अमिताभ बच्चन ने अब तक के करियर में हिंदी सिनेमा को एक से बढ़ कर एक बेहतरीन फिल्में दी हैं। 1983 में बनी 'कुली' भी उन्हीं फिल्मों में से एक थी। आज इस फिल्म को रिलीज हुए 36 साल हो गए हैं। ये बात तो आप जानते ही होंगे कि इस फिल्म ने अमिताभ को मौत की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था। सौम्य बंदोपाध्याय ने अपनी किताब 'अमिताभ बच्चन' में कुली के दौरान हुए हादसे का जिक्र किया है।
2 दिसंबर 1983 को 'कुली' रिलीज हुई थी। फिल्म ने कामयाबी की नई इबारत लिखी और इसके साथ ही पुनीत इस्सर राष्ट्रीय विलेन बन गये। लेकिन पुनीत के राष्ट्रीय विलेन बनने के पीछे अमिताभ बच्चन को 59 दिन हॉस्पिटल में गुजारने पड़े। आलम ये था कि अमिताभ बच्चन का इलाज कर रहे डॉक्टर्स ने भी हार मान ली थी।
दरअसल कुली के सेट पर शूटिंग के दौरान पुनीत ने जब घूसा मारा तो किसी को नहीं पता था एक सीन फिल्माने की अमिताभ बच्चन को ये कीमत चुकानी पड़ेगी। अमिताभ सहित सभी को ये चोट मामूली लग रही थी, क्योंकि खून की एक बूंद भी नहीं निकली थी। कुली की शूटिंग के दौरान चोट लगने के बाद से ही अमिताभ बच्चन एक गंभीर और संवेदनशील दौर से गुजर रहे थे। मामला सिर्फ आंत के फट जाने तक नहीं रह गया था। उन्हें निमोनिया और पीलिया ने भी जकड़ लिया था।
पूरे शरीर में कई मशीनें लगी थीं और देश अपने सुपरस्टार की सलामती की दुआ कर रहा था। एक शनिवार को उन्हें चोट लगी थी और दूसरे शनिवार को वह ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती हुए, बीच के इन आठ दिनों में दो ऑपरेशन हुए। अमिताभ की हालत देख राजीव गांधी अमेरिका यात्रा बीच मे छोड़कर ही 4 अगस्त की आधी रात वापस लौटे और एयरपोर्ट से सीधे अमिताभ से मिलने पहुंचे। इतना ही नहीं इंदिरा गांधी भी अपनी पहली विदेश यात्रा स्थगित कर अमिताभ से मिलने पहुंची थीं।
2 अगस्त 1982 को अख़बारों में इस घटना को पढ़कर अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंश राय बच्चन बदहवास थे, उस वक़्त उन्हें घटना की जानकारी देने लायक कोई व्यक्ति घर में नहीं था। भोजन और नींद के थोड़े से वक़्त के अलावा 24 सितंबर तक बच्चन जी ने बेटे के लिए रामचरितमानस का पाठ किया था। 24 सितंबर के दिन आखिरकार अमिताभ को ब्रीच कैंडी अस्पताल से छुट्टी मिल गई।