अपने चौथपन में ‘बिंदास बुढ़िया’ के रूप में हिंदी सिनेमा में मशहूर हुईं अभिनेत्री जोहरा सहगल ने पृथ्वीराज कपूर के साथ काम करना शुरू किया और उनके परिवार की चौथी पीढ़ी रणबीर कपूर तक काम करती रहीं। हिंदी सिनेमा का ये भी एक रिकॉर्ड है। उत्तर प्रदेश के उस जिले में जोहरा सहगल का जन्म हुआ जहां मुसलमानों की आबादी आज भी हिंदुओं से ज्यादा है और जिस रामपुर में उनके बिना हिजाब निकलने पर पाबंदी लगी हुई थी। उसी रामपुर से निकली जोहरा सहगल ने वो सब कुछ किया जो उस जमाने में महिला सशक्तीकरण की बातें करने वाली महिलाओं के लिए भी काफी ‘बोल्ड’ हुआ करता था। और, हिंदी सिनेमा का ये किस्सा शुरू होता है उस वक्त के सबसे बड़े नचैया की मंडली में शामिल होने से।
पहली ही फिल्म पहुंची कान
जोहरा सहगल उन चंद कलाकारों में भी शामिल हैं जिन्हें सिनेमा ने उनकी शोहरत का फायदा उठाने के लिए अपने खेमे में शामिल किया। जी हां, वह फिल्मों से मशहूर नहीं हुईं बल्कि फिल्मों में उन्हें लोगों ने लिया ही इसलिए कि वह दुनिया भर में मशहूर हो चुकी थीं। 27 अप्रैल 1912 को रामपुर रियासत के नवाबी खानदान में पैदा हुईं साहिबजादी जोहरा मुमताजुल्ला खान बेगम की पहली ही फिल्म ‘नीचा नगर’ के कान फिल्म फेस्टिवल का सबसे बड़ा अवार्ड जीतने के किस्से से हम उनका फिल्मी सफरनामा शुरू करें, उससे पहले ये जान लेना बेहद जरूरी हो जाता है कि आखिर जोहरा के कदम अमेरिका, जापान और ब्रिटेन पहुंचने से पहले हिंदुस्तान में कहां कहां पड़े?
रामपुर की रोहिल्ला पठान फैमिली
रामपुर की रोहिल्ला पठान फैमिली में पैदा हुई जोहरा का बचपन अब उत्तराखंड बन चुके पहाडों की हरियाली से भरी मशहूर जगह चकराता में गुजारा। पेड़ों पर कूदना, उधम मचाना, बागों से फल तोड़कर खाना और आसपास गुजरते लोगों को परेशान करना जोहरा के बचपन की आदतों में शुमार रहा। जोहरा सहगल की फिल्में अगर आपने देखी हैं तो आपको समझ आएगा कि वह कैमरे की तरफ देखते समय थोड़ा असहज महसूस करती थीं। वजह ये कि उनको बाईं आंख से कुछ दिखाई न देता था, और ये कहर उन पर बचपन में ही टूटा। ग्लूकोमा वैसे तो डायबिटीज के मरीजों को बड़े होने पर होती है, लेकिन जोहरा को ये बीमारी बचपन में ही लग गई। उनकी लंदन विदेश यात्रा भी बताते हैं कि इसी के इलाज के चक्कर में हुई। बहुत तकलीफें सहीं जोहरा ने साल भर की उम्र से ही।
लाहौर से निकली कार की सवारी
तकलीफें जोहरा सहगल ने अपने जीवन में बेहिसाब सहीं लेकिन मजाल की कोई फोटो उनका आप पा सकें, गमगीन चेहरे वाला। छोटी सी थीं कि मां गुजर गईं। अम्मी का बड़ा मन था कि जोहरा लाहौर जाकर पढ़े तो अपनी बहन के साथ वह चली गईं क्वीन मेरी कॉलेज में दाखिला लेने। कॉलेज में सख्त पर्दा होता था। तमाम पर्दादारी के बाद भी शादी के बाद बहन की हालत देख जोहरा ने तय किया कि उसे पहले अपनी जिंदगी बसानी है फिर देखा जाएगा कि घर बसाना भी है कि नहीं। बात एडिनबर्ग वाले मामू तक पहुंची और उन्होंने उनकी अप्रेंटिस का इंतजाम कर दिया एक ब्रिटिश एक्टर की शागिर्दी में। जहाज से तो जा नहीं सकते थे तो ये लोग लाहौर से कार से निकले। ईरान, फिलिस्तीन, सीरिया और मिस्र पहुंचे और वहां से पानी के रास्ते यूरोप जा पहुंचे।
बैले स्कूल की पहली भारतीय छात्र
जर्मनी के मैरी विगमैन बैले स्कूल में एडमीशन पाने वाली जोहरा सहगल पहली भारतीय महिला बनीं। तीन साल तक यहां जोहरा ने नए जमाने का डांस सीखा और इसी दौरान किस्मत से उन्हें मौका मिला वह नृत्य नाटिका देखने का जिसने उनका जीवन बदल दिया। इस नृत्य नाटिका का नाम था, शिव पार्वती और इसे लेकर उन दिनों विश्वभ्रमण पर निकले थे भारत के मशहूर नर्तक उदय शंकर। नाटिका खत्म हुई तो जोहरा पहुंच गईं मंच के पीछे उदयशंकर से मिलने। विदेश में इतनी खूबसूरत भारतीय युवती की पारंपरिक नृत्य में दिलचस्पी देख उदय शंकर बहुत खुश हुए और बोले कि वतन पहुंचते ही वह उनके लिए काम देखेंगे।