भारत से चीन सीमा पर सड़क पहुंचाना बीआरओ (सीमा सड़क संगठन) के लिए किसी जंग से कम नहीं था। आज रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए चीन सीमा के लिए बनी घट्टाबगढ़-लिपुलेख सड़क का ऑनलाइन उद्घाटन किया। लेकिन हम आपको बताते हैं कि किन कठिनाइयों के साथ मजदूरों ने इस जंग में मुकाम हासिल किया।
चीन सीमा पर स्थित लिपुलेख के लिए 1999 से सड़क का निर्माण किया जा रहा है। तवाघाट से लिपुलेख तक कुल 95 किमी सड़क की कटिंग का काम पूरा हो गया है। तवाघाट से गर्बाधार तक 2008 में ही सड़क का निर्माण पूरा कर लिया गया था।
2014 के बाद सड़क निर्माण में काफी तेजी आई। तवाघाट से गुंजी तक कठिन चट्टानें होने के कारण सड़क निर्माण में काफी कठिनाइयां आईं। लखनपुर और नजंग की पहाड़ियों को काटना बेहद कठिन था। काटने में पिछले दस सालों में ग्रिफ के एक जूनियर इंजीनियर, दो ऑपरेटरों और छह स्थानीय मजदूरों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
करोड़ों की मशीनें भी इन्हीं चट्टानों में दफन हो गईं थीं। ग्रिफ के अधिकारियों के अनुसार सड़क निर्माण के दौरान 65 लाख की लागत का डोजर, 2.5 करोड़ रुपये की डीसी 400 ड्रिलिंग मशीन, 40 लाख रुपये की वैगन ड्रिल मशीन सहित कई मशीनें नष्ट हो गई थीं।
चीन सीमा तक बनी घट्टाबगढ़-लिपुलेख सड़क पर करीब 408 करोड़ की राशि खर्च हो चुकी है। सड़क कटिंग का काम 2008 से पहले ग्रिफ की 65 आरसीसी ने किया। जून 2008 से 67 आरसीसी ग्रिफ सड़क का काम कर रही है। ग्रिफ के चीफ इंजीनियर विमल गोस्वामी ने बताया कि सड़क की कटिंग का काम पूरा हो गया है। अगले दो-तीन वर्षों में सड़क को पक्का कर लिया जाएगा।