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Randeep Hooda: ‘सिख वे नहीं होते जैसे फिल्मों में दिखाए जाते हैं’, रणदीप हुड्डा ने अमर उजाला से कही मन की बात

पंकज शुक्ल
Updated Sat, 03 Dec 2022 07:17 PM IST
वेब सीरीज ‘कैट’ में  रणदीप हुड्डा
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अपने हर किरदार में अपनी सारी मेहनत उड़ेल देने वाले अभिनेता रणदीप हुड्डा का नेटफ्लिक्स के साथ एक बार फिर संगम होने जा रहा है। क्रिस हेम्सवर्थ के साथ नेटफ्लिक्स ओरिजिनल फिल्म ‘एक्सट्रैक्शन’ कर चुके रणदीप अब एक बेहद खतरनाक किरदार इस ओटीटी की नई वेब सीरीज ‘कैट’ में करने जा रहे हैं। ‘कैट’ यानी काउंटर अगेंस्ट टेररिज्म। रणदीप ने इस फिल्म में इसी कैट का किरदार निभाया है और इस बारे में बात करने के लिए जब वह ‘अमर उजाला’ से मिले तो अपना दिल खोलकर रख दिया। किरदारों को लेकर की गई अपनी मेहनत से लेकर हिंदी फिल्मों और म्यूजिक वीडियोज में खराब कर दी गई सिखों की इमेज तक, सब पर उन्होंने खुलकर बात की।
वेब सीरीज ‘कैट’ में  रणदीप हुड्डा
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वेब सीरीज कैट’ में किया अनोखा किरदार
रणदीप कहते हैं, ‘इस वेब सीरीज में मैं एक कैट का किरदार कर रहा हूं। कुछ कुछ पुलिस के अंडरकवर साथी जैसा ये काम होता है। कहानी वहां से शुरू होती है जहां मेरा किरदार गुरनाम एक किशोर है। अपने माता पिता की हत्या के बाद वह आतंकवादियों के जत्थे में शामिल हो जाता है और उनका सफाया करने में पुलिस की मदद करता है। एक नए नाम और पहचान के साथ बाद में पुलिस उसे जहां बसाती हैं, वहां नशीले पदार्थों की तस्करी में उसका छोटा भाई फंस जाता है और किस्मत उसे फिर पंजाब पुलिस के पास उसी जगह ले आती है, जहां इस बार पुलिस उसे ड्रग्स स्मगलरों के गिरोह का सफाया करने के लिए कैट बनाती है।’
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रणदीप हुड्डा
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‘सिखों की इमेज हिंदी सिनेमा ने खराब की’
तो परदे पर एक सिख का किरदार करने के लिए उन्होंने क्या क्या जतन किए? इस सवाल के जवाब में रणदीप कहते हैं, ‘सिख वे नहीं होते जैसे हिंदी सिनेमा में दिखाए जाते हैं। सरदारों पर चुटकुले बनाए जाते हैं। म्यूजिक वीडियोज में बंदूकें दिखाई जाती हैं या फिर फिल्मों में वह ताल ठोककर हमेशा लड़ने को उतारू नजर आते हैं। सिख का मतलब होता है हमेशा सीखते रहना। ये एक बहुत ही विनम्र, समाजसेवी और दिलदार कौम होती है। इनकी छवि बिगाड़ने में हिंदी सिनेमा का बहुत बड़ा हाथ रहा है। वेब सीरीज ‘कैट’ में हमने असली वाले सिख दिखाए हैं और वह पंजाब दिखाया है जिस पर आमतौर पर हिंदी सिनेमा की नजर ही नहीं जाती।’
रणदीप हुड्डा
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‘तीन साल तक मैंने बाल नहीं काटे’
बातों बातों में जिक्र रणदीप की एक अधूरी रह गई फिल्म ‘बैटल ऑफ सारागढ़ी’ का भी आया। रणदीप बताते हैं, ‘मैं अमृतसर के स्वर्ण मंदिर गया था तो वहीं मुझे इन वीरों की कहानी पता चली और मैंने वहीं कसम खाई कि जब तक ये कहानी मैं परदे पर नहीं ले आता, मैं अपने केश नहीं काटूंगा। तीन साल तक मैंने अपने बाल नहीं काटे और इस दौरान आईं तमाम फिल्मों के लिए मुझे न कहनी पड़ी। काफी नुकसान उठाया मैंने। लेकिन मेरा मानना है कि जीवन में सारे घाटे सिर्फ नुकसान के लिए ही नहीं होते, वे भी कुछ न कुछ सबक दे ही जाते हैं।’
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हीरो क्यों बनना है, खुद से पूछना जरूरी
अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए टैक्सी ड्राइवर तक बन चुके रणदीप कहते हैं कि वक्त बदलने के साथ इंसान की प्राथमिकताएं भी बदल जाती हैं। वह कहते हैं, ‘हर इंसान जीवन में एक बार शीशे के सामने खड़े होकर ये जरूर सोचता है कि वह हीरो बन सकता है। लेकिन, उसे अभिनेता क्यों बनना है, ये सवाल उसे खुद से जरूर पूछना चाहिए। अगर हम दोस्तों, रिश्तेदारों पर रौब गांठने के लिए हीरो बनना चाहते हैं तो ये ठीक नहीं है। अभिनय एक साधना है और इसमें आने से पहले खुद को इसके लिए तैयार करना बहुत जरूरी है।’
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