर पर रखकर गणगौर के गीत गाती हुई घर आती हैं। इसके बाद शुद्ध मिट्टी के शिव स्वरुप ईसर और पार्वती स्वरुप गौर की प्रतिमा बनाकर स्थापित करती हैं। शिव-गौरी को सुंदर वस्त्र पहनाकर सम्पूर्ण सुहाग की वस्तुएं अर्पित करके चन्दन,अक्षत, धूप,दीप,दूब व पुष्प से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। दीवार पर सोलह -सोलह बिंदियां रोली,हल्दी,मेहंदी व काजल की लगाई जाती हैं। एक थाली में चांदी का छल्ला, कौड़ी और सुपारी रखकर उसमें जल,दूध-दही,हल्दी,कुमकुम घोलकर सुहागजल तैयार किया जाता है।दोनों हाथों में दूब लेकर इस जल से पहले गणगौर को छींटे लगाकर फिर महिलाएं अपने ऊपर सुहाग के प्रतीक के तौर पर इस जल को छिड़कती हैं।अंत में मीठे गुने या चूरमे का भोग लगाकर गणगौर माता की कहानी सुनी जाती है।
पूजन करने वाली समस्त स्त्रियां बड़े चाव से गणगौर के मंगल गीत गाती हैं- भंवर म्हाने पूजण दे गणगौर.... गौर-गौर गोमती ईसर पूजे पार्वती.... खोल ये गणगौर माता.... जो बेहद सुहावने लगते हैं।गणगौर के पूजन में प्रावधान है कि जो सिन्दूर माता पार्वती को चढ़ाया जाता है,महिलाएं उसे अपनी मांग में सजाती हैं।शाम को शुभ मुहूर्त में गणगौर को पानी पिलाकर किसी पवित्र सरोवर या कुंड आदि में इनका विसर्जन किया जाता है। गणगौर महिलाओं का त्योहार माना जाता है इसलिए गणगौर पर चढ़ाया हुआ प्रसाद पुरुषों को नहीं दिया जाता है।
जयपुर में निकलती है शाही सवारी
उत्सव,आस्था और श्रद्धा की पावन नगरी जयपुर(गुलाबी नगरी) में गणगौर का त्योहार बड़े पारंपरिक ढंग और धूम-धाम से मनाया जाता है।गणगौर की सवारी(मेला) हर वर्ष जयपुर में महाराजा सवाई मानसिंह द्धितीय संग्रहालय ट्रस्ट और पर्यटन विभाग के सहयोग से शाही ठाट-बाट और धूम-धाम से निकाली जाती है जिसमें जयपुर राजपरिवार की प्रमुख भूमिका होती है।राजपरिवार की महिलाएं स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित गणगौर को चांदी की पालकी में बैठाकर पूजा-अर्चना के बाद पालकी को विदा करती हैं।यह पालकी पूरे लवाजमे और गीत-संगीत के साथ निकलती है।
गणगौर की भव्य सवारी में पारंपरिक नृत्य जैसे कच्ची घोड़ी,कालबेलिया,बहरूपिया,अलगोज़ा,गैर,चकरी आदि शामिल होते हैं।परंपरागत वेशभूषा में राजपरिवार के सदस्य,सजे-धजे हाथी,घोड़े,ऊँट पर बैठ कर चलते हैं।पीछे-पीछे पुरुषों का एक बड़ा समूह हाथ में पचरंगा लिए चलता है।इनके पीछे राजस्थानी पोशाक में कलश लिए महिलाओं का बहुत बड़ा दल होता है। गणगौर की शाही सवारी सिटी पैलेस से रवाना होकर त्रिपोलिया बाज़ार,छोटी चौपड़ और गणगौरी बाज़ार होते हुए तालकटोरा की पाल पर पहुँचती है।यहाँ गणगौर को जल पिलाया जाता है। दूसरे दिन बूढ़ी गणगौर की सवारी निकालने की परंपरा है।गुलाबी नगरी की इस भव्य सवारी को देखने के लिए पूरे विश्व से पर्यटक खिंचे चले आते हैं।
विस्तार
नवरात्रि के तीसरे दिन यानि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला गणगौर का त्योहार स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य प्राप्ति का पर्व है। इस साल यह पावन पर्व 15 अप्रैल को मनाया जाएगा। गणगौर दो शब्दों से मिलकर बना है,'गण' और 'गौर'। गण का तात्पर्य है शिव (ईसर) और गौर का अर्थ है पार्वती। वास्तव में गणगौर पूजन माँ पार्वती और भगवान शिव की पूजा का दिन है।
भगवान शिव को पाया-
शास्त्रों के अनुसार मां पार्वती ने भी अखण्ड सौभाग्य की कामना से कठोर तपस्या की थी और उसी तप के प्रताप से भगवान शिव को पाया। इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री जाति को सौभाग्य का वरदान दिया था। माना जाता है कि तभी से इस व्रत को करने की प्रथा आरंभ हुई। इसी से प्रभावित होकर विवाह योग्य कन्याएं सुयोग्य वर पाने के लिए पूर्ण श्रद्धा भक्ति से यह पूजन-व्रत करती हैं।वहीं सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु व मंगल कामना के लिए शिव -गौरी पूजन करती हैं।
सुहागजल से होती है पूजा
गणगौर पूजन के लिए कुंवारी कन्याएं व विवाहित स्त्रियां सुबह सुंदर वस्त्र एवं आभूषण पहन कर सिर पर लोटा लेकर बाग़-बगीचों में जाती हैं। वहीं से ताज़ा जल लोटों में भरकर उसमें हरी-हरी दूब और फूल सजाकर सिर पर रखकर गणगौर के गीत गाती हुई घर आती हैं। इसके बाद शुद्ध मिट्टी के शिव स्वरुप ईसर और पार्वती स्वरुप गौर की प्रतिमा बनाकर स्थापित करती हैं। शिव-गौरी को सुंदर वस्त्र पहनाकर सम्पूर्ण सुहाग की वस्तुएं अर्पित करके चन्दन,अक्षत, धूप,दीप,दूब व पुष्प से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। दीवार पर सोलह -सोलह बिंदियां रोली,हल्दी,मेहंदी व काजल की लगाई जाती हैं। एक थाली में चांदी का छल्ला, कौड़ी और सुपारी रखकर उसमें जल,दूध-दही,हल्दी,कुमकुम घोलकर सुहागजल तैयार किया जाता है।दोनों हाथों में दूब लेकर इस जल से पहले गणगौर को छींटे लगाकर फिर महिलाएं अपने ऊपर सुहाग के प्रतीक के तौर पर इस जल को छिड़कती हैं।अंत में मीठे गुने या चूरमे का भोग लगाकर गणगौर माता की कहानी सुनी जाती है।
पूजन करने वाली समस्त स्त्रियां बड़े चाव से गणगौर के मंगल गीत गाती हैं- भंवर म्हाने पूजण दे गणगौर.... गौर-गौर गोमती ईसर पूजे पार्वती.... खोल ये गणगौर माता.... जो बेहद सुहावने लगते हैं।गणगौर के पूजन में प्रावधान है कि जो सिन्दूर माता पार्वती को चढ़ाया जाता है,महिलाएं उसे अपनी मांग में सजाती हैं।शाम को शुभ मुहूर्त में गणगौर को पानी पिलाकर किसी पवित्र सरोवर या कुंड आदि में इनका विसर्जन किया जाता है। गणगौर महिलाओं का त्योहार माना जाता है इसलिए गणगौर पर चढ़ाया हुआ प्रसाद पुरुषों को नहीं दिया जाता है।
जयपुर में निकलती है शाही सवारी
उत्सव,आस्था और श्रद्धा की पावन नगरी जयपुर(गुलाबी नगरी) में गणगौर का त्योहार बड़े पारंपरिक ढंग और धूम-धाम से मनाया जाता है।गणगौर की सवारी(मेला) हर वर्ष जयपुर में महाराजा सवाई मानसिंह द्धितीय संग्रहालय ट्रस्ट और पर्यटन विभाग के सहयोग से शाही ठाट-बाट और धूम-धाम से निकाली जाती है जिसमें जयपुर राजपरिवार की प्रमुख भूमिका होती है।राजपरिवार की महिलाएं स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित गणगौर को चांदी की पालकी में बैठाकर पूजा-अर्चना के बाद पालकी को विदा करती हैं।यह पालकी पूरे लवाजमे और गीत-संगीत के साथ निकलती है।
गणगौर की भव्य सवारी में पारंपरिक नृत्य जैसे कच्ची घोड़ी,कालबेलिया,बहरूपिया,अलगोज़ा,गैर,चकरी आदि शामिल होते हैं।परंपरागत वेशभूषा में राजपरिवार के सदस्य,सजे-धजे हाथी,घोड़े,ऊँट पर बैठ कर चलते हैं।पीछे-पीछे पुरुषों का एक बड़ा समूह हाथ में पचरंगा लिए चलता है।इनके पीछे राजस्थानी पोशाक में कलश लिए महिलाओं का बहुत बड़ा दल होता है। गणगौर की शाही सवारी सिटी पैलेस से रवाना होकर त्रिपोलिया बाज़ार,छोटी चौपड़ और गणगौरी बाज़ार होते हुए तालकटोरा की पाल पर पहुँचती है।यहाँ गणगौर को जल पिलाया जाता है। दूसरे दिन बूढ़ी गणगौर की सवारी निकालने की परंपरा है।गुलाबी नगरी की इस भव्य सवारी को देखने के लिए पूरे विश्व से पर्यटक खिंचे चले आते हैं।