“कोई क्या करे अगर वो अपने आसपास काम करने वालों से बेहतर हो। सिस्टम से बेहतर हो। गला घोंट दे वो अपने टैलेंट का। बन जाए मीडियॉकर किसी 50 करोड़, 100 करोड़ क्लब के मेंबर्स की तरह। ये सवाल खुद से मैंने बहुत पूछे। खुद को अपनी काबिलियत के लिए कोसा। कोई इलाज कर सकता मेरी काबिलियत का, किसी बीमारी की तरह, तो मैं करवा लेता। इसीलिए अच्छा हुआ कि तुम लोगों ने जो कुछ मुझसे सीखा, कम से कम मेरा गेम खेलने का तरीका नहीं सीखा।” यह संवाद है नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई नई फिल्म ‘क्लास ऑफ 83’ के मुख्य किरदार आईपीएस अफसर विजय सिंह का। कहानी साल 1983 की है, जितना सीनियर ये अफसर है, उससे अंदाजा लग सकता है कि वह आईपीएस में उस काल में भर्ती हुआ होगा, जब देश में सरकारी तंत्र इतना भ्रष्ट नहीं हुआ था। नेताओं का असर ब्यूरोक्रेसी पर आना बाकी था और देश तब भी एक उज्जवल भविष्य की उम्मीद में था।
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