न्यूज डेस्क, अमर उजाला, कोलकाता
Published by: प्रतिभा ज्योति
Updated Fri, 23 Jul 2021 04:33 PM IST
जानवरों की कुर्बानी का विरोध करने के लिए ईद के दिन उपवास रखने के अल्ताब हुसैन के फैसले की सोशल मीडिया पर सराहना हो रही है। हुसैन ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए ही बताया कि उन्होंने उपवास रखने का फैसला क्यों किया? अल्ताब ने अपने पोस्ट में बताया है कि बकरीद पर कुर्बानी देने के लिए जब उनका परिवार एक जानवर लेकर आया तो वे किस तरह परेशान हो गए। उन्होंने कहा है कि पशुओं पर बहुत अधिक क्रूरता हो रही है और कोई इसका विरोध नहीं कर रहा है। मैंने लोगों को यह एहसास दिलाने के लिए 72 घंटे का उपवास करने का फैसला किया है कि पशु बलि जरूरी नहीं है। जब वे ऐसा करते हैं, तो जानवरों पर बहुत क्रूरता की जाती है। उनका कहना है कि पुशुओं पर होने वाली इस क्रूरता को रोका जाना चाहिए।
परिवार साथ नहीं, अकेले ही उतरे विरोध में
हालांकि हुसैन का अपना परिवार उनके इस कदम से समहत नहीं है, लेकिन वे अकेले ही इस लड़ाई में खड़े हैं। उन्होंने कहा कि देश के अन्य मुस्लिम समाज के लोगों से अपील करते हैं कि ईद उल अजहा के मौके पर जानवरों की बस सांकेतिक कुर्बानी दी जाए और पशुओं के साथ कोई क्रूरता ना हो।
तीन साल पहले बचाई थी एक जानवर की जान
हुसैन एक शाकाहारी कार्यकर्ता हैं और 2014 से पशुओं के अधिकारों के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने तीन साल पहले भी कुर्बानी के लिए घर लाए गए एक जानवर को बचाया था। हुसैन के मुताबिक तीन साल पहले उनका भाई एक जानवर लेकर आया जिसका उन्होंने विरोध किया और उसकी जान बचा ली।
दूध बढ़ाने के लिए गाय को इंजेक्शन देना भी क्रूरता
अल्ताब ने गाय को इंजेक्शन देकर उसका दूध बढ़ाने का भी विरोध किया है। उनका मानना है कि यह भी एक प्रकार की क्रूरता है और दूध बढ़ाने के लिए गायों को इंजेक्शन लगाना ठीक नहीं है।
विस्तार
जानवरों की कुर्बानी का विरोध करने के लिए ईद के दिन उपवास रखने के अल्ताब हुसैन के फैसले की सोशल मीडिया पर सराहना हो रही है। हुसैन ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए ही बताया कि उन्होंने उपवास रखने का फैसला क्यों किया? अल्ताब ने अपने पोस्ट में बताया है कि बकरीद पर कुर्बानी देने के लिए जब उनका परिवार एक जानवर लेकर आया तो वे किस तरह परेशान हो गए। उन्होंने कहा है कि पशुओं पर बहुत अधिक क्रूरता हो रही है और कोई इसका विरोध नहीं कर रहा है। मैंने लोगों को यह एहसास दिलाने के लिए 72 घंटे का उपवास करने का फैसला किया है कि पशु बलि जरूरी नहीं है। जब वे ऐसा करते हैं, तो जानवरों पर बहुत क्रूरता की जाती है। उनका कहना है कि पुशुओं पर होने वाली इस क्रूरता को रोका जाना चाहिए।
परिवार साथ नहीं, अकेले ही उतरे विरोध में
हालांकि हुसैन का अपना परिवार उनके इस कदम से समहत नहीं है, लेकिन वे अकेले ही इस लड़ाई में खड़े हैं। उन्होंने कहा कि देश के अन्य मुस्लिम समाज के लोगों से अपील करते हैं कि ईद उल अजहा के मौके पर जानवरों की बस सांकेतिक कुर्बानी दी जाए और पशुओं के साथ कोई क्रूरता ना हो।
तीन साल पहले बचाई थी एक जानवर की जान
हुसैन एक शाकाहारी कार्यकर्ता हैं और 2014 से पशुओं के अधिकारों के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने तीन साल पहले भी कुर्बानी के लिए घर लाए गए एक जानवर को बचाया था। हुसैन के मुताबिक तीन साल पहले उनका भाई एक जानवर लेकर आया जिसका उन्होंने विरोध किया और उसकी जान बचा ली।
दूध बढ़ाने के लिए गाय को इंजेक्शन देना भी क्रूरता
अल्ताब ने गाय को इंजेक्शन देकर उसका दूध बढ़ाने का भी विरोध किया है। उनका मानना है कि यह भी एक प्रकार की क्रूरता है और दूध बढ़ाने के लिए गायों को इंजेक्शन लगाना ठीक नहीं है।