नामीबिया से लाए गए 20 चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा गया था। पहली बार में तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इसके लिए कूनो पहुंचे थे। कभी चीतों का घर रहे हिन्दुस्तान में आजादी के वक्त ही चीते पूरी तरह विलुप्त हो गए थे। 1947 में देश के आखिरी तीन चीतों का शिकार मध्य प्रदेश के कोरिया रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने किया था। इसकी फोटो भी बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी में है। उस दिन के बाद से भारत में कभी भी चीते नहीं दिखे। अब 75 साल बाद पहले 17 सितंबर 2022 को आठ और फिर 26 जनवरी 2023 को 12 चीतों को नामीबिया से लाया गया था। इन्हीं में से एक मादा चीता की सोमवार को मौत हो गई।
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कैसे हुई मौत?
भारत में चीतों को बसाने के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब नामीबिया से आई फीमेल चीता साशा कूनो नेशनल पार्क स्थित अपने बाड़े में मृत मिली। उसकी किडनी खराब थी और उसका इलाज चल रहा था। मादा चीता साशा में 22-23 जनवरी को बीमार होने के लक्षण पता चले थे। इसके बाद उसे बड़े बाड़े से छोटे बाड़े में शिफ्ट किया गया। तब उसका इलाज करने के लिए वन विभाग ने इमरजेंसी मेडिकल रिस्पॉन्स टीम को कूनो भेजा था। शुरुआती लक्षणों में डीहाइड्रेशन और किडनी की बीमारी का पता चला था।
ऐसे में आज हम आपको चीतों की सारी खासियत बताएंगे। कितनी रफ्तार से चीते दौड़ सकते हैं? कितना ऊंचा छलांग लगा सकते हैं? शरीर की बनावट कैसी होती है? आइए जानते हैं...
120 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ सकता है चीता
- चीता हर सेकेंड में चार छलांग लगाता है। चीते की अधिकतम रफ्तार 120 किमी प्रति घंटे की हो सकती है। सबसे तेज रफ्तार के दौरान चीता 23 फीट यानी करीब सात मीटर लंबी छलांग लगा सकता है।
- चीते की रिकॉर्ड रफ्तार अधिकतम एक मिनट के लिए रह सकती है। यह अपनी फुल स्पीड से 300 से 450 मीटर दूर तक दौड़ सकता है।
पतली हड्डियों की खोपड़ी
- चीते का सिर बाघ, शेर, तेंदुए और जगुआर की तुलना में काफी छोटा होता है। इससे तेज रफ्तार के दौरान उसके सिर से टकराने वाली हवा का प्रतिरोध काफी कम हो जाता है।
- चीते की खोपड़ी पतली हड्डियों से बनी होता है। इससे उसके सिर का वजन भी कम हो जाता है। इसके चलते चीता आसानी से दौड़ लगा सकता है।